आलोक त्रिपाठी/कानपुर देहात: कानपुर देहात के बनीपारा गांव में बाणेश्वर शिव मंदिर है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता था कि सतयुग में राजा बाणेश्वर की बेटी यहां सबसे पहले पूजा करती थीं और तब से अब तक इस शिवलिंग पर सबसे पहले सुबह यहां कौन पूजा करता है, इसका रहस्य आजतक बरकरार है. 


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इतिहास में भी इस बात का जिक्र है कि आज तक उस मंदिर में कोई इंसान पहली पूजा नहीं कर सका. जब भी सुबह वहां कपाट खोले जाते हैं, तो पहले से ही वह शिवलिंग पूजा ही मिलता है, लोगों की मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान बाणेश्वर धाम में जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, इसीलिए सावन महीने और शिवरात्रि में यहां पर हजारों की संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है. 


पूरी होती हैं भक्तों की मनोकामनाएं
एक भक्त जो लगभग 2 साल से सुबह सबसे पहले पूजा वही करने आते हैं. उन्होंने बताया कि हम जब भी पूजा करने आते हैं तो पहले से ही शिवलिंग में जल चढ़ा हुआ मिलता है तो कभी चावल चढ़े होते हैं तो कभी बेल पत्री चढ़ी हुई मिलती है. यही बात मंदिर के पुजारी ने भी बताई. इतिहास में लिखा है कि पनीर दत्तराज बलि के पुत्र बाणेश्वर की की पुत्री ऊषा इस मंदिर में सबसे पहले पूजा करने आती है. यहां के लोगों की आस्था है कि सावन के सोमवार उपवास रखने के बाद यहां जल चढ़ाने मात्र से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.


मंदिर पहुंचने का मार्ग
कानपुर देहात जिले के अंतर्गत रूरा नगर से उत्तर पश्चिम दिशा में 7 किलोमीटर दूरी पर रूरा -रसूलाबाद मार्ग पर वाणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. यह देवालय रोड के द्वारा कहिंझरी होकर कानपुर से जुड़ा हुआ है. कहिंझरी से इस मंदिर की दुरी 8 किलोमीटर है. यहां पहुचने के लिए रूरा रेलवे स्टेशन (उत्तर मध्य रेलवे) से बस या टैक्सी के माध्यम से पहुँच सकते है. अम्बियापुर रेलवे स्टेशन से उत्तर दिशा में 4 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है. 


मंदिर से जुड़ा है ये इतिहास
पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. इतिहास लेखक प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के अनुसार सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी. दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था. उसके बाद परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया. मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तियां पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं.


मंदिर के संबंध से जुड़ी मान्यता
इस मंदिर के पंडित के पुजारी और स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर के संबंध में कथा है कि सतयुग में राजा बाणेश्वर थे. वो सतयुग से द्वापरयुग तक राजा रहे है. बाणेश्वर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी. भगवान शिव ने बाणेश्वर को दर्शन दिए और इच्छा वरदान के लिए कहा तो बाणेश्वर ने भगवान शिव को मांगा. तब भगवान शिव ने प्रारूप के रुप में शिवलिंग दिया, लेकिन शर्त रखी कि अगर शिवलिंग को महल में जाने के क्रम में जमीन रख दिया तो दोबारा नहीं उठ पाएगा, लेकिन कुछ कारणवश बाणेश्वर को शिवलिंग जमीन पर रखना पड़ जाता है तब उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर मंदिर का निर्माण कराया था. 


इस मंदिर की खास बात ये है कि सावन में कावंड़ियों की पूजा तब तक सफल नहीं होती है, जब तक वे इस शिवलिंग में गंगा जल न चढ़ाया जाए. इस कारण इस मंदिर में कावड़ियों का जमावड़ा लगता है. नागपंचमी वाले दिन यहां पर कुश्ती का भी आयोजन होता है, जिसमें कई जनपदों के पहलवान हिस्सा लेते हैं.


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