लखनऊ:  UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अभी से सभी पार्टियां अपना दांव चलने लगी हैं. इन दावों में एक बात जो सबके लिए कॉमन दिख रहा है, वो है किसी भी तरीके से ब्राह्मण समुदाय को अपनी तरफ लाया जाए. एक ओर भाजपा जितिन प्रसाद जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल कर चुकी है. वहीं, मायावती ने ब्राह्मण-दलित की सोशल इंजीनियरिंग का पत्ता चल दिया है. इन सबके इतर अखिलेश यादव लंबे समय से परशुराम मूर्ति लगावने का वादा कर रहे हैं. अब सवाल है कि आखिर ब्राह्मण वोट इतना महत्वपूर्ण क्यों है? आइए जानते हैं...


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क्या कहते हैं आंकड़े? 
आबादी के हिसाब से ब्राह्मण समुदाय का यूपी में वर्चस्व रहा है.  यूपी में 11-14 फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक हैं, जो जाटव और यादव वोट बैंक के बराबर है. कहीं ऐसे भी जहां इनकी संख्या 15 फीसदी से भी अधिक है. बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और इलाहाबाद ऐसे ही जिले हैं. माना जाता है कि कुल 115 से अधिक सीटों पर ये हार-जीत आसानी से तय करते हैं.  ऐसे में 403 सीटों में 115 सीटें काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं. 


जिसे किया वोट, उसकी बनी सरकार 
ब्राह्मण लंबे समय से किंग मेकर रहे हैं. 90 दशक के पहले यूपी की राजनीति में कांग्रेस बनाम अन्य की रही है. इसकी बड़ी वजह है कि शुरुआती दौर में ब्राह्मणों ने कांग्रेस को खूब वोट किया. इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि अब तक 21 में 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण ही रहे हैं. वे भी सभी कांग्रेस से ही रहे हैं. इसके बाद अयोध्या मंदिर आंदोलन के दौरान वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ. वहीं, सपा के पास जनेश्वर मिश्र जैसे नेता थे, जिन्होंने समय-समय पर पार्टी को एकजुट वोट दिलाया. लेकिन ब्राह्मण वोट बैंक को साधने का सबसे बड़ा प्रयोग साल 2007 में मायावती ने किया. नारा दिया गया, 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी दौड़ा आएगा.' 2007 में मायावती अपने बलबूते पर सरकार में पहुंच गईं. 


साल 2012 में बसपा सरकार से नाराजगी के बाद विकल्प की तलाश में ब्राह्मण सपा के साथ जुड़े, तो सपा की सरकार बनीं. और फिर साल 2017 में भाजपा ने गेम पलट दिया. CSDS की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2007 और 2012 में भाजपा को ब्राह्मणों ने 40 और 38 फीसदी वोट दिया. हालात ये थे कि भाजपा राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी थी. साल 2017 में 80 फीसदी वोट्स दिए, तो भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार में आ गई.


क्या भाजपा से नाराज हैं ब्राह्मण?
एक बात की लंबे समय से चर्चा चल रही है कि भाजपा से ब्राह्मण नाराज हैं. इसके पीछे दो बड़ी वजह बताई जा रही हैं. पहली ये कि 44 विधायकों में सिर्फ 8 को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया है. उसमें भी दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा के पास ही बड़े मंत्रालय है.  जबकि क्षत्रिय समुदाय से भी 8 मंत्री बनाए गए. सीएम योगी को इसी समुदाय से जोड़ा जाता है.  देखा जाए, तो क्षत्रिय बनाम ब्राह्मण का शिगूफा यूपी की राजनीति में हमेशा तैरता रहता है. वहीं, विकास दूबे के एनकाउंटर के बाद भी विपक्ष द्वारा ब्राह्मण नाराजगी का तर्क दिया गया. 


किससे पास कौन है चेहरा? 
ब्राह्मण चेहरे की बात करें, तो भाजपा के पास कभी कलराज मिश्र जैसे कद्दावर नेता हुआ करते थे. अब उनके सक्रिय राजनीति से दूरी के बाद दिनेश शर्मा, ब्रृजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी और श्रीकांत शर्मा जैसे चेहरे पर जिम्मेदारी है. भाजपा ने हाल ही रुहेलखंड में मजबूत पकड़ वाले जितिन प्रसाद को भी कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में शामिल किया है. वहीं, अगर बसपा की बात करें, तो उनके पास सतीश चंद्र मिश्र जैसे नेता हैं. साल 2007 की सरकार में वह नंबर दो की पोजिशन पर थे. वहीं, कांग्रेस के पास प्रतापगढ़ में पकड़ रखने वाले प्रमोद तिवारी और मिर्जापुर की राजनीति करने वाले ललितेशपति त्रिपाठी हैं. इसके अलावा कांग्रेस राहुल गांधी की भी ब्राह्मण पहचान को आगे लाने की कोशिश करती रही है.