Mahakumbh 2025: महाकुंभ का ये अनोखा अखाड़ा, सिर्फ ब्राह्मणों का प्रवेश, मांस-मदिरा छूने मात्र से निष्कासन, प्रयागराज में दिखेगा पॉवर
Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ के दौरान जहां अखाड़ों ने हर जातियों के लिए अपना दरवाजा खोला. यहां तक कि किन्नरों को भी मान्यता मिली, लेकिन वहीं एक अखाड़ा ऐसा है, जहां सिर्फ ब्राह्मणों की ही मान्यता है. इस अखाड़े के नियम भी बड़े सख्त हैं. आइए जानते हैं इसके कठोर नियम.
Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ के दौरान जहां अखाड़ों ने हर जातियों के लिए दरवाजा खोला. किन्नरों को भी मान्यता मिली, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अखाड़े के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसमें सिर्फ ब्राह्मणों को ही सन्यास की दीक्षा दी जाती है, जो ब्रह्मचारी कहलाते हैं. चार पीठों के लिए चतुष्मान ब्रह्मचारी बनाए जाते हैं. ब्रह्मचारी के प्रक्रिया भी बेहद कठिन है. मांस और मदिरा छूने मात्र से ब्रह्मचारी निष्कासित हो जाते हैं. यह अखाड़ा है श्रीपंच अग्नि अखाड़ा, जो परंपरा, प्रतिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा के आधार पर है. कहा जाता है कि इसकी स्थापना सन् 1957 में हुई थी. हालांकि, इस अखाड़े के संत इसे सही नहीं मानते. इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है.
कठोर है अखाड़े के नियम
सनातन धर्म और संस्कृति के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने का भाव लिए इस अखाड़े के हजारों ब्रह्मचारी जप-तप में लीन हैं. सदियों पहले बनी परंपरा का अखाड़ा आज भी ईमानदारी से निर्वहन करता है. मांस-मदिरा का सेवन तो दूर की बात है, अगर किसी ने उसे छू भी लिया तो उसकी शिकायत मिलने पर अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है. ऐसा करने पर पिछले 10 सालों में 50 से ज्यादा ब्रह्मचारी निष्कासित हो चुके हैं.
कौन हैं अग्नि अखाड़ा की आराध्य?
अग्नि अखाड़ा की आराध्य मां गायत्री हैं. ब्रह्मचारियों को वेद-पुराणों का ज्ञान के साथ ही अविवाहित होना भी जरुरी है. इनकी पहचान जनेऊ और सिर पर शिखा है. इन्हें निष्ठावान ब्रह्मचारी भी कहा जाता है. इस अखाड़े से दीक्षा पाने वाले ब्रह्मचारी आचार्य और शंकराचार्य की पदवी धारण करते हैं.
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अग्नि अखाड़ा के चतुष्मान ब्रह्मचारी
शंकराचार्य का उत्तराधिकारी बनने के लिए ब्रह्मचारी होना अनिवार्य है. आदिशंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए चार पीठ स्थापित किया था. उस पीठ का प्रतिनिधित्व करने के लिए अग्नि अखाड़ा में चतुष्मान ब्रह्मचारी बनाए जाते हैं. इन्हें आनंद, चेतन, प्रकाश और स्वरूप के नाम से बांटा गया है. ज्योतिष्पीठ का आनंद, पुरी का स्वरूप, श्रृंगेरी का चेतन और द्वारका शारदा पीठ का प्रतिनिधित्व प्रकाश करते हैं. पहले अग्नि अखाड़ा के ब्रह्मचारी चारों पीठों के शंकराचार्य और 13 अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर बनते थे, लेकिन अब उसमें बदलाव हो गया है.
क्या है ब्रह्मचारी बनने की प्रक्रिया?
रिपोर्ट्स की मानें तो अग्नि अखाड़ा में ब्रह्मचारी बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन है. देशभर में लगभग 4 हजार ब्रह्मचारी हैं. ब्रह्मचारी बनने के लिए पंचद्रव्य में स्नान, पंच भूत संस्कार से गुजरना पड़ता है. संस्कार में शिखा, नए तरीके से उपनयन, लंगोठी, एक रुद्राक्ष और एक केश काटना शामिल है. ब्रह्मचारी बनने के बाद अखाड़े का विद्वान एक केश काटकर उसे ब्रह्मविद्या से गांठ देकर गंगा में विसर्जित करता है. फिर पांच गुरु मिलकर उसे रुद्राक्ष के एक दाने को (पंचमुखी या 11 मुखी) पहनाते हैं. फिर उसके गले से यह कंठी नहीं उतरती.
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पद पाने के लिए बेहद कठिन है रास्ता
अखाड़े में आठ से 12 साल के बालकों को ब्रह्मचारी बनने को प्राथमिकता दी जाती है. हालांकि, इससे बड़े उम्र के लोगों को भी दीक्षा दी जाती है. निष्ठा और कार्य देखकर महंत, श्रीमहंत की उपाधि दी जाती है. श्रीमहंत बनने के बाद थानापति, सचिव और महासचिव का प्रभार सौंपा जाता है. कुंभ का प्रभार भी सचिव या महामंत्री को ही मिलता है. अखाड़े में 60 महंत, चार सचिव के पद हैं. यह सब मिलकर सभापति का चुनाव करते हैं. अखाड़े में सभापति (अध्यक्ष) और महामंत्री का कार्यकाल 6 साल का होता है. कुंभ में ही अखाड़े के पदाधिकारी का चुनाव होता है. मौजूदा वक्त में अखाड़े के सभापति मुक्तानंद हैं.
कितने ब्रह्मचारी होंगे दीक्षित?
सात शैव अर्थात सन्यासी अखाड़ों में अग्नि भी शामिल है, लेकिन इसमें नागा सन्यासी नहीं होते. कुंभ-महाकुंभ में इसके संत जूना के साथ शाही (राजसी) स्नान करते हैं. अग्नि अखाड़ा ने देश में सनातन परंपरा और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई जगहों पर स्कूलों और कॉलेज का निर्माण कराया है. महाकुंभ में अग्नि अखाड़ा ने पांच सौ से ज्यादा ब्रह्मचारियों को दीक्षित करने की तैयारी की है.
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