बादशाह जहांगीर ने लिया था कुंभ मेले में हिस्सा, जानें कुंभ का मध्यकालीन इतिहास
Kumbh Mela History: गजनवी के समय में इतिहासकार अबु रिहान ने हरकी पैड़ी की चरण पादुका पर नागा संन्यासियों के स्नान का जिक्र किया. इतिहासकार जमीयत खान ने कुंभ की धार्मिकता तथा साधुओं की संख्या का लंबा उल्लेख जमीयतनामा में किया है
Kumbh Mela Prayagraj: प्रयागराज में इस समय कुंभ मेले की तैयारी चल रही है. कुंभ एक ऐसा अवसर है जहां करोड़ों की संख्या में भक्त, श्रद्धालु यात्री, साधु और संत एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और पवित्र स्नान करते हैं. ये स्नान पाप से मुक्ति देने वाला और प्रायश्चित करने का एक साधन होता है. सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष महत्व है. कुंभ आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से आयोजित होता आ रहा है. मध्यकालीन समय में भी देश में कुंभ मेले का आयोजन होता था. आइए उसके बारे में आपको बताते हैं.
इतिहास पढ़ेंगे तो आपको इस्लामी सल्तनत और मुगल साम्राज्य के साथ बहुत से अखाड़ों की लड़ाई का जिक्र मिलेगा. इन अखाड़ों ने आक्रमणकारियों से युद्ध किया और धर्म की रक्षा की. लेकिन समय के साथ देश में इस्लामी हुकूमत आई. इस्लामी हुकूमत के समय पर भी कुंभ मेलों का आयोजन होता था. गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा 16वीं शताब्दी के रामचरितमानस में प्रयाग में वार्षिक मेले का उल्लेख है,आइन-ए-अकबरी (सी. 1590 ई.) में भी ऐसा किया गया है. फ़ारसी में प्रयाग (इसे प्रियग लिखा गया है) को हिंदुओं के लिए "तीर्थों का राजा" बताया गया है. यानी उस समय में भी लोग बड़ी संख्या में तीर्थ करने प्रयागराज आते होंगे. ये कुंभ का ही मौका होता है जब लोग तीर्थ करने प्रयाग आते हैं.
16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में तबक़ात-ए-अकबरी में भी प्रयाग संगम पर एक वार्षिक स्नान उत्सव का उल्लेख है , लिखा गया है, "देश के सभी हिस्सों से हिंदुओं के विभिन्न वर्ग स्नान करने के लिए आते हैं, इतनी संख्या में कि जंगल और मैदान उन्हें रोक नहीं पाते". मुगल साम्राज्य के ग्रंथों में हरिद्वार के संदर्भ में "कुंभ मेला" शब्द पाया जाता है. खुलसत-उत-तवारीख (1695-1699 ई.) और चहार गुलशन (1759 ई.) में ये उल्लेख मिलते हैं. खुलसत-उत-तवारीख में प्रयाग में एक वार्षिक स्नान तीर्थ उत्सव का भी उल्लेख है.
इसमें कहा गया है कि हर साल वैसाखी के दौरान जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो आस-पास के ग्रामीण इलाकों से लोग हरिद्वार में इकट्ठा आते हैं. 12 साल में एक बार ऐसा होता है, जब सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश करता है, तो दूर-दूर से लोग हरिद्वार में इकट्ठा होते हैं. इस अवसर पर नदी में स्नान करना, दान देना और बाल मुंडवाना पुण्य का काम माना जाता है. इन दोनों मुगल समय के ग्रंथों में "कुंभ मेला" शब्द का उपयोग केवल हरिद्वार के मेले का वर्णन करने के लिए किया गया है, जिसमें प्रयाग और नासिक में आयोजित एक समान मेले का उल्लेख है.
खुलसत-उत-तवारीख में एक वार्षिक मेले और हरिद्वार में हर 12 साल में एक कुंभ मेले; त्र्यंबक में आयोजित एक मेले का उल्लेख है. 1620 के कुंभ में जहांगीर स्वयं हरिद्वार आकर रहा था. तैमूर का इतिहासकार शरफुरुद्दीन 1398 के कुंभ में हरिद्वार आया. उसने कुंभ मेले को आईनी किताब में दर्ज किया. .
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