भगवा से लेकर काले-सफेद वस्त्र क्यों पहनते हैं साधु-संत, शंकराचार्य से लेकर अखाड़ों तक जुड़ा है इतिहास
Kumbh Mela: भगवा रंग भारतीय संस्कृति का प्रतीक है. विशेषकर भारतीय समाज में यहां के साधु संत भगवा धारण करते है. भगवा त्याग का प्रतीक है, नई ऊर्जा का प्रतीक है और प्रतीक है अपने सर्वस्व समर्पण का.
Kumbh Mela: संगम नगरी प्रयागराज में कुंभ को लेकर सरगर्मी बढ़ी हुई है. कुंभ एक तरह से साधु संतों का एक जगह जुटने का मंच है. कुंभ में 13 अखाड़ों के साधु संत पहुंचते हैं. इसी साधु संत समाज में आपको कुछ लोग नागा साधु के रूप में दिखेंगे तो कुछ के तन पर कपड़ा मिलेगा. कपड़े भी अलग अलग रंग के होते हैं. अधिकतर साधु भगवा रंग पहनते हैं. आइए आपको अलग अलग रंग के वेशधारी संतों के बारे में बताते हैं.
कुंभ के दिनों साधु संत पूजा पाठ करने के अलावा अपना रोजमर्रा का जीवन भी जीते हैं. जिस तरह सनातन धर्म विविधताओं से भरा है उसी तरह संत समाज में भी आपको विभिन्न धाराएं मिल जाएंगी. साधु संतों के अलग अलग अखाड़ों की शुरुआत जगतगुरु शंकराचार्य जी के समय से बताई जाती है. उन्होंने सनातन का पुन: उद्धार कर उसे फिर से स्थापित किया. चार मठ बनाए जिसे आज हम गोवर्धन, शारदा , द्वारिका और ज्योतिर्मठ पीठ कहते हैं. उन्होंने संत समाज को श्रम करने और हथियार संचालन के लिए भी प्रेरित किया. जिससे सनातन की रक्षा भी हो सके. इसलिए अखाड़ों की शुरुआत हुई.
अखाड़ों में संत समाज को न सिर्फ धर्म की शिक्षा दीक्षा मिलती है बल्कि उनको धर्म की रक्षा करना भी सिखाया जाता है. यह अखाड़ा सिर्फ कुश्ती का नहीं बल्कि शास्त्रार्थ, धार्मिक चिंतन और विर्मश का बिंदु है. समय के साथ अखाड़ों में भी विविधता आई वे 13 हो गए. यही 13 अखाड़े कुंभ के समय पर पहुंचते हैं. 13 अखाड़ों में कुछ शैव हैं, कुछ वैष्णव हैं और कुछ उदासीन हैं.
भगवा परिधान वाले संत: शाक्य और शैव साधु भगवा पहनते हैं. भगवा रंग की अपनी एक ऊर्जा होती है.
सफेद परिधान: श्वेतांबर जैन संत सफेद परिधान पहनते हैं. जैन धर्म सनातन से ही निकला हुआ पंथ है. दिगंबर जहां निर्वस्त्र रहते हैं तो वहीं श्वेतांबर सफेद वस्त्र पहनते हैं.
काले परिधान वाले संत: काले परिधान वाले संत तंत्र साधना करते हैं और तांत्रिक कहलाते हैं. आपको इनके गले में रुद्राक्ष की माला और कंकाल तक दिख सकता है.