लाल बहादुर शास्त्री: स्वाभिमानी और सादगी पसंद PM, जिनकी अपील पर लोगों ने एक वक्त का खाना छोड़ा
लाल बहादुर शास्त्री के पास ना तो आलीशान घर था, ना ही कार और ना ही बैंक बैलेंस. रेल मंत्री रहते हुए एक रेल दुर्घटना हुई तो इसकी जिम्मेदारी लेते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता ऐसी रही कि उनके चरित्र पर कोई सवाल उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता था.
नोएडा: लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था. लाल बहादुर शास्त्री मात्र 16 वर्ष की उम्र में साल 1920 में भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे. स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैं. उन्होंने ही देश को 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था. एक बेहद साधारण से घर में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने और सार्वजनिक जीवन में दूसरे नेताओं के लिए ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता की तमाम मिसालें पेश कीं.
लाल बहादुर शास्त्री के पास ना तो आलीशान घर था, ना ही कार और ना ही बैंक बैलेंस. रेल मंत्री रहते हुए एक रेल दुर्घटना हुई तो इसकी जिम्मेदारी लेते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता ऐसी रही कि उनके चरित्र पर कोई सवाल उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता था. विपक्षी भी शास्त्री जी का सम्मान करते थे. उनका जीवन जितना सादा रहा उनकी मृत्यु उतनी ही रहस्यमय परिस्थितियों में हुई. आइए जानते हैं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण किस्से...
पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान को दिया था करारा जवाब
भारत-पाकिस्तान युद्ध खत्म हुए अभी चार दिन ही हुए थे. बात 26 सितंबर, 1965 की है. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों की भीड़ के सामने बोलना शुरू किया. शास्त्री ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल मोहम्मद अयूब खान पर तंज कसते हुए कहा, ''सदर अयूब ने कहा था कि वो दिल्ली तक चहलकदमी करते हुए पहुंच जाएंगे. वो इतने बड़े आदमी हैं. मैंने सोचा कि उन्हें दिल्ली तक चलने की तकलीफ क्यों दी जाए. हम ही लाहौर की तरफ बढ़ कर उनका इस्तकबाल करें'' दरअसल, मोहम्मद अयूब ने 5 फीट 2 इंच के कद वाले भारतीय प्रधानमंत्री शास्त्री का एक वर्ष पहले मजाक उड़ाया था. 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के बाद प्रधानमंत्री शास्त्री का रामलीला मैदान में दिया गया भाषण जनरल अयूब को करारा जवाब था.
एक अपील पर देशवासियों ने छोड़ा एक वक्त का भोजन
पाकिस्तान के खिलाफ 1965 के युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने युद्ध विराम नहीं किया तो हम आपको पीएल 480 के तहत जो लाल गेहूं भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे. उस समय भारत गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था. लाल बहादुर शास्त्री बहुत स्वाभिमानी व्यक्तित्व थे. उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन की बात बहुत गहराई तक चुभ गई. प्रधानमंत्री शास्त्री ने देशवासियों से अपील कि हम हफ्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे. लेकिन देशवासियों से यह अपील करने से पहले शास्त्री ने अपनी पत्नी ललिता से कहा था कि हमारे यहां सिर्फ एक वक्त का खाना ही बनेगा. भारत के लोगों ने अपने जनप्रिय प्रधानमंत्री की बात मानी और एक वक्त का भोजन करना छोड़ दिया था.
अपनी जेब से भरते थे सरकारी आवास का बिजली बिल
साल 1963 में कामराज योजना के तहत शास्त्री को नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था. उस समय वह भारत के गृहमंत्री थे.पत्रकार दिवंगत कुलदीप नैयर ने अपनी एक किताब में शास्त्री से मुलाकात का जिक्र करते हुए लिखा है, "उस शाम मैं शास्त्री के घर पर गया. पूरे घर में ड्राइंग रूम को छोड़ कर हर जगह अंधेरा छाया हुआ था. शास्त्री वहां अकेले बैठे अखबार पढ़ रहे थे. मैंने उनसे पूछा कि बाहर बत्ती क्यों नहीं जल रही है? शास्त्री ने जवाब में कहा कि अब उन्हें इस घर का बिजली का बिल अपनी जेब से देना पड़ेगा. इसलिए वह हर कमरे में बत्ती जलाना बर्दाश्त नहीं कर सकते.'' कुलदीप नैयर ने आगे लिखा है कि शास्त्री को सांसद की तनख्वाह के 500 रुपये के मासिक वेतन में अपने परिवार का खर्च चलाना मुश्किल पड़ रहा था.
अखबार में लिखकर चलाना पड़ाा था परिवार का खर्च
कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा ''बियॉन्ड द लाइन्स: एन ऑटोबायोग्राफी'' में लिखते हैं, "मैंने शास्त्री को अखबारों में लिखने के लिए मना लिया था. मैंने उनके लिए एक सिंडिकेट सेवा शुरू की जिसकी वजह से उनके लेख द हिंदू, अमृतबाजार पत्रिका, हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में छपने लगे. हर अखबार उन्हें एक लेख के 500 रुपये देता था. इस तरह उनकी 2000 रूपये की अतिरिक्त कमाई होने लगी. मुझे याद है कि उन्होंने पहला लेख जवाहरलाल नेहरू और दूसरा लेख लाला लाजपत राय पर लिखा था."
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निजी सचिव रहे सीपी श्रीवास्तव उनकी जीवनी ''लाल बहादुर शास्त्री अ लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स'' में लिखते हैं, "शास्त्री की आदत थी कि वो अपने हाथ से पॉट से प्याली में हमारे लिए चाय सर्व करते थे. उनका कहना था कि चूंकि ये उनका कमरा है, इसलिए प्याली में चाय डालने का हक उनका बनता है. कभी-कभी वह बातें करते हुए अपनी कुर्सी से उठ खड़े होते थे और कमरे में चहलकदमी करते हुए हमसे बातें करते थे. कभी-कभी कमरे में अधिक रोशनी की जरूरत नहीं होती थी. शास्त्री अक्सर खुद जाकर बत्ती का स्विच ऑफ करते थे. उनको ये मंजूर नहीं था कि सार्वजनिक धन की किसी भी तरह बर्बादी हो."
संदिग्ध परिस्थितियों में हुई लाल बहादुर शास्त्री की मौत
शास्त्री को ह्दय संबंधी बीमारी पहले से थी और 1959 में उन्हें एक हार्ट अटैक आया भी था. इसके बाद उन पर उनके परिजन और दोस्त उन्हें कम काम करने की सलाह देते थे. लेकिन 9 जून, 1964 को देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन पर काम का दबाव बढ़ता ही चला गया. भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला. युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी, 1966 में दोनों देशों के शीर्ष नेता तब के रूसी क्षेत्र में आने वाले ताशकंद में शांति समझौते के लिए रवाना हुए. पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब वहां गए. 10 जनवरी को दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया. पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी के तड़के उनकी अचानक उनकी मौत हो गई. हालांकि, आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई.
कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में 'बियोंड द लाइन' में लिखा है, "उस रात मैं सो रहा था, अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया. उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा. मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदा में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे. मैंने देखा कि उनका चप्पल कॉरपेट पर रखा हुआ है और उसका प्रयोग उन्होंने नहीं किया था. पास में ही एक ड्रेसिंग टेबल था जिस पर थर्मस फ्लास्क गिरा हुआ था जिससे लग रहा था कि उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की थी. कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी.'' उनका पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया. एक पीएम के अचानक निधन के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जाना संदेह की ओर इशारा करता है. उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई. ये दोनों लोग शास्त्री के साथ ताशकंद दौरे पर गए थे. इन कारणों से शास्त्री की मौत को साजिश बताया जाता है.
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