Pratapgarh Loksabha Seat: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर देशभर में सरगर्मियां तेज हैं. उत्तर प्रदेश में भी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी समेत सभी राजनैतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं. वोट बैंक को साधने के लिए पार्टियां हर संभव प्रयास कर रही हैं. कहा जाता है कि केंद्र में सत्ता की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जिनका किसी भी राजनीति दल की गणित बनाने-बिगाड़ने में अहम रोल होता है. इस आम चुनाव में यूपी की 80 सीटों पर मुख्य मुकाबला एनडीए वर्सेज इंडी गठबंधन का है. ऐसे में आज हम आपको प्रतापगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सियासी समीकरण के बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइये जानते हैं...


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नौ बार कांग्रेस, दो बार जीती बीजेपी 
प्रतापगढ़ लोकसभा सीट देश की चर्चित सीटों में शामिल रही है. एक समय में यह कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे राजा दिनेश सिंह यहीं से चुनकर सांसद रहे हैं. अब तक इस सीट पर 16 चुनाव हुए, जिनमें दस बार पूर्व राजघरानों का कब्जा रहा. कालाकांकर के राजपरिवार से आने वाले पूर्व विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने यहां से चार बार सांसद रहे. वहीं, उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह ने तीन बार प्रतिनिधित्व किया. इसके अलावा दो बार यहां से प्रतापगढ़ रियासत के अजीत प्रताप सिंह सांसद रहे और एक बार उनके बेटे अभय प्रताप सिंह. अजीत प्रताप सिंह पहली बार जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीते. उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर जबकि अभय प्रताप सिंह ने 1991 में जनता दल से जीत हासिल की थी. यहां सबसे ज्यादा नौ बार यहां कांग्रेस जीती. इसके अलावा एक-एक बार बीजेपी, सपा, अपना दल, जनसंघ और जनता दल के प्रत्याशी भी एक-एक बार यहां से जीते हैं.


प्रतापगढ़ सीट का इतिहास 
प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी. एक समय इसका बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आता था. 1957 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय चुनाव जीतकर सासंद बने. 1962 में जनसंघ से अजीत प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. 1967 में कांग्रेस ने दोबारा विजय पताका फहराया और दिनेश सिंह सांसद बने. दिनेश सिंह ने इस सीट पर लगातार दो बार जीत हासिल की. इसके बाद 1977 में रुपनाथ सिंह यादव ने भारतीय लोकदल से चुनाव लड़ा और दिनेश सिंह को हैट्रिक बनाने से रोकते हुए कुर्सी पर काबिज होने में कामयाब रहे. 


अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर 1980 का चुनाव जीता, लेकिन 1984 में पार्टी ने दिनेश सिंह को फिर से मैदान में उतारा. नतीजतन जनता ने दो बार लगातार 1984 और 1989 में उन्हें अपना सांसद चुना. 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह यहां से सांसद बने. 1996 में हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह ने राजनीति में कदम रखा. जनता ने जमकर वोट दिया और इस तरह वह प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बन गईं. 


1998 में बीजेपी से राम विलास वेदांती चुनाव लड़े और यहां पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रहे. हालांकि 1999 में राजकुमारी रत्ना सिंह ने उन्हें हरा दिया. इसके बाद 2004 में समाजवादी पार्टी के अक्षय प्रताप सिंह चुनाव जीते. 2009 के चुनाव में कांग्रेस की रत्ना सिंह फिर सांसद बनीं. 2014 में यह सीट बीजेपी की साथी अपना दल के खाते में गई और कुंवर हरिबंश सिंह यहां से सांसद चुने गए. 2019 में यह सीट अपना दल के खाते से बीजेपी के पास आ गई. बीजेपी ने अपना दल के ही एक विधायक संगमलाल गुप्ता को टिकट दिया. वर्तमान में प्रतापगढ़ के विधायक संगमलाल गुप्ता ही हैं. 


क्या है जातीय समीकरण?  
2011 के जनगणना के मुताबिक, प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर कुल आबादी लगभग 23 लाख है. जिसमें 94.18 फीसदी ग्रामीण और 5.82 फीसदी शहरी आबादी शामिल है. यहां 19.9 फीसदी अनुसूचित जाति जबकि 14 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. इस सीट पर राजपूत, कुर्मी और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. 


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