Jayant Chaudhary: राजनीति के नए पलटूराम बनेंगे जयंत चौधरी!, इन 5 वजहों से BJP के पाले में आ गई RLD
Lok Sabha Election 2024: भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए सभी विपक्षी दलों के गठबंधन `INDIA` को बिहार के बाद यूपी में भी झटका लगने वाला है. सूत्रों से जानकारी मिली है कि RLD चीफ जयंत चौधरी कभी भी पटली मार सकते हैं. आगे जानें भाजपा ने ऐसे कौन से बड़े ऑफर दिए जयंत चौधरी को?....
Jayant Chaudhary: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में भारतीय जनता पार्टी को हराने की मंशा से बना 'INDIA' गठबंधन में फिलहाल सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. बीते दिनों इस गठबंधन के बड़े नाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना पाला बदलकर अपने पुराने साथियों के साथ 'NDA' में वापस आ गए हैं. अब सूत्रों से खबर आ रही है कि 'INDIA' गठबंधन के एक और साथी राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी भी अपना पाला बदल सकते हैं. खबर है कि वो लोकसभा चुनाव के लिए 'NDA' का दामन थाम सकते हैं. माना जा रहा है कि बीजेपी ने उनको यूपी में 4 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है. आगे जानें ऐसी कौन सी 5 वजह हैं जिनके कारण 'INDIA' गठबंधन को बाय बोल सकते हैं जयंत चौधरी?....
पहली वजह
जयंत चौधरी ने सपा के साथ गठबंधन कर कई चुनाव लड़े हैं और जीते हैं. अखिलेश यादव से भी उनके संबंध अच्छे बताए जाते हैं, लेकिन सपा के कम होते ग्राफ को देखते हुए रालोद को गठबंधन बनाए रखने में कोई खासा फायदा नजर नहीं आ रहा है. 2022 में सपा से समर्थन से राज्यसभा गए जयंत चौधरी का मानना है कि भाजपा के साथ जाने से उनकी जीत का औसत और अधिक बढ़ जाएगा. सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सपा के साथ 7 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद कितनी सीटों पर जीत मिलेगी इसकी लेकर रालोद में संशय है. इसी वजह से सपा की 7 सीटों का लोभ छोड़ रालोद बीजेपी के साथ 4 सीटों में जाने को तैयार है.
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पार्टी की मान्यता पर भी है संकट
दूसरी वजह यह है कि रालोद के आगे राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी का दर्जा छिनने का भी खतरा है. यदि उसका वोट शेयर कम रहेगा तो फिर यह संकट उसके दरवाजे पर होगा. ऐसे में रालोद को लगता है कि वह भाजपा के साथ जिन सीटों पर लड़ेगी, वहां उसकी जीत की संभावनाएं अधिक होंगी और वोट प्रतिशत भी ज्यादा होगा. रालोद ने 2009 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ा था और तब उसे 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. रालोद इसी मॉडल को एक बार फिर से दोहराना चाहती है.
कोर वोटर खोने का डर
तीसरी और सबसे बड़ी वजह पार्टी के वोट बैंक के ही बिखरने का संकट है. दरअसल रालोद को जाट मतदाताओं की पार्टी माना जाता है, लेकिन 2017, 2019 और 2022 में जाट वोट बंट गए थे. इसकी वजह यह है कि भाजपा को भी जाट मतदाता बड़ी संख्या में वोट करते रहे हैं. खासतौर पर तब उनका झुकाव भाजपा की ओर अधिक होता है, जब रालोद के जीतने की संभावना न हो. इसलिए रालोद जाटों के एकमुश्त वोट पाने और अन्य समुदायों को भी साथ जोड़ने के लिए भाजपा के पाले में जाना चाहती है.
अखिलेश के ऑफर से नाराज जयंत
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जयंत चौधरी अखिलेश यादव के 7 सीटों वाले प्रस्ताव से नाराज थे. सपा ने आरएलडी को जो सात सीटें दी हैं उनमें चार सीटों पर रालोद के सिंबल पर सपा के उम्मीदवारों को लड़ने का प्रस्ताव दिया गया है. जिसके बाद से जाट कार्यकर्ताओं द्वारा उन पर गठबंधन तोड़ने का दबाव है. वहीं भाजपा ने उन्हें तीन से चार सीटों का ऑफ़र दिया गया है. इनमें मथुरा और बागपत की सीटें आरएलडी की दी जा सकती है. जबकि एक राज्यसभा सीट भी दी जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद को 3 सीटें दी गई थीं, लेकिन उन्हें एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई थी. वहीं साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी रालोद ने 33 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से पार्टी को नौ सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
'INDIA' गठबंधन से लोगों की नाराजगी
राजनीतिक एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि भाजपा से कम सीटें मिलने के बावजूद जयंत चौधरी उसके नेतृत्व वाले NDA गठबंधन से जुड़ने में अपना लाभ देख रहे हैं. दरअसल राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश में भाजपा के समर्थन में लहर बनी है. इससे माना जा रहा है कि इंडी गठबंधन की पार्टियों की राह मुश्किल हुई है. खासतौर पर कांग्रेस की तरफ से जिस तरह राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जाने का फैसला लिया गया और उसका विरोध किया गया, उससे हिंदी पट्टी के इलाकों में जनता के बीच उसका विरोधी माहौल बनने की बात मानी जा रही है. राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि जयंत चौधरी को भी लग रहा है कि राम मंदिर की लहर में भाजपा के विरोध में रहकर जीत हासिल करना मुश्किल होगा, जबकि उसके खेमे में रहने पर जीत पक्की हो सकती है. यही कारण है कि जयंत चौधरी कम सीटों के बावजूद भाजपा खेमे से जुड़ने को तैयार हो गए हैं.