UP में सपा-कांग्रेस और बसपा को महागठबंधन होता तो विपक्ष कितनी सीटेंं जीतता, BJP की बढ़ जाती टेंशन
UP Election Results 2024: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए चौंकाने वाले रहे हैं. बीजेपी सहयोगी दलों के साथ 60 से 65 सीटें ंजीतने का अनुमान लगाए बैठे थे, लेकिन उसे बस 33 सीटें ही मिल पाईं, जो पार्टी के लिए बड़ा झटका है.
Uttar Pradesh Lok Sabha Election Results 2024: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रस ने मिलकर 45 सीटें जीत लीं, लेकिन अब यह बात भी सामने आ रही है कि अगर सपा-कांग्रेस के साथ बसपा का महागठबंधन होता तो बीजेपी कितने सीटों पर सिमट जाती.
अगर चुनाव आयोग के सभी 80 सीटों पर आंकड़ों को देखें तो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को 15 सीटों पर मिले वोट ने सपा-कांग्रेस के गठबंधन का खेल बिगाड़ दिया. समाजवादी पार्टी को यूपी में 11 और कांग्रेस को चार लोकसभा सीटों का खामियाजा इस कारण भुगतना पड़ा. ऐसे में महागठबंधन होता तो शायद विपक्ष का आंकड़ा 60 पार कर जाता. तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी ललितेश कुमार त्रिपाठी भी हारे, वहां बसपा को मिले वोटों का अंतर ही निर्णायक साबित हुआ.
उत्तर प्रदेश में उन्नाव, शाहजहांपुर, मिश्रिख, हरदोई, बासगांव, बिजनौर, फतेहपुर सीकरी, फर्रुखाबाद, मिर्जापुर, अमरोहा, अकबरपुर, अलीगढ़, भदोही, देवरिया, फूलपुर जैसी लोकसभा सीटों पर अंतर इतना कम था कि अगर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को मिला वोट वहां जोड़ दिया जाता तो विपक्षी गठबंधन कहीं आगे निकल जाता. सपा-कांग्रेस और बसपा साथ होते तो नगीना लोकसभा सीट जो आजाद समाज शोषित पार्टी के प्रत्याशी चंद्रशेखर ने जीती है, वहां भी नतीजा कुछ और होता.
दरअसल, उत्तर प्रदेश कांग्रेस की भरसक कोशिश रही कि लोकसभा चुनाव के पहले बिहार की तरह यूपी में भी भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाया जाए ताकि वोटों का बिखराव न हो, लेकिन अखिलेश यादव की जिद के आगे उसे हार माननी पड़ी. बसपा को लेकर गठबंधन में देरी कर रही कांग्रेस को संकेत देने के लिए अखिलेश ने खुद ही तमाम सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने शुरू कर दिए, यहां तक कई कांग्रेस को कितनी सीटें दी जाएंगी, उसका भी एकतरफा ऐलान कर दिया.
अखिलेश को यकीन था कि वो बसपा को चुनाव में वोट कटवा पार्टी साबित कर पाएंगे. उन्हें भरोसा था कि मुसलमान वोट इस बार भाजपा को हराने के लिए सपा के ही साथ ही आएगा. लिहाजा उन्हें पीडीए का फार्मूला चला और पिछड़ों दलितों को ही ज्यादा टिकट बांटे. मुस्लिमों को पिछली बार की तरह ज्यादा टिकट न बांटने और उनसे जुड़े मुद्दों को न उठाने की आलोचना की परवाह भी अखिलेश ने नहीं की. एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और पल्लवी पटेल आदि के द्वारा खड़ा किया गया पीडीएम भी बेदम साबित हुआ.