Electoral Bonds News: चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए सरकार को बड़ा झटका दिया है. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया और इसे रद्द भी कर दिया. पिछले पांच साल के चंदे का हिसाब भी सुप्रीम कोर्ट ने मांगा है. अब निर्वाचन को यह जानकारी देनी होगी कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने और कितना चंदा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से वह पूरी जानकारी जुटाकर इसे वेबसाइट पर शेयर भी करे. सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले से उद्योग जगत भी बड़ा झटका लगेगा, ऐसा माना जा रहा है.

 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर वकील प्रशांत भूषण ने क्या रिएक्शन दिया है, आइए जानते हैं.

चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि "एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले में, जिसका हमारे चुनावी लोकतंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना और कंपनियों में आयकर अधिनियम में इसे लागू करने के लिए किए गए सभी प्रावधानों को रद्द कर दिया है। अधिनियम आदि सब कुछ रद्द कर दिया गया है। उनका मानना ​​है कि यह नागरिकों के यह जानने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है कि राजनीतिक दलों को इतना पैसा कौन दे रहा है."

 

कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा कि-

इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक ठहराने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक एवं स्वागतयोग्य है। इलेक्टोरल बॉन्ड ने भ्रष्टाचार को बढ़ाने का काम किया। इसने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता को खत्म किया और सत्ताधारी पार्टी भाजपा को सीधे लाभ पहुंचाया। मैंने बार-बार कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड आजाद भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक है। आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एनडीए सरकार का एक बड़ा घोटाला है। यह फैसला देर से आया पर देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए बेहद ही जरूरी फैसला है। सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद।

 

शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने लिखा

- वे सभी कॉर्पोरेट घराने जो इस सरकार में शामिल थे, जो चुनावी प्रथाओं के इस भ्रष्टाचार में भागीदार बने, अब चिंतित होंगे।

 

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल कहते हैं-

"यह न केवल किसी, ख या ग राजनीतिक दल के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी आशा की एक बड़ी किरण है। यह इस देश के नागरिकों के लिए आशा की एक बड़ी किरण है। यह पूरी योजना जिसके दिमाग की उपज थी मेरे दिवंगत मित्र अरुण जेटली की योजना वास्तव में भाजपा को समृद्ध करने के लिए बनाई गई थी। क्योंकि हर कोई जानता था कि भाजपा सत्ता में थी और चुनावी बांड योजना के माध्यम से कोई भी दान भाजपा के पास आएगा। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस चुनावी बांड योजना ने चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है। यह वास्तव में कॉर्पोरेट क्षेत्र और भाजपा के बीच का बंधन था, जिसे सबसे अधिक दान मिला। और पिछले कुछ वर्षों में उन्हें जो दान मिला, वह लगभग पांच से 6000 करोड़ तक था। अब आपके पास 5000 से 6000 करोड़ के साथ है किटी जिसका उपयोग चुनावों में बिल्कुल नहीं किया जाना है। आप एक राजनीतिक दल के रूप में अपना बुनियादी ढांचा तैयार कर सकते हैं। आप आरएसएस के लिए बुनियादी ढांचा तैयार कर सकते हैं। आप पूरे देश में अपना संचार नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं।"

 

ज्ञात हो कि साल सरकार राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए 2018 में चुनावी बॉन्ड स्कीम लेकर आई जिसके खिलाफ याचिका दायर की गई. यह याचिका 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म' (एडीआर), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्किस्ट) और कांग्रेस नेता जया ठाकुर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया था जिस पर आज यानी 15 फरवरी, गुरुवार को फैसला सुनाया गया है.