बलरामपुर/पवन कुमार तिवारी: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में शहरी आवास योजना में बड़े स्तर पर हुए फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ है. इस मामले में नगर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए तीन इंजीनियर और चार लाभार्थियों को गिरफ्तार किया है. इन पर आरोप है कि जियो टैगिंग का दुरुपयोग कर उन्होंने योजना में फर्जी भुगतान हासिल किया. 


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बलरामपुर के दो नगर पालिका, आदर्श नगर पालिका बलरामपुर और नगर पालिका उतरौला के साथ-साथ तुलसीपुर और पचपेड़वा नगर पंचायत में यह फर्जीवाड़ा सामने आया है. पुलिस अधीक्षक बलरामपुर, विकास कुमार ने इस मामले में बड़ी संख्या में अनियमितताएं पाए जाने की पुष्टि की है, जिनमें 28 मामले स्पष्ट रूप से फर्जीवाड़े से जुड़े हुए हैं.


शिकायत के बाद खुला मामला
मामला 24 अक्टूबर 2024 को उस वक्त उजागर हुआ जब नीरज कुमार सिंह ने नगर कोतवाली में शहरी आवास योजना में हो रहे फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज करवाई. शिकायत के आधार पर पुलिस ने जांच शुरू की और विभिन्न दस्तावेजों तथा जियो टैगिंग का विश्लेषण किया. जांच के दौरान, पुलिस को 28 ऐसे मामले मिले, जिनमें फर्जी तरीके से भुगतान कराया गया था. इसके बाद पुलिस ने 48 घंटों के भीतर कार्रवाई की और तीन इंजीनियरों समेत चार लाभार्थियों को गिरफ्तार कर लिया.


कैसे किया गया फर्जीवाड़ा, जाने पूरा मामला
शहरी आवास योजना का उद्देश्य जरूरतमंदों को आवास मुहैया कराना है, लेकिन कुछ अधिकारियों और लाभार्थियों ने इसका गलत तरीके से लाभ उठाने की कोशिश की. पुलिस की जांच के अनुसार, कुछ मामलों में ऐसे मकानों पर दोबारा भुगतान करवाया गया जिन्हें पहले ही आवास योजना का लाभ मिल चुका था. 


जियो टैगिंग कर किया गया फर्जीवाड़ा
इन मकानों को जियो टैगिंग के जरिए दोबारा अपलोड कर नए मकानों की तरह दिखाया गया. कुछ जगहों पर फर्जी जियो टैगिंग के जरिए दूसरों के निर्माणाधीन मकानों को भी अपलोड किया गया और बिना निर्माण पूरा हुए ही भुगतान करवाया गया. पुलिस के अनुसार, फर्जीवाड़े के इस जाल में इंजीनियरों की संलिप्तता पाई गई है, जो जियो टैगिंग और भुगतान प्रक्रियाओं को अंजाम देने में शामिल थे.


इन अभियुक्तों को किया गया गिरफ्तार
इस मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों में आदर्श नगर पालिका बलरामपुर के इंजीनियर कार्तिक मोदनवाल और विजय कुमार यादव शामिल हैं, जबकि नगर पालिका उतरौला के इंजीनियर अनिमेष तिवारी भी इस गिरोह का हिस्सा पाए गए हैं. लाभार्थियों में मोहम्मद वसीक और मोहम्मद समीर का नाम शामिल है, जिनके पास पहले से आवास योजना का लाभ था, इसके बावजूद फर्जी जियो टैगिंग के जरिए दोबारा भुगतान हासिल किया गया. इसी तरह, नगर पालिका उतरौला के लाभार्थियों राहुल और रोहित सिंह को भी निर्माण कार्य पूरा न होते हुए संपूर्ण भुगतान लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.


पुलिस अधीक्षक ने दी मामले पर जानकारी
पुलिस अधीक्षक विकास कुमार ने बताया कि शहरी आवास योजना में फर्जीवाड़ा कई स्तरों पर किया गया है. जांच के दौरान यह पाया गया कि कुछ मकानों का निर्माण केवल पहले चरण तक हुआ है, लेकिन संपूर्ण भुगतान किया गया है. इसके अलावा, कुछ मामलों में अन्य लोगों के मकानों की तस्वीरें लगाकर जियो टैगिंग की गई है.


उन्होंने बताया कि इस मामले में अब तक 28 संदिग्ध मामलों का पता चला है और आने वाले दिनों में अन्य संदिग्धों की भी गिरफ्तारी हो सकती है। पुलिस ने मामले की गहराई से जांच के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी गठित की है, जो जियो टैगिंग और भुगतान प्रणाली की सटीकता की जांच करेगी.


फर्जीवाड़े का प्रभाव और आगे की जांच
इस फर्जीवाड़े का असर शहरी आवास योजना की छवि और विश्वास पर पड़ा है, जिसका उद्देश्य जरूरतमंदों को घर देना है. लेकिन, इन भ्रष्टाचारियों ने अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए योजना का दुरुपयोग किया, जिससे सरकार की योजनाओं पर लोगों का विश्वास कमजोर हो सकता है. पुलिस का कहना है कि दोषियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी, ताकि भविष्य में ऐसे फर्जीवाड़े को रोका जा सके. पुलिस ने जानकारी दी है कि इन अभियुक्तों से पूछताछ जारी है, जिससे अन्य संलिप्त लोगों का भी पता लगाया जा सके. पुलिस यह भी जांच कर रही है कि कहीं और अधिकारी इस षड्यंत्र में शामिल तो नहीं हैं.


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