Supreme Court Reaction On Dowry Prohibition Act: बेंगलुरु की आईटी कंपनी में इंजीनियर अतुल सुभाष के सुसाइड केस ने दहेज कानून के लगातार बढ़ते दुरुपयोग की चर्चा को फिर उभार दिया है. पति-पत्नी औऱ मायके-ससुराल वालों की अनबन के बीच दहेज अधिनियम की धारा 498ए एक हथियार बन गई है, जो एक्ट को बनाए जाने के मकसद पर ही चोट कर रही है. दहेज उत्पीड़न के कई सालों से चल रहे केस में अपने और परिवार के मानसिक उत्पीड़न से अतुल सुभाष हार गए.  


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 देश में एक मई 1961 को प्रभावी बनाया गया था. यह दहेज की कुप्रथा के खिलाफ रोक का पूरे देश में लागू करने का कानून था. इसके तहत दहेज प्रथा पर रोक और दहेज की वजह से लड़कियों के शोषण-उत्पीड़न पर रोक लगाना इसका उद्देश्य था.  


दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 कब बना
दहेज के लिए लड़कियों को मारने-पीटने, मार डालने या मानसिक उत्पीड़न जैसे मामलों को लेकर यह कानून लाया लाया गया था. इसमें दहेज के लेनदेन को अपराध बनाया गया था. इस कानून में बार-बार संशोधन भी किया गया है.


दहेज क्या है


इस कानून की धारा 2 में 'दहेज' की व्याख्या की गई है. दहेज को परिभाषित करते हुए कहा गया है.  यह शादी के दौरान वर पक्ष से वधू पक्ष को दी गई हर तरह की संपत्ति है. यह संपत्ति किसी भी प्रकार की हो सकती है. नकद, गहने, जमीन-मकान और बैंक में पैसे ट्रांसफर आदि भी इसमें शामिल है.


दहेज कानून की खास बातें


यह कानून सभी धर्मों जातियों पर लागू होता है. 
दहेज का अर्थ किसी भी संपत्ति या मूल्यवान वस्तु को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मांगना 
दहेज लेने या देने पर 5 साल जेल, 15,000 रुपये या दहेज के मूल्य से जो भी ज़्यादा हो, उस पर सजा 
साल 1984 में हुए संशोधन के मुताबिक, पति के परिवार द्वारा दहेज हत्या के लिए उकसाना माना गया.
 साल 1986 में हुए संशोधन के मुताबिक, दहेज की मांग करना गैरकानूनी माना गया