Barabanki News: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में भारतीय हॉकी टीम के महान खिलाड़ी रहे केडी सिंह बाबू की बाराबंकी में स्थित मशहूर हवेली को सील कर दिया गया है. बताया गया है कि करीब 18 सालों से पारिवारिक विवाद चल रहा था. जिसके चलते एसीजेएम 16 कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए हवेली रह रहे लोगों को हवेली खाली करने के निर्देश दिए. इसके बाद हवेली को सील कर दिया गया. इस दौरान सुरक्षा को ध्यान मे रखते हुए भारी पुलिस बल को भी तैनात किया गया.


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जाने क्या है मामला
दरअसल यह मामला बाराबंकी के नगर कोतवाली क्षेत्र के सिविल लाइन इलाके का है. इसी क्षेत्र में स्वर्गीय केडी सिंह बाबू की हवेली भी स्थित है. यह हवेली उनके समय में अपनी शान और शौकत के लिए जानी जाती थी. केडी सिंह बाबू के समय पर हवेली में इंटरनेशनल खिलाड़ी और देश के बड़े नेताओं का जमवाड़ा लगा रहता था. हालांकि उनके निधन होने के बाद से धीरे-धीरे यह हवेली वीरान होने लगी. आलम यह हुआ है कि आज पारिवारिक विवाद के चलते इस हवेली को सील होने के बाद नीलामी की कगार पर आ गई है.


सन् 1910 में यह हवेली बनी 
केडी सिंह बाबू के भतीजे राघवेंद्र सिंह से बातचीत में यह पता चला कि यह हवेली सन 1910 में उनके दादा ने करीब 36 हजार स्क्वायर फीट में बनवाई थी. उनके छह बेटे थे. जिनमें कुंवर राजेंद्र सिंह,  कुंवर भूपेंद्र सिंह,  कुंवर सुखदेव सिंह,  कुंवर नरेश सिंह,  कुंवर दिग्विजय सिंह बाबू (केडी सिंह) और सबसे छोटे मेरे पिता कुंवर सुरेश सिंह थे. साल 2006 में परिवार के हमारे सभी भाइयों में एग्रीमेंट हुआ था कि जब हम सभी को बाहर ही रहना है, तो इस प्रॉपर्टी को बेच दिया जाए. लेकिन बाद में एक भाई बेचने से मुकर गया.  फिर इसके बाद यह मुकदमा कोर्ट में शुरू हुआ था.


18 साल बाद कोर्ट से मिली राहत
केडी सिंह के भतीजें राघवेंद्र सिंह ने यह बताया कि 18 साल बाद कोर्ट से राहत मिली है. अब कोर्ट से इस हवेली के सील होने के बाद इस प्रॉपर्टी की नीलामी होगी और इसके पैसे भी आपस बंटेगे. जज जीशान मसूद की कोर्ट में यह फैसला सुनाया गया है. वहीं इसमें चलने वाले एक प्राइवेट स्कूल के एग्जाम होने के बाद 7 मार्च को उसे भी हटा दिया जाएगा.


यह वक्फ की संपत्ति है 
वहीं इस बीच सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुतवल्ली इमाम अली ने इस हवेली को लेकर कहा बताया है कि यह प्रॉपर्टी 2 बीघे 14 बिस्वा है और ये वक्फ की संपत्ति है. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के लखनऊ में यह संपत्ति दर्ज है. इनसे सालाना 30 रुपये किराया भी वसूल किया जाता था. ये वक्फ की संपत्ति होने के नाते बिक नहीं सकती है. वहीं लेकिन जब इसे लेकर स्वर्गीय केडी सिंह बाबू के भतीजे राघवेंद्र सिंह से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह वक्फ की संपति नहीं है. इस हवाले को हमारे दादा ने सन 1910 में बनवाया था.


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