अतीक अहमद/लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी नवाबों का शहर लखनऊ अपनी विरासत,तहजीब और कला के लिए प्रसिद्ध है. इस शहर की एक ऐसी कला है. जिसे लोगों ने खूब सराहा है, जो है सोने और चांदी की बनी ताजिया की कारीगरी. मोहर्रम में लखनऊ के सराफा बाजार में यह ताजिया खरीदने के लिए दूर-दराज से लोग आ रहे हैं. इन ताजियों को बनाने में काफी मेहनत लगती है, जिनको कई कारीगर मिलकर बनाते हैं. 


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क्या बोले दुकानदार?
सोने और चांदी की ताजिया कैसे बनती है, इसको जानने के लिए जब हम लखनऊ के चौक सराफा मार्केट में पहुंचे तो दुकानदार कादीर ने बताया कि जिसकी जो हैसियत और अकीदत होती है, वह अपने हिसाब से सोने और चांदी की ताजिया खरीदता है. चांदी, सोने की ताजिया, हम सबको ऑर्डर पर बना देते हैं. कादीर ने यह भी बताया कि कागज की ताजिया को दफनाया जाता है.लेकिन चांदी या सोने की ताजिया को दफनाया नहीं जाता है, इसको लोग घरों और इमामबाड़े में रखते हैं.


ऐसे किया जाता है तैयार
बता दें कि चांदी की बनी ताजिया 20 कारीगरों के हाथों से बनती है. ताजिया की कारीगरी कोई सामान्य काम नहीं है. यह बहुत मेहनत का काम है. पहले चांदी को गलाया जाता है, फिर इसको वरक पर पीटा जाता है. कदीर ने बताया कि हर ताजिया कम से कम 20 कारीगरों के हाथों से गुजरता है. हर कोई इस कारीगरी को नहीं कर सकता. ताजिया की कीमत उसकी कारीगरी पर निर्भर करती है.


दूर-दूर से खरीदने आते हैं लखनऊ में चांदी और सोने की ताजिया
दुकान से ताजिया खरीदने आए शख्स ने कहा कि लखनऊ में जितने बड़े पैमाने पर आजादारी होती है, वो शायद ही कहीं और होती हो. वह यह भी बताते हैं कि लोग अपनी हैसियत के अनुसार घरों में सोने और चांदी की ताजिया रखते हैं. कागज की ताजिया को दफना दिया जाता है, जबकि सोने और चांदी की ताजिया को सुरक्षित रखा जाता है.


50 सालों से पहले बनाई जा रही है लखनऊ में चांदी सोने की ताजिया
वहीं अगर बात करें सोने और चांदी की ताजियों की तो लगभग 50 वर्षों से लखनऊ में बनाई जा रही हैं. जिसको खरीदने के लिए उत्तर प्रदेश से अलग-अलग जिलों से लोग यहां पर आते हैं. सोने के ताजिया तभी यह कारीगर बनाते हैं. जब उसका ऑर्डर मिल जाता है. चांदी की ताजिया अक्सर दुकानों पर रखी रहती हैं.जिसको आकर ग्राहक खरीद कर लेकर चले जाते हैं.


बता दें कि लखनऊ की ताजिया कारीगरी ने अपनी विशेषता और अद्वितीयता के साथ लोगों का मन मोह लिया है. यह न केवल एक कला का प्रदर्शन है, बल्कि यह भावनाओं, आस्था की गहराई और सम्प्रदायों के बीच साझेदारी का भी प्रतीक है.


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