भारत में बनी कोरोना वैक्सीन को लेकर राहत भरी खबर, रिसर्च में आये चौंकाने वाले नतीजे
एरा मेडिकल कॉलेज की रिसर्च में इन बिंदुओं पर केंद्रित थी कि देश में बनी कोरोनावायरस की वैक्सीन कितनी और कितने समय के लिए प्रभावशाली है.
लखनऊ: लखनऊ के एरा मेडिकल कॉलेज में कोविशील्ड वैक्सीन के प्रभाव और करोना संक्रमण के बचाव पर रिसर्च किया गया है. जिसमें भारत में बनी कोविशील्ड वैक्सीन को काफी प्रभावशाली पाया गया है, जो एक बड़ी राहत भरी खबर है. सिरों कन्वर्जन स्टडी में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिसकी जानकारी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एरा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने दी है.
रिसर्च में शामिल रहे ये मुख्य बिंदु
एरा मेडिकल कॉलेज की रिसर्च में इन बिंदुओं पर केंद्रित थी कि देश में बनी कोरोनावायरस की वैक्सीन कितनी और कितने समय के लिए प्रभावशाली है. साथ ही विभिन्न आयु वर्ग पर इसका कितना प्रभाव रहा अथवा महिला और पुरुषों पर इसका क्या असर रहा वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी जिन लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ, उनमें वैक्सीन कितनी कारगर साबित हुई है.
एरा मेडिकल कॉलेज ने वैक्सीन की दोनों डोज़ ले चुके कुल 246 स्वास्थ्य कर्मियों का लाटरी के माध्यम से चयन किया गया. उनके शरीर में बनने वाली विकसित एंटीबॉडी पर रिसर्च शुरू किया. चयनित स्वास्थ्य कर्मियों में 34 डॉक्टर 35 नर्सिंग स्टाफ 65 पैरामेडिकल हाउसकीपिंग और और 42 सुरक्षाकर्मी शामिल थे. जिनके नतीजे रिसर्च के दौरान काफी राहत भरे और चौंकाने वाले आए.
97.6 प्रतिशत एंटीबॉडी बनाने में सक्षम भारतीय वैक्सीन
लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एरा मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एम एम ए फरीदी ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि भारत में बनी वैक्सीन से 97.6 प्रतिशत एंटीबॉडी बनाने में सक्षम है. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एम एम ए अफरीदी ने बताया कि वैक्सीन की दूसरी डोज़ लेने के 1 महीने के बाद की रिसर्च में 93.1 प्रतिशत यानी 229 लोगों में विकसित एंटीबॉडी सिरोपोजिटिव पाई गई.
बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं में अच्छी एंटीबॉडी बनी
सिर्फ 17 लोगों यानी 6.9% लोगों में विकसित एंटीबॉडी नहीं पाई गई. जिन स्वास्थ्य कर्मियों में एंटीबॉडी नहीं मिली, उनमें 27.3 प्रतिशत 60 वर्ष के ऊपर के थे और मात्र 1.5 प्रतिशत 18 से 29 वर्ष के स्वास्थ्य कर्मी थे. इन 17 लोगों में 6 महिलाएं हैं. उन्होंने बताया कि इसे महिला और पुरुष के अनुपात में देखें तो 35. 3 प्रतिशत महिलाओं में और 64. 7% पुरुषों में एंटीबॉडी नहीं पाई गई. उन्होंने कहा कि इससे यह साफ होता है कि 60 वर्ष से अधिक वालों में एंटीबॉडी कम बनती है और संख्या के हिसाब से पुरुषों के मुकाबले अधिकतर महिलाओं में विकसित एंटीबॉडी पाई जाती है.
शोध में शामिल हुए थे 18 से 79 वर्ष के लोग
शोध में 18 से 79 वर्ष के लोगों को शामिल किया गया था. जिसमें पाया गया कि बुजुर्गों के मुकाबले युवाओं में अच्छी एंटीबॉडी बनी हैं. जिन लोगों में एंटीबॉडी नहीं बनी वह 60 वर्ष से अधिक लोगों की संख्या में शामिल है. जबकि 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या मात्र 1.5 प्रतिशत है. शोध से यह भी स्पष्ट है कि समय के साथ-साथ शरीर में एंटीबॉडी बनने की संभावना बनी रहती है.
4 माह की स्टडी के बाद पाया गया कि 17 में से 14 में 4 माह विकसित एंटीबॉडी पाई गई. वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के 6 से 12 सप्ताह के अंदर कुल 246 स्वास्थ्य कर्मियों में से मात्र 18 लोगों को ही दूसरी लहर में कोरोनावायरस हुए. इनमें 15 में एंटीबॉडी बनी थी जबकि तीन में नहीं बनी थी. सिरोपॉजिटिव वाले जो 15 हेल्थ वर्कर कोरोना संक्रमित हुए उनमें एंटीबॉडी का स्तर अन्य के मुकाबले कम था, लेकिन कोई भी संक्रमित गंभीर नहीं हुआ
प्रोफ़ेसर एमएम फरीदी ने बताया कि वैक्सीनेटेड स्वास्थ्य कर्मियों में कोई भी कोविड संक्रमित व्यक्ति गंभीर स्थिति में नहीं आया और ना ही किसी की मृत्यु इस कारण से हुई उन्होंने कहा कि यह दावे के साथ तो नहीं कहा जा सकता कि इन्हें दोबारा संक्रमण नहीं होगा लेकिन इतना जरूर है कि वैक्सीनेटेड व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत कम या नहीं पड़ेगी.
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