श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद 350 साल पुराना, औरंगजेब ने तोड़ा और कब हुआ हिन्दू-मुस्लिम में मंदिर-मस्जिद पर समझौता
मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका दिया है. हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की सिविल वाद की चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है.
मुस्लिम पक्ष को झटका, ट्रायल का रास्ता साफ
मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद की उस याचिका का खारिज कर दिया है जिसमें हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती दी गई थी. कोर्ट के इस फैसल के साथ ही सभी 18 मुकदमों की योग्यता के आधार पर सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है.
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद क्या
1 अगस्त 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट से आए फैसले के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा गर्म हो गया है आइए जानते हैं कि आखिर श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद क्या है? कब और कैसे विवाद शुरू हुआ? हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के दावे क्या-क्या हैं? आज क्या फैसला आया है?
औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बना मंदिर तोड़ा
सन् 1670 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने मथुरा में बने उनके जन्मस्थान पर बने प्राचीन ठाकुर केशवदेव मंदिर को तोड़ दिया था. इसके साथ ही औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन की सांस्कृतिक पहचान मिटाने की भी कोशिश की थी.
औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन के नाम बदले
औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर तोड़ने के साथ ही मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद और वृंदावन का नाम बदलकर मोमिनाबाद करने का का आदेश दिया था. इसके सबूत फारसी दस्तावेजों में मिलते हैं. जिनमें मथुरा के लिए इस्लामाबाद और वृंदावन के लिए मोमिनाबाद लिखने की परंपरा चलती रही.
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की स्थापना
1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की स्थापना की गई ताकि मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर का संरक्षण और देखभाल की जा सके. इसका मुख्य उद्देश्य इस पवित्र स्थल के विकास, प्रबंधन और रखरखाव के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना था.
1964 में मालिकाना हक के लिए मुकदमा
1964 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की भूमि के मालिकाना हक को लेकर मुकदमा दायर किया गया था. इस मुकदमे का उद्देश्य यह निर्धारित करना था कि विवादित भूमि का स्वामित्व किसके पास है. हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यह भूमि श्रीकृष्ण जन्मभूमि का हिस्सा है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे शाही ईदगाह मस्जिद के अंतर्गत माना.
1968 में हिंदू, मुस्लिम पक्षों में समझौता हुआ
1968 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद को लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच यह सहमति बनी कि विवादित भूमि पर स्थित संरचनाओं की स्थिति को बनाए रखा जाएगा. इस समझौते का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच तनाव को कम करना और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना था. समझौते के तहत, शाही ईदगाह मस्जिद और श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर के बीच की सीमाओं को स्वीकार किया गया और इस स्थिति को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया गया.
2020 में हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
2020 में, श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद में हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिका दायर की गई कि शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि के ऊपर बनी हुई है, इसलिए उसे हटाया जाना चाहिए. साथ ही ज़मीन को लेकर 1968 में हुआ समझौता अवैध है. लेकिन 30 सितंबर 2020 के आदेश में कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट का कहना था कि याचिकाकर्ता कृष्ण विराजमान के अनुयायी हैं और कृष्ण विराजमान ख़ुद केस नहीं कर सकते.
दिसंबर 2023 में शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश
~6 जून को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. और फिर 14 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृण्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर का अदालत की निगरानी में सर्वे कराने के लिए एडवोकेट कमीशन के गठन की मांग वाली अर्जी को स्वीकार कर लिया.
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