दिव्यांगता को लेकर MCI की नई गाइडलाइन दिव्यांग लोगों पर भारी, जानें पूरा मामला
नई गाइडलाइन के मुताबिक, अगर कोई दिव्यांग क्रोनिकल न्यूरोलॉजिकल से 80 फीसदी से ज्यादा प्रभावित है तो वह मेडिकल पढ़ाई के लिए एलिजिबल नहीं रह जाएगा. नए नियम के तहत कौन-कौन सी बीमारी शामिल होती है, इसकी पूरी लिस्ट टर्म एंड कंडीशन के साथ जारी की गई है.
नई दिल्ली: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने 13 मई 2019 को दिव्यांगता को लेकर नई गाइडलाइन जारी की थी. नई गाइडलाइन के मुताबिक, कई दिव्यांग छात्र जो डॉक्टर बनने की चाहत रखते हैं, उनका भविष्य अधर में लटक गया है. इसलिए, उन्होंने इस आदेश के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. नई गाइडलाइन के मुताबिक, अगर कोई दिव्यांग क्रोनिकल न्यूरोलॉजिकल से 80 फीसदी से ज्यादा प्रभावित है तो वह मेडिकल पढ़ाई के लिए एलिजिबल नहीं रह जाएगा. नए नियम के तहत कौन-कौन सी बीमारी शामिल होती है, इसकी पूरी लिस्ट टर्म एंड कंडीशन के साथ जारी की गई है.
केस स्टडी
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की नई गाइडलाइन के चलते एक गरीब होनहार छात्र का भविष्य अधर में है. मोहम्मद उस्मान उत्तर प्रदेश के बिजनौर के हुसैनाबाद नई बस्ती का रहने वाला है. 20 साल के उस्मान दोनों पैरों से लचार है. उस्मान डंडे को अपना सहारा मान के किसी भी मुश्किल से मुश्किल हालात का सामना करने के लिए हर वक्त तैयार रहता है.
इसलिए कभी भी उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं माना, लेकिन अब उसे लगने लगा है कि दिव्यांगता उसके लिए अभिशाप बन गया है. पिछले ढ़ाई महीने से वह कभी बिजनौर, तो कभी दिल्ली, कभी जयपुर तो कभी इलाहाबाद का चक्कर काट रहा है. मोहम्मद उस्मान का सपना है कि वह डॉक्टर बने. इसके लिए वह तीन साल से मेडिकल की तैयारी कर रहा था. उसके मेहनत का फल भी उसे मिला. इसी साल 5 जून 2019 को उस्मान नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास किया. फिजिकल हैंडीकैप कैटेगरी में वह पूरे देश में 1655 रैंक लाया.
वह अब मेडिकल कॉलेज की तैयारी में लगा हुआ था, लेकिन उसे झटका तब लगा जब वह दिव्यांगता सर्टिफिकेट लेने के लिए सफदरजंग अस्पताल, वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज में 100 फीसदी से ज्यादा डिसेबल पाया गया. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन के मुताबिक उसके लोअर लिम्ब पूरी तरह से खराब हैं और अपर लिम्ब यानि हाथ भी खराब है. इसकी वजह से वह मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के मेडिकली योग्य नहीं है.
जिसके बाद वह जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट बनाया जहां उसे 88 प्रतिशत दिव्यांगता का सर्टिफिकेट दिया गया. यानि दो मेडिकल कॉलेज में दिव्यांगता के अलग-अलग मापदंड कैसे हो सकते हैं, वो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन के मुताबिक.
इतना ही नहीं, यूनिक डिसएबिलिटी आईडी( UDI) के मुताबिक साल 1999 में उसे 50 प्रतिशत डिसएबल माना गया था. यानी अलग-अलग सरकारी संस्थानों में दिव्यांगता के अलग-अलग मापदंड कैसे हो सकते हैं? बता दें, मोहम्मद उस्मान को साल 2014 में जब दसवीं पास किया था तब उसकी प्रतिभा को लेकर तत्कालीन HRD मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने पत्र लिखकर बधाई दी थी.