मुरादाबाद। यूपी के मुरादाबाद दंगे की 496 पेज की रिपोर्ट में कई बड़े नामों का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में मुख्य आरोपी डॉक्टर शमीम अहमद ख़ान को बनाया गया है.मुस्लिम लीग पार्टी इस नेता की मौत हो गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिस और मुस्लिम पक्ष में झड़प हुई थी. गोली सही चलाई गई जितनी आवश्यकता थी उतनी चलाई गई थी.


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मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद के दिन दंगा भड़क गया था. उस वक्त ईदगाह में करीब 70 हजार मुस्लिम नमाज अता कर रहे थे. तभी भीड़ में किसी पशु के घुस जाने के बाद पुलिस और मुस्लिम पक्ष के बीच झड़प हो गई थी, जो खूनखराबे में बदल गई. इस हिंसा में 83 लोगों के मारे जाने की बात कही गई थी. तब केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार के साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वीपी सिंह सरकार सत्ता में थी. 



सदन में पेश हुई मुरादाबाद घटना की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है कि मुस्लिम लीग के दो नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते दंगा हुआ. मुस्लिम समुदाय में नेता को लेकर चल रही खींचतान के चलते दंगा हुआ.रिपोर्ट के अनुसार, ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था.दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनता पार्टी कहीं भी सामने नहीं आई. आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए उत्तरदायी नहीं था.


रिपोर्ट बताती है कि डॉक्टर शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉक्टर हामिद हुसैन उर्फ डॉक्टर अज्जी के नेतृत्व वाले खाकसारो तथा उनके समर्थकों और भाड़े के व्यक्तियों ने ये कारगुजारी की थी.यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित था. नमाजियों के बीच में सुअर धकेल जाने की अफवाह फैलने के बाद क्रोधित मुसलमानों ने थाने पुलिस चौकी और हिंदू इलाकों पर अंधाधुध हमला किया था. इसकी प्रतिक्रिया दूसरी ओर से हुई. भगदड़ में अल्पसंख्यक समुदाय के अधिक संख्या में लोग मारे गए थे.रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस से नाराजगी के बीच दंगाइयों ने दुकान में आग लगाई थी. मुरादाबाद रिपोर्ट में आरएसएस और बीजेपी को क्लीन चिट दी गई है. माना जा रहा है कि रिपोर्ट सदन के पटल पर रखे जाने के बाद इस पर जल्द ही विधानसभा में चर्चा होगी. 


रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछली सरकारों में कैबिनेट से अनुमोदन न मिल पाने के कारण इतना लंबा वक्त रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में लग गया. हालांकि मई 2023 में यूपी सरकार ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को लेकर सहमति जताई और इसके बाद विधानसभा के मानसून सत्र में इसे पेश किया गया. दंगा 3 अगस्त 1980 को मुरादाबाद के ईदगाह में भड़का था. 


गौरतलब है कि तब यूपी में कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था. जस्टिस सक्सेना आयोग ने मुरादाबाद दंगों की जांच कर रिपोर्ट तीन साल बाद 20 नवंबर 1983 को सौंपी थी. मगर 43 साल में सरकारों ने वोटबैंक समेत तमाम कारणों से रिपोर्ट सामने नहीं रखी. यही वजह है कि मुरादाबाद दंगों के पीड़ित 43 साल से न्याय और मुआवजे की मांग को लेकर भटक रहे हैं.


दंगे में गई थी 83 लोगों की जान
13 अगस्त 1980 की सुबह 50,000 से ज्यादा मुस्लिम ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह में इकट्ठा थे. भीड़ बहुत ज्यादा थी और सड़कों पर भी नमाज पढ़ी जा रही थी. खबरों के मुताबिक, ईदगाह से करीब 200 मीटर दूर वाल्मीकि बस्ती से सड़कों पर एक सुअर के कथित तौर पर भीड़ में घुस आने के बाद बाहर हंगामा हो गया. फिर हिंसा भड़की, जिसमें 83 लोगों की मौत हो गई थी और 112 घायल हुए.


 


Moradabad Riots Report 1980