UP Politics : उत्तर प्रदेश में कभी दलितों से दूरी के साथ पिछड़ों की राजनीति पर सब कुछ झोंकने वाली समाजवादी पार्टी अब सियासी रणनीति बदलते दिख रही है. यूपी में दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में बड़ी हार झेलने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब नया सियासी समीकरण तलाश रहे हैं, जिससे बीजेपी के हिन्दुत्व के तिलिस्म को तोड़ा जा सके. यही वजह है कि कभी दलित विरोधी कही जाने वाली सपा अब यूपी में दलित राजनीति के संस्थापक कहे जाने वाले कांशीराम (मायावती के राजनीतिक गुरु) को गले लगाने जा रही है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सपा प्रमुख अखिलेश यादव 3 अप्रैल को रायबरेली के दीन शाह गौरा ब्लॉक में स्थित कांशीराम महाविद्यालय में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य इस कार्यक्रम को आयोजित कर रहे हैं, जहां अखिलेश कांशीराम की मूर्ति अनावरण के साथ-साथ बड़ी जनसभा को भी संबोधित करेंगे.


अखिलेश यादव ने लोहिया के साथ-साथ अंबेडकर की सियासत को भी अपना लिया है और कांशीराम पर दांव खेलने जा रहे हैं. सपा ने 'बाबा साहेब वाहिनी' का गठन किया तो पार्टी के कार्यक्रमों और मंचों पर अंबेडकर की तस्वीर साफ दिखाई देती है. ऐसे में अंबेडकरवादी सियासत पर सपा पूरी तरह से अपना दावा मजबूत कर रही है


कांशीराम की सियासी प्रयोगशाला से निकले अंबेडकरवादी विचारधारा वाले नेताओं को अखिलेश पहले से अपनी पार्टी में राजनीतिक अहमियत दे रहे हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर इंद्रजीत सरोज रामअचल राजभर, आरके चौधरी, लालजी वर्मा, त्रिभवन दत्त, डॉ. महेश वर्मा जैसे पुराने बसपाई नेता अब अखिलेश के साथ हैं. कांशीराम से सियासत का हुनर सिखने वाले नेताओं के साथ-साथ कांशीराम को भी अखिलेश अपनाने जा रहे हैं, उसके पीछे बसपा के वोटबैंक को अपने पाले में लाने की रणनीति मानी जा रही है.


 


WATCH: IPL में कहां से आते हैं पैसे, समझिये टीम मालिक और BCCI की कैसे होती है कमाई