Triple Test in urban local body : उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव 2022 में ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर अदालती कार्यवाही से पेंच फंस गया है. लेकिन सवाल कौंधता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए दिया ट्रिपल टेस्ट का फैसला आखिर है क्या. हम आज आपको इसी की बारीकियां समझाते हैं.


ट्रिपल टेस्ट की बारीकियां समझें


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ट्रिपल टेस्ट फार्मूले के अनुसार, ओबीसी आरक्षण देने के लिए राज्य को एक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना होगा. अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक सामाजिक स्थिति की रिपोर्ट पेश करनी होगी. आयोग यह बताएगा कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं. आऱक्षण देना है तो कितना देना है. 


यूपी सरकार ने ट्रिपल टेस्ट को लेकर जो जवाब माननीय हाईकोर्ट में दाखिल किया है, उसमें कहा गया है कि नगरपालिका अधिनियम 1916 और नगर निगम अधिनियम 1959 के प्रावधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाया गया है. निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर वर्ष 2017 में एक पद्धति बनाई गई थी. इसको लेकर एक एसओपी तैयार की गई थी और उसे ही अपनाया गया है. उसका कहना है कि अर्बन लोकल बॉडी इलेक्शंस के लिए हमें ओबीसी कोटा Other Backward Classes (OBCs)के लिए ट्रिपल टेस्ट की शर्त का अनुपालन किया गया है. 


वैभव पांडेय और अन्य की ओर से ये पीआईएल (Public Interest Litigation) दायर की गई है, जिसमें 5 दिसंबर को सरकार की ओर से जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को आरक्षण के आधार पर चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि चार मेयर सीट ओबीसी के लिए आरक्षित किया गया है, लेकिन इसमें ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी नहीं की गई. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कृष्णाराव गवली बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य के मामले में दिया था. इस आदेश के तहत ओबीसी के राजनीतिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने पर बात की गई थी.


ट्रिपल टेस्ट के तीन पैमाने


1. स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के पिछड़ेपन की प्रकृति और प्रभाव की जांच करने के लिए एक विशेष आयोग का गठन किया जाना चाहिए.


2. आयोग की सिफारिशों के आधार पर आनुपातिक आधार पर आऱक्षण नगर निगम और नगरपालिका चुनाव में निर्धारित किया जाए. 


3. एससी एसटी या ओबीसी को मिलाकर कुल आरक्षण 50 फीसदी की सीमा के बाहर नहीं जाना चाहिए 


शहरी विकास विभाग के सचिव की ओर से दाखिल जवाब में क्या कहा गया...


1.  सरकार का कहना है कि उसने स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग की आबादी को ध्यान में रखते हुए 7 अप्रैल 2017 को नोटिफिकेशन जारी किया था. इसमें निकाय चुनाव में ओबीसी के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों की ओर से ओबीसी आबादी को ध्यान में रखा गया.


2. जिला मजिस्ट्रेटों की ओर से आनुपातिक आधार पर आरक्षण की सिफारिशें दी गईं.इसमें सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन (Vikas Kishan Rao Gawali Vs. State of Maharashtra and others) का पूरी तरह से पालन किया गया.


3. सरकार का कहना है कि ओबीसी को आनुपातिक आरक्षण को लेकर ये ट्रिपल टेस्ट फार्मूला का दूसरा टेस्ट है. उत्तर प्रदेश में वैधानिक आधार पर शैक्षणिक और अन्य मामलों में भी इसका कड़ाई से पालन किया गया है. 


4. ट्रिपल टेस्ट के तीसरे मानक यानी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण सीमा (upper ceiling of 50% reservation) न होने का भी ध्यान उत्तर प्रदेश सरकार ने रखा है. 


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