बिना ओबीसी आरक्षण के नगर निकाय चुनाव नहीं कराएगी सरकार, आयोग गठित करेगी : सूत्र
UP Nagar Nikay Chinav 2022 : योगी सरकार के सूत्रों से संकेत मिला है कि वो अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण की पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी. इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव कराए जाएंगे.
UP Nagar Nikay Chinav 2022 : उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Locknow Bench) फैसला भले ही आ गया लेकिन तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हुई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने साफ तौर पर रैपिड टेस्ट के आधार पर निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण की सरकार की दलील को खारिज कर दिया है. सूत्रों की ओर से कहा जा रहा है कि सरकार बिना ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के चुनाव नहीं कराएगी. वो अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लिए एक डेडिकेटेड कमीशन बनाएगी. उसकी रिपोर्ट के आधार आरक्षण तय होगा. सरकार सभी सीटों को सामान्य घोषित कर निकाय चुनाव नहीं करा सकती. सरकार विपक्षी दलों को भाजपा को घेरने को कोई मौका नहीं देना चाहती.
क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी ?
सूत्रों का कहना है कि निकाय चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज बैठक करेंगे. शाम तक अफसरों के साथ भी बैठक होगी. हाईकोर्ट के फैसले के बाद उपजी स्थिति पर सरकार मंथन करेगी.दरअसल, निकाय चुनाव तत्काल कराने के निर्देश दिए गए हैं. राज्य निर्वाचन आयोग को डेडिकेटेड आयोग 31 जनवरी तक बनाना है. महत्वपूर्ण ये है कि सरकार को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा तभी चुनाव टल सकता है. क्योंकि कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से चुनाव कराने को कहा है. सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी या नहीं. उच्च स्तर पर नेतृत्व मंथन करके जल्द फैसला लेगा.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट के निर्णय़ की समीक्षा करेगी और फिर आगे विधि सम्मत निर्णय़ लेगी. सरकार की मंशा साफ है और वो संविधान की भावना को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ रही है.
बीजेपी के राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि आरक्षण संबंधी शासनादेश रद्द हो चुका है लेकिन आरक्षण के बगैर चुनाव संभव है क्या. बिना आरक्षण के कोई सरकार कैसे चुनाव करा लेगी. ओबीसी बड़ा वर्ग है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मैं एक कार्यकर्ता के नाते बोल रहा हूं कि सरकार को दोबारा आरक्षण प्रक्रिया करानी पड़ेगी. यह लोकतांत्रिक सरकार है और जन आकांक्षाओं को पूरा करने वाली सरकार है. जल्दबाजी की बात पर बाजपेयी ने कहा कि पूरा आदेश पढ़कर ही वो इस पर कमेंट दे पाएंगे. संविधान के अनुच्छेदों के आधार पर चक्रानुक्रम आरक्षण के आधार पर ही व्यवस्था दी गई थी. इसमें पिछले चुनाव में आरक्षित सीट पर रिजर्वेशन को बदला गया था, इसी आधार पर 2017 के बाद 2022 में सीटों को बदला गया.
हाईकोर्ट ने अपने स्पष्ट आदेश में कहा है कि जब तक स्थानीय निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट नहीं होता है, तब तक ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता. ऐसे में सरकार को अगर तुरंत ही म्यूनिसिपल इलेक्शन कराना है तो अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए तय आरक्षण को हटाकर उसे सामान्य श्रेणी में डालकर नगर निगम और नगरपालिका चुनाव कराए जाएं. लेकिन बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार ओबीसी आरक्षण के बगैर चुनाव कराने का राजनीतिक जोखिम मोल लेगी. बीजेपी लंबे समय से यूपी और अन्य राज्यों में पिछड़ा वर्ग कार्ड को आगे रखकर चुनाव मैदान में उतरती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ओबीसी समुदाय से आते हैं. हिन्दुत्व के साथ पिछड़ा वर्ग की राजनीति का लाभ 2014, 2017 विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में बड़ा फायदा मिला है.
सरकार के पास और क्या हैं विकल्प
सरकार अगर हाईकोर्ट के फैसले से असहमत होती है तो सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर सकती है, क्योंकि नगरपालिका अधिनियम 1916 और नगर निगम अधिनियम 1959 का पूरी तरह पालन करने के तर्क को भी उच्च न्यायालय ने नहीं माना. कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी की शैक्षणिक, सामाजिक आर्थिक स्थिति से इतरह उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को देखा जाएगा. आयोग ने सरकार की रैपिड टेस्ट की दलील को नहीं माना और 2017 की तरह इस बार भी उसी आधार पर चुनाव कराने की मांग को खारिज कर दिया.
विशेषज्ञों ने कहा, बीजेपी राजनीतिक जोखिम मोल नहीं लेगी
विधि विशेषज्ञ दिलीप यशवर्धन ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला देता है तो उसे कानून की तरह माना जाता है. ऐसे में निकाय चुनाव को लेकर गवली केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में जो निर्णय़ दिया था, उसके प्रावधानों के तहत चुनाव न कराना अवैध ही होता.संविधान का 73वां और 74वां संविधान संशोधन है, वो पंचायतों और नगर निकायों में आरक्षण सुनिश्चित करता है.बिना आरक्षण के भी चुनाव कराए जाते हैं. लेकिन ये संविधान की भावना के खिलाफ होगा.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय ने कहा कि अगर भाजपा बिना ओबीसी आरक्षण के आगे बढ़ती है तो बीजेपी को बड़ा राजनीतिक नुकसान हो सकता है. विरोधी पक्ष खासकर ओबीसी राजनीति करने वाले दल उस पर हमला तेज कर सकते हैं, जो जातिगत जनगणना न कराए जाने को लेकर मोदी सरकार को पहले ही घेरती रही है. अगर डेडिकेटेड कमीशन बनता है तो 1400 वार्ड और 763 नगर निकाय प्रमुखों के लिए नए सिरे से आरक्षण प्रक्रिया शुरू करनी होगी और इसमें काफी वक्त लग सकता है. मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए भाजपा इतना बड़ा दांव नहीं खेल सकती.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय के अनुसार, इस परिस्थिति के लिए सीधे तौर पर नगर विकास विभाग और विधि विभाग के अफसर जिम्मेदार हैं. महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के मामले भी सामने आ चुके हैं, जिसमें ऐसा ही हुआ था. अधिकारियों को जब इसकी जानकारी थी तो जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा क्यों की. क्या अफसरों को दूसरे राज्यों के नगर निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर कोर्ट में पैदा हुई स्थिति का ज्ञान नहीं था.
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