फिरोजाबाद के जमींदार परिवार में जन्मे लक्ष्मीनारायण शर्मा कैसे बने नीम करोली बाबा, कैसे पहुंचे कैंची धाम
neem karoli baba News in Hindi: नीम करोली बाबा के जीवन की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. बेहद संपन्न ब्राह्मण जमींदार परिवार में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा कैसे हनुमान भक्त बने और नीम करोरी बाबा कहलाए, आइए जानते हैं पूरी कहानी...
neem karoli baba Kainchi Dham Latest News: उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कैंची धाम मंदिर की महिमा कौन नहीं जानता. नीम करौली बाबा के भक्तों के लिए यह स्वर्ग से कम नहीं है. कैंची धाम की स्थापना के जून 2024 में 60 साल पूरे हो गए, लेकिन नीम करौरी बाबा की स्मृतियां यहां वैसे ही कायम हैं. लेकिन नीम करोली बाबा कौन थे, कैसे उन्होंने आध्यात्म का मार्ग चुना, आइए हम आपको बताते हैं.
जमींदार परिवार में जन्म
नीम करोली बाबा का असल में नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था. वो उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव के रहने वाले थे. बताया जाता है कि उनका जन्म वर्ष 1900 में हुआ था. उनके पिता गांव के प्रतिष्ठित ब्राह्मण दुर्गा प्रसाद शर्मा थे, जिन्होंने 11 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी, लेकिन वो ज्यादा दिन तक सांसारिक मोह माया में बंध नहीं पाए.
साधु संन्यासी का जीवन
17 साल की उम्र में उन्हें दिव्य ज्ञान की अनुभूति हुई और वो हनुमान भक्त बन गए. कुछ समय बाद उन्हें घर बार छोड़कर साधु संन्यासी का जीवन व्यतीत करने को निकल पड़े. गुजरात के बवानिया मोरबी में उन्हें लंबी तपस्या की तो उन्हें तलइया बाबा नाम मिला. लक्ष्मण दास, तिकोनिया बाबा और हांडी वाले बाबा का नाम भी उन्हें मिला.
नीब करौरी गांव से पड़ा नाम
10-15 सालों के बाद उनके पिता को पता चला कि फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गांव में उनकी शक्ल से मिलता जुलता शख्स दिखाई दिया है तो वो वहां पहुंचे. उन्हें घर वापस आने का आदेश दिया.पिता की जिद पर वो दोबारा घर लौटे. लेकिन गृहस्थ और संत का धर्म साथ निभाना कठिन रहा. नीम करौली महाराज के दो बेटे और एक बेटी भी है. उनके बड़े बेटे भोपाल में हैं. जबकि छोटे बेटे फॉरेस्ट अफसर रहे.
ट्रेन यात्रा की कहानी
कहा जाता है कि एक बार वो ट्रेन से सफर कर रहे थे,लेकिन ट्रेन का टिकट न होने के कारण उन्हें नीब करौरी गांव में उतार दिया गया. वो वहीं पर तपस्या करने बैठ गए और यहीं से उन्हें नीम करौली बाबा नाम मिला. गंजम शहर में तारा तारिणी शक्ति पीठ यात्रा में उन्हें हनुमानजी और चमत्कारी बाबा का नाम भी मिला.
कैंचीधाम कहां है
नैनीताल के कैंची धाम में नीम करौली बाबा 1961 में पहुंचे. उन्होंने अपने मित्र के साथ यहां आश्रम बनवाया जो 1964 में पूर्ण हुआ. नीम करोरी बाबा की समाधि भी यहीं पंतनगर में बनी है. बाबा नीम करौली की भव्य प्रतिमा के दर्शन को हर साल लाखों लोग आते हैं. यहां हनुमान जी का भी मंदिर है.
बजरंगबली के परम भक्त का कैंची धाम मेला हर साल
नीम करोरी बाबा हनुमान के परमभक्त थे. भक्त उन्हें बजरंगबली का अवतार भी मानते थे. कैंची धाम में हर साल 15 जून को कैंची धाम मेला लगता है. यहां देश-विदेश से लाखों भक्त आते हैं. कैंची धाम में हनुमान जी के साथ कई मंदिर हैं. कैंची धाम वाले नीम करौली बाबा हमेशा मोटा कंबल ओढ़े रहते थे. यही उनकी पहचान बना, आज भी उनके भक्त बड़ी संख्या में मंदिर में कंबल दान करते हैं.
नीम करोरी बाबा का आश्रम
बाबा नीम करोली ने 11 सितंबर 1973 को दुनिया को अलविदा कह दिया. कैंची धाम आश्रम में देवदार और चीड़ के घने वृक्षों के बीच उनका आश्रम दिव्य अनुभूति देता है.
कैंचीधाम कैसे पहुंचें
कैंचीधाम नैनीताल के भुवालीगाड से करीब सात किलोमीटर दूर है. नैनीताल रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से ये ज्यादा दूर नहीं. बाबा नीम करौली महाराज के देश दुनिया में करीब 108 आश्रम हैं. नीम करोली बाबा के आश्रम कैंची धाम के अलावा,काकरीघाट, भूमियाधार, कुमाऊं में हनुमानगढ़ी, मथुरा के वृंदावन, ऋषिकेश, लखनऊ के साथ शिमला और फर्रुखाबाद में खिमासेपुर में है. नीम करोली गांव और दिल्ली में उनका आश्रम है. अमेरिका और मैक्सिको में भी उनका आश्रम बना है.
बड़ी हस्तियां बाबा की भक्त
विराट कोहली अनुष्का शर्मा, हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स, एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स, गूगल के लैरी पेज, सचिन तेंदुलकर समेत कई नामी हस्तिया उनकी अनुयायी हैं.
नीम करौली बाबा और सिद्धि मां
नीम करौली महाराज की कहानी में सिद्धि मां का नाम जरूर आता है. अल्मोड़ा कीसिद्धि मां बाबा की परम भक्त थीं और अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना जीवन बाबा की सेवा में समर्पित किया. उन्होंने कैंचीधाम में बाबा के आश्रम की देखरेख भी की. 2017 में उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया.