Uttrakhand Ramlila: देशभर में इस समय शारदीय नवरात्रि को धूमधाम से मनाया जा रहा है. एक ओर जहां मां शक्ति की उपासना हो रही है तो वहीं रामलीला को लेकर भी लोगों में भारी उत्साह. रामलीला और उत्तराखंड का भी एक खास रिश्ता रहा है. आइए आज आपको उत्तराखंड में होने वाली कुछ खास रामलीलाओं के बार में बताएं:


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पौड़ी की रामलीला: उत्तराखंड के पौड़ी जिले की रामलीला का अपना एक पुराना इतिहास रहा है. यहां होने वाली रामलीला को यूनेस्को द्वारा धरोहर बताया गया है. इस रामलीला का आरंभ साल 1897 में हुआ था. यानी कि 125 साल से भी अधिक समय से यह यहां आयोजित होती आ रही है. विशेष बात यह है कि इसका मंचन पारसी शैली में किया जाता है. इसमें हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अवधी, बृज बोली का प्रयोग होता है. 


हल्द्वानी की रामलीला: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में पिछले 150 साल से हल्द्वानी में रामलीला का मंचन होता आ रहा है. यहां कलाकारों द्वारा प्रस्तुत लीलाओं का मंचन देखने को लोगों में भारी उत्साह रहता है.हालांकि दिलचस्प बात यह है कि यहां दिन के समय रामलीला होती है. जिसका एक अलग आकर्षण है.


टिहारी की रामलीला: जिन लोगों को याद है वे अभी तक पुराने टिहरी शहर की रामलीला को भूल नहीं सके हैं. टिहरी के डूबने के बाद इसे फिर से जीवित किया गया है.


अल्मोड़ा की रामलीला: अल्मोड़ा में होने वाली रामलीला की विशेषता यह है कि यहां सभी पात्रों का अभिनय महिलाओं द्वारा किया जाता है. वैसे तो यह 3 साल पुरानी रामलीला है लेकिन महिलाएं किरदारों को बखूबी निभाती हैं. उनकी कोशिश रहती है कि वह अपने पात्र को जी उठें.  महिलाएं सभी डायलॉग को गाती हैं. इस रामलीला में गृहणियों, नौकरी पेशा महिलाओं के साथ छोटी बच्चियां हिस्सा लेती हैं. 


अल्मोड़ा में ही एक रामलीला साल 1860 से आयोजित की जा रही है. यह नंदा देवी के मंदिर में आयोजित होती है. जब रामलीला के मंचन की शुरुआत हुई थी तो शुरु में मंचन छिलकों की मशाल बनाकर किया जाता था. रामलीला के मंचन में स्थानीय लोग सम्मिलित होते हैं जो तीन माह का प्रशिक्षण लेकर अभिनय करते हैं.