जेपी: कैसे एक 70 साल के बुजुर्ग ने कराया 400 डाकुओं का सरेंडर

Chambal Dacoits: आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती है. जेपी संपूर्ण क्रांति का नारा देने के लिए जाने जाते हैं लेकिन शायद कम लोगों को पता होगा कि उन्होंने डाकुओं का सरेंडर करवाने में अहम रोल निभाया था.

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जेपी की आज है जयंती

लोकनायक जयप्रकाश की आज जयंती है. अपने अनुयायियों के बीच वे जेपी के नाम से मशहूर थे. चाहे राजनीति आज की हो या तब की , जेपी को मानने वाले सत्ता और विपक्ष में हमेशा रहे.

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डाकुओं पर जेपी का असर

लोकनायक की लोकप्रियता का आलम यह था कि उनसे डाकू भी प्रभावित हुए और आत्मसमर्पण किया. यह जेपी का असर था कि 400 से ज्यादा डाकुओं ने सरेंडर किया था.

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चंबल में डाकुओं का आतंक

एक समय में चंबल घाटी के डाकुओं का अपना एक आतंक हुआ करता था. यह कोई साल 1972 रहा होगा जब जेपी ने डाकुओं से अपील की कि वे आत्मसमर्पण कर दें.

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जेपी और डाकू

हालांकि जेपी और डाकुओं के आत्मसमर्पण की कहानी के तार साल 1971 से जाकर जुड़ जाते हैं. दरअसल एक दिन एक हट्टा कट्टा आदमी जेपी के पटना वाले घर जा पहुंचा था.

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कहां से शुरू हुई कहानी

शख्स और कोई नहीं बल्कि एक डाकू था. डाकू चाहता था कि जेपी उसकी आवाज बनें और आत्मसमर्पण की बात सरकार तक पहुंचाएं. शुरू में तो जेपी ने इंकार किया लेकिन बाद में उसने जेपी को मना लिया.

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माधो सिंह पहुंचा जेपी के पास

आपको बता दें कि जेपी के पटना वाले घर पहुंचने वाला डाकू कोई और नहीं बल्कि डाकू माधो सिंह था. जेपी ने माधो सिंह से कहा कि वह डाकुओं के सरेंडर को लेकर सरकारों से बात करेंगे.

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जेपी खुद पहुंचे चंबल

इसके बाद जेपी ने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे. एक दिन तो वह खराब तबीयत के बावजूद चंबल घाटी जा पहुंचे. जेपी की चंबल यात्रा चंबल घाटी शांति मिशन कहलाई. आगे चलकर यह मिशन डाकुओं के सरेंडर की वजह बन गया.

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डाकुओं का सरेंडर

साल 72 आते आते डाकू कल्याण सिंह, मक्खन सिंह, हरविलास, मोहर सिंह, सरूप सिंह, तिलक सिंह , पंचल सिंह और कालीचरण गैंग ने आत्मसमर्पण किया.

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कोई क्यों बनता है डाकू

एक इंटरव्यू में जेपी ने कहा था कि कोई खुशी से डाकू नहीं बनता. जो भी डाकू हैं उनसें से अधिकतर के परिवार पर पुलिस और प्रशासन ने अत्याचार किए थे.

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समाज बनाता है डाकू

जेपी ने उस समय कहा था कि चूंकि समझ की कमी थी इसलिए गुस्से में अत्याचार के जवाब में लोगों ने हथियार उठा लिए और डाकू बन गए. जेपी का मानना था कि डाकू को डाकू बनाने में समाज का हाथ भी है.

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