नेहरू–गांधी परिवार : कैसे एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार इलाहाबाद का जाना माना नाम बन गया

आजादी के आंदोलन में पिता मोतीलाल और बेटे जवाहरलाल ने वकालत छोड़ दी. जीवन शैली को बदलते हुए आनंद भवन में नौकरों की संख्या कम की गई और विदेशी सजावट वाली गाड़ियों को जला दिया गया. नेहरू परिवार के लिए खादी ही परिधान हो गया था.

सुबोध आनंद गार्ग्य Mon, 11 Nov 2024-5:04 pm,
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मोतीलाल के बेटे जवाहरलाल

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में एक समृद्ध बैरिस्टर के घर हुआ था. उनका परिवार कश्मीर से था, लेकिन अठारहवीं सदी की शुरुआत से ही नेहरू परिवार दिल्ली में रहा था. 

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गंगाधर नेहरू दिल्ली पुलिस में थे

मोतीलाल नेहरू के दादा लक्ष्मी नारायण दिल्ली के मुगल दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वकील थे. उनके पिता गंगाधर 1857 में दिल्ली में पुलिस थे. आगे चलकर गंगाधर अपनी पत्नी ज्योरानी और चार बच्चों के साथ आगरा चले गए. मोतीलाल नेहरू ने अपना बचपन राजस्थान के खेतड़ी में बिताया, जहां उनके बड़े भाई नंदलाल दीवान बने. 

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मोतीलाल के भाई नंदलाल

1870 में मोतीलाल के भाई नंदलाल ने खेतड़ी छोड़ दी. वकालत की पढ़ाई की और आगरा में वकालत शुरू की. जब हाईकोर्ट इलाहाबाद आ गया तो नंदलाल भी इलाहाबाद आ गए.

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मोतीलाल ने चुनी वकालत

बाद में मोतीलाल नेहरू ने भी वकील बनने का फैसला किया, 1883 में वकालत की परीक्षा में सफल उम्मीदवारों की सूची में मोतीलाल शीर्ष स्थान पर थे. कानपुर में वकालत करने के बाद मोतीलाल इलाहाबाद चले आए.

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आनंद भवन में रहता था परिवार

मोतीलाल की पत्नी स्वरूप रानी थुस्सू लाहौर में बसे एक प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित परिवार से थीं.  मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद के धनी व्यक्ति थे. वे और उनका परिवार आनंद भवन में रहा करता था. अमीरी का अंदाजा इस बात से लगाइए कि उस समय उनके यहां खाने की मेज पर चाकू और कांटे का इस्तेमाल होता था. यही नहीं बच्चों के लिए यूरोपीय गवर्नेंस और ट्यूटर तक थे.

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जवाहर लाल विदेश से पढ़े

मोतीलाल नेहरू ने पढ़ाई के लिए जवाहर को 1907 में कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज भेजा था. मोतीलाल नेहरू का मानना ​​था कि ब्रिटिश शासन भारत में आधुनिकीकरण कर रहा है. ब्रिटेन के सहयोग से भारत में सुधार हो रहा है. वे भारतीयों के लिए सरकार में भागीदारी चाहते थे. 

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कौल परिवार से रिश्ता

मोतीलाल ने बेटे जवाहरलाल नेहरू की शादी कमला कौल से कराई जो कि कौल परिवार (दिल्ली में बसा एक कश्मीरी पंडित परिवार) से थी.

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बाप बेटे में कैसे बनी सहमति

मोतीलाल नेहरू ने बेटे जवाहर को गांधी की सत्याग्रह राजनीति में शामिल होने से रोका था. हालांकि जलियांवाला बाग के बाद मोतीलाल नेहरू की सोच बदली और बाप बेटे में सहमति बनी. आगे चलकर मोतीलाल नेहरू 1919 और 1928 में दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे.

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आगे चलकर बाप बेटे ने वकालत छोड़ दी थी. आनंद भवन में नौकरों की विशाल संख्या में कटौती की गई.नेहरू परिवार की जीवन शैली बदली, विदेशी साज-सज्जा से भरी गाड़ियों को सार्वजनिक होलिका में जला दिया गया और खादी पहन ली गई.

 

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जवाहरलाल का उदय

1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के बाद, जवाहरलाल धीरे-धीरे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे. 1930 के दशक के मध्य में ही देश जवाहरलाल को गांधी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मान चुका था. 

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