Chhath Puja Sindor Tradition: छठ महापर्व आस्था का महापर्व है. छठ व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस दिन उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग की लंबी उम्र के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. ये पर्व खासतौर से मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है. इस पर्व का समापन उगते सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत पारण किया जाता है. कार्तिक माह में आने वाले इस महापर्व (Chhath Puja 2024) की शुरुआत 5 नवंबर को नहाय-खाय से होगी.  वहीं, इसका समापन 8 नवंबर-उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा. आपने देखा होगा कि छठ पर महिलाएं नाक से मांग तक सिंदूर लगाती हैं. ये सिंदूर नाक तक क्यों लगाया जाता है ये आप जानना तो चाहते होंगे.  आइए जानते हैं इसके पीछे की धार्मिक मान्यता .


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छठ महापर्व 2024 Chhath Mahaparva 2024
आगाज- 5 नवंबर
समापन- 8 नवंबर  


क्यों लगाया जाता है नाक तक सिंदूर
हिंदू धर्म में महिलाओं के 16 ऋंगार में से सिंदूर भी अपनी खास जगह रखता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाओं का नाक से मांग तक सिंदूर लगाने के पीछे एक कारण है. छठ पर्व पर महिलाएं सिंदूर अपने सिर से लेकर नाक तक लगाती हैं और इस सिंदूर की तुलना सूरज की लालिमा से की जाती है. ऐसी मान्यता है कि सिंदूर की लंबी लाइन की तरह पति की उम्र भी लंबी होगी. छठ माता की कृपा मिलेगी और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा. इतना ही नहीं, सुहागिनों का वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है. इतना ही नहीं, नारंगी रंग हनुमान जी का शुभ रंग है. 


कौन सा सिंदूर होता है इस्तेमाल 
छठ पूजा में 3 तरह के सिंदूर का इस्तेमाल होता है.
पहला : सुर्ख लाल
दूसरा: सिंदूर पीला या नारंगी
तीसरा: सिंदूर मटिया सिंदूर 


नारंगी सिंदूर ही क्यों?
इसका कारण इस रंग की शुभता है. आपको बता दें कि सिंदूर हनुमान जी को चढ़ाया जाता है. भगवान हनुमान ब्रह्मचारी थे और विवाह के बाद दुल्हन का ब्रह्मचर्य व्रत समाप्त होकर ग्रहस्थ जीवन की शुरूआत होती है. ये प्रथा बिहार और झारखंड की ही नहीं बल्कि कई जगहों पर ऐसा होता है.


मटिया सिंदूर 
मटिया सिंदूर को सबसे शुद्ध माना जाता है.  यह सिंदूर एकदम मिट्टी की क्वालिटी का होता है. इसलिए इस सिंदूर को मटिया सिंदूर कहा जाता है. पूजा में चढ़ाने के लिए खासतौर पर छठ पूजा के दौरान इस सिंदूर का प्रयोग किया जाता है.


छठ पूजा की कथा
पुराणों के अनुसार महाभारत काल के दौरान पांडवों के द्वारा राजपाट जुए में हारने  के बाद  द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था. द्रौपदी के व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिलाया था. मान्यताओं के अनुसार तभी से घरों में सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए छठ का व्रत रखा जा रहा है.  पौराणिक कथाओं की मानें तो महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने ही सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी. कर्ण घंटों पानी में खड़े रहकर सूर्य देव को अर्घ्य देते है. 


Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.


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