Jaya Ekadashi Katha: जया एकादशी पर जरूर करें इस कथा पाठ, पिशाच योनि से मिलती है मुक्ति!
Jaya Ekadashi Kathai: माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यता यह भी है कि इस व्रत को रखने वाला कभी पिशाच और प्रेत योनि में जन्म नहीं लेता है.
Jaya Ekadashi Katha Hindi: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का खास महत्व है. हर महीने दो एकादशी तिथि आती हैं. माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह 19 फरवरी को सुबह 8.49 पर शुरू हो रही है, जो अगले दिन 20 फरवरी 9.55 पर समाप्त होगी. मान्यातानुसार एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यता यह भी है कि इस व्रत को रखने वाला कभी पिशाच और प्रेत योनि में जन्म नहीं लेता है. व्रत पर कथा का पाठ करन से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है. नीचे पढ़ें कथा.
जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार श्रीकृष्ण जया एकादशी व्रत का महाम्त्य जाना. श्रीकृष्ण ने कथा कहते हुए बताया कि एक बार नंदन वन में इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. इस सभा में देवतागण और ऋषि प्रफूल्लित होकर उत्सव का आनंद ले रहे थे. उत्सव में गंधर्व गाने रहे थे और अप्सराएं नृत्य कर रही थी. इन्हीं में से एक गंधर्व था माल्यवान. वहीं एक सुंदर नृत्यांगना थी जिसका नाम था पुष्यवती.
उत्सव के दौरान पुष्यवती और माल्यवान एक दूसरे पर मोहित हो गए और सभी की उपस्थिति में वे अपनी मार्यादाएं भूल गए. पुष्यवती और माल्यवान के इस कृत्य से देवतागण और ऋषि असहज हो गए. इसके बाद देवराज इंद्र भयंकर क्रोधित हो उठे. इंद्र ने दोनों को श्राप दे दिया कि वह स्वर्गलोक से निष्कासित करके मृत्यु लोक (पृथ्वी) पर पिशाच योनि में निवास करने का श्राप दे दिया. श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान पिशाच योनि में दुख भोगने लगे. प्रेत योनि में दोनों का जीवन बहुत कष्टदायक रहा.
माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का दिन आया. इस दिन दोनों को सिर्फ फलाहार ही खाने को मिला. दोनों रात्रि में ठंड की वजह से सो नहीं पाए. इस तरह अनजाने में एकादशी का रात्रि जागरण भी हो गया. उस दिन वह अपने किए पर पश्चातावा करते हुए भगवान विष्णु से इस कष्टदायक जीवन से मुक्त करने की प्रार्थना की. अनजाने में ही दोनों ने जया एकादशी का व्रत पूर्ण कर लिया लेकिन सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. इस व्रत के प्रभाव से दोनों को पिशाच योगि से मुक्ति मिल गई और वह दोबारा स्वर्ग लोक चले गए. तभी से जया एकादशी का व्रत किया जाने लगा.
Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.