Mangla Gauri Vrat August 2023: श्रावण मास में जितने भी मंगलवार आते है, सभी व्रत मंगला गौरी व्रत कहलाते हैं. यह व्रत मंगलवार को रखे जाने के कारण मंगला गौरी व्रत कहलाते हैं. हिन्दू पंचांग में श्रावण मास भगवान शिव और माता गौरी को समर्पित होता है. महिलाओं द्वारा श्रावण महीने के दौरान व्रत करने का संकल्प लिया जाता है. महिलाएं मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन के लिए माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु इस व्रत को करती हैं.


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मंगला गौरी व्रत की पूजा विधान
मगंला गौरी व्रत करने के लिए प्रातः नहा-धोकर एक चैकी पर सफेद लाल कपड़ा बिछाला चाहिए.  सफेद कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाते हैं. लाल कपड़े पर गेहूँ से षोडश माता बनाते हैं. चौकी के एक तरफ चावल व फूल रखकर कलश स्थापित करते हैं. कलश में जल रखते हैं. आटा का चैमुखी दीपक बनाकर 16-16 तार की चार बत्तियाँ डालकर जलाते हैं. सबसे पहले गणेशजी का पूजन करते हैं. पूजन करके जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ाते हैं. इसके बाद कलश का पूजन गणेश पूजन की तरह किया जाता है. फिर नौ ग्रह तथा षोडश माता की पूजा करके सारा चढ़ावा ब्राह्मण को दे देते हैं. इसके बाद मिट्टी की मंगला गौरी बनाकर उन्हें जल, दूध, दही आदि से स्नान करवा कर वस्त्र पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दूर, मेंहदी व काजल लगाते हैं. सोलह तरह के फूल पत्ते माला चढ़ाते हैं. मेवा, सुपारी, लौंग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूड़िया चढ़ाते हैं. कथा सुनकर सासुजी के पाँव छूकर एक समय एक अन्न खाने का विधान है. अगले दिन मंगला गौरी का विसर्जन करने के बाद भोजन करते हैं.


मंगला गौरी व्रत कथा
मंगला गौरी व्रत के साथ एक कथा का संबंध भी बताया जाता है जिसके अनुसार ''प्राचिन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है. उसके जीवन में उसे धन वैभव की कोई कमी न थी. किंतु उसे केवल एक ही बात सताती थी जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान नहीं थी. जिसके लिए वह खूब पूजा पाठ ओर दान पुण्य भी किया करता था. उसके इस अच्छे कार्यों से प्रसन्न हो भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा. अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है, अत: उस सेठ ने सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया और कुछ समय पश्चा अपने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी अत: इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था जिसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की दिर्घायु प्राप्त हुई.''


उद्यापन विधि
सावन माह के मंगलवारों का व्रत करने के बाद इसका उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन में खाना वर्जित होता है. मेंहदी लगाकर पूजा करनी चाहिए. एक चौकी के चार कोनों पर केले के चार थम्ब लगाकर मण्डप पर एक ओढ़नी बांधनी चाहिए. कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलागौरी की स्थापना करनी चाहिए. साड़ी, नथ व सुहाग की सभी वस्तुएँ रखनी चाहिए. हवन के उपरान्त कथा सुनकर आरती करनी चाहिए. चाँदी के बर्तन में आटे के सोलह लड्डू, रुपया व साड़ी सासू जी को देकर उनके पैर छूने चाहिए. पूजा कराने वाले पंडितों को भी भोजन कराकर धोती व अंगोछा देना चाहिए.
अगले दिन सोहल ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणियों को, सुहाग-पिटारी देनी चाहिए. सुहाग पिटारी में सुहाग का सामान व साड़ी होती है. इतना सब करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए.


2023 में मंगला गौरी व्रत तिथियां


1 अगस्त 2023 मंगलवार
अधिक मास, तीसरा श्रवण मंगला गौरी व्रत


8 अगस्त 2023 मंगलवार
अधिक मास, चौथा श्रवण मंगला गौरी व्रत


15 अगस्त 2023 मंगलवार
अधिक मास, पांचवां श्रवण मंगला गौरी व्रत


बुधवार, 16 अगस्त 2023
श्रवण अधिक मास समाप्त


22 अगस्त 2023 मंगलवार
तीसरा मंगला गौरी व्रत


29 अगस्त 2023 मंगलवार
चौथा मंगला गौरी व्रत