Kanwar Yatra 2023 : सावन का महीने भगवान भोलेनाथ की भक्ति का महीना माना जाता है. मान्यता है कि सावन में अगर किसी को भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद मिल जाए तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है. सावन में ही भगवान शिव को मानने के लिए कांवड़ यात्रा (Kavar Yatra) लेकर जाते हैं और उन पर जल चढ़ाते हैं. ऐसे में सवाल आता है कि आखिर कांवड़ यात्रा क्‍या होती है. इसका महत्‍व क्‍या है?. 


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कांवड़ यात्रा का महत्‍व 
दरअसल, शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है. ये जल एक पवित्र स्थान से अपने कंधे पर ले जाकर भगवान शिव को सावन की महीने में अर्पित किया जाता है. इस यात्रा के दौरान भक्त बल भोले के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं. मान्‍यता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य मिलता है. इस बार कांवड़ यात्रा की शुरुआत चार जुलाई से हो रही है. इसी दिन से ही सावन की शुरुआत हो रही है. 


कब हुई थी कांवड़ यात्रा की शुरुआत 
भगवान भोलेनाथ के भक्‍त परशुराम ने पहली बार कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. उन्‍होंने सावन महीने में कांवड़ यात्रा की थी, तभी से साधु-संत कांवड़ यात्रा करने लगे. कांवड़ यात्रा सबसे पहले साल 1960 में सामने आई थी. इस यात्रा में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. मान्यता यह भी है कि इस यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने की थी. श्रवण कुमार ने अपने माता-पित की इच्छा पूरी करने के लिए उनको कांवड़ में बैठाकर लेकर आए और हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था. साथ ही श्रवण कुमार वापस आते वक्त गंगाजल भी लेकर आए थे. इसी जल से उन्होंने भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था. 


कहां से लेकर जाते हैं कांवड़ यात्रा 
कांवड़ यात्रा के दौरान भक्त पवित्र स्थानों से गंगाजल लेकर आते हैं. साथ ही भक्त उसी पवित्र स्थान पर गंगा स्नान भी करते हैं. ज्यादातर लोग गंगाजल गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से गंगाजल को लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. एक बात और भक्त जो कांवड़ लेकर जाते हैं वो बांस से बनी हुई होती है. इसके दोनों छोरों पर घड़े बंधे होते हैं. इसमें गंगाजल होता है. इन्हीं घड़ों को गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा को पैदल पूरा किया जाता है. इसके अलावा कुछ लोग तो नंगे पांव ही यात्रा करते हैं.


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