महाभारत के विषय में जब भी कहीं चर्चा की जाती है तो इस प्रसंग के बारे जरूर बात होती है कि आखिर क्यों महाभारत में अर्जुन का वध उनके पुत्र ने ही कर दिया था? क्या आप को इसके बारे में जानकारी है? दरअसल आज हम इस लेख में इसी विषय पर बात करने वाले है. कुरुक्षेत्र में विजय पताका लहराने के बाद सभी पांडवों ने मिलकर अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया. 


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इसी दौरान जब वह यज्ञ का अश्व मणिपुर पहुंचा. अश्वमेध यज्ञ का नियम होता है कि जिस भी राज्य में यज्ञ का घोड़ा जिस भी राज्य में जाएगा उस राज्य की सीमा पर यज्ञ के यजमान का अधिकार होगा. एक तरह से कह सकते है कि जिस राज्य में वह घोड़ा विचर रहा होता है. उस राज्य को अश्वमेध यज्ञ कराने वाले राज की आधीनता स्वीकार करनी होती है, या तो फिर यु्द्ध करके उसको हराना होता है. 


उस दौरान मणिपुर नरेश बभ्रुवाहन (जो अर्जुन का पुत्र था) ने अर्जुन का स्वागत करने हेतु बहुत सारा धन लेकर नगर से बाहर निकल आया. अपने पुत्र का यह आचरण देखकर अर्जुन को अच्छा नहीं लगा. उन्हें अपने पुत्र से यह अपेक्षा थी कि वह क्षत्रिय धर्म का पालन करेगा और अर्जुन से युद्ध करेगा. इसलिए अर्जुन ने अपने पुत्र को खरी खोटी सुनाई जिससे वह दुःखी हो गया. तभी अर्जुन की पत्नी नागकन्या उलूपी वहां आ पहुंची और उसने बभ्रुवाहन को युद्ध के लिए उकसाया. तभी पिता और पुत्र के बीच युद्ध शुरू हो गया. 


अपने पुत्र का पराक्रम देखकर अर्जुन को प्रसन्नता हुई. इसलिए वो बभ्रुवाहन को युद्ध में अधिक पीड़ा न दे सके. लेकिन बभ्रुवाहन अपने पूरे पराक्रम से युक्त होकर युद्ध कर रहा था. उसने अर्जुन की छाती में भयंकर बाण से प्रहार किया जिससे वह मूर्छित हो गए. सबको लगा की अर्जुन यमलोक चले गए हैं इसलिए वे लोग विलाप करने लगे. तभी उलूपी ने नागमणि से अर्जुन को पुनः जीवित कर दिया.


जब अर्जुन होश में आ गए तब उलूपी से पूरा घटनाक्रम विस्तार से समझाने को कहा तब उलूपी ने वसु देवताओं के शाप के बारे में याद दिलाया दरअसल अर्जुन ने भीष्म पितामह का वध छलपूर्वक किया था. इसलिए अर्जुन के शाप मिला था. इसकी जानकारी जब उलूपी को हुई, तब वह वसु देवताओं के पास गई और इस शाप से मुक्ति पाने का उपाय उनसे पूछा.  


इस संदर्भ में वसु देवताओं ने उलूपी से कहा कि जब बभ्रुवाहन अर्जुन का वध कर देगा, तब उन्हें इस शाप से मुक्ति मिल जाएगी. इसी कारणवश उलूपी ने बभ्रुवाहन को युद्ध के लिए उकसाया था. इस सत्य को जान लेने के पश्चात् अर्जुन ने अपने पराक्रमी पुत्र बभ्रुवाहन को अपनी छाती से लगा लिया.


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