100 सालों से हिंदू धर्म का प्रचार- प्रसार, जानें गोरखपुर की इस संस्था की पूरी कहानी
देश विदेशों में फैले तमाम हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों में चेतना का पुनर्जागरण करने वाला गीता प्रेस हिंदुओं के धार्मिक साहित्य का बहुत महत्वपूर्ण केन्द्र है. धार्मिक पुस्तकों को सस्ती कीमत में आम जन तक इसे उपलब्ध कराना गीता प्रेस की सबसे बड़ी उपलब्धी रही है.
100 वर्षगांठ
गीता प्रेस ने अभी हाल में ही अपना 100 वर्षगांठ मनाई है. विगत 100 वर्षों से निरंतर हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी गीता प्रेस ने अपने कंधे पर उठा रखी है.
प्रधानमंत्री मोदी का इसका दौरा
यही कारण है कि 2021 में बंद होने के कगार पर पहुंच चुकी गीता प्रेस को जीवंत रखने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने इसका दौरा किया और वहां की कमियों को दूर करने की कोशिश की.
घर-घर हिंदू धर्म ग्रंथ
अपने स्थापना के समय गीता प्रेस ने एक लक्ष्य रखा था कि प्रत्येक हिंदू के घर श्रीरामचरितमानस और श्रीमद्भागवत ग्रंथों हो. आज गीता प्रेस लगभग अपने खुद से किये वादे पर खरा उतर रहा है.
1923 में गीता प्रेस की स्थापना
धार्मिक व अध्यात्मिक पुस्तकों के लिहाज से गीता प्रेस विश्व की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था है. गीता प्रेस की स्थापना 1923 में किराए के मकान में सेठ जयदयाल गोयंदका ने की थी.
संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार
बाद में विश्व विख्यात गृहस्थ संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के गीता प्रेस से जुड़ने और कल्याणपत्रिका का प्रकाश शुरू करने के बाद इसकी ख्याति उत्तरोतर वैश्विक होती गई.
93 करोड़ से ज्यादा पुस्तकों
अब तक गीता प्रेस ने 93 करोड़ से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन किया है. इसमें कल्याण मासिक भी शामिल है. पिछले वित्त वर्ष में गीता प्रेस ने 2 करोड़ 42 लाख की संख्या में प्रतियां प्रकाशित की थी. जिससे कुल 111 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी.
प्रतिदिन 70,000 से अधिक पुस्तकें
गीता प्रेस प्रतिदिन 70,000 से अधिक पुस्तकें तैयार करता है. गीता प्रेस हर महीने 600 टन से ज्यादा पेपर कंज्यूम करता है. इसके बाद भी मार्केट में गीता प्रेस की किताबों की तंगी है.