सर्वपितृ अमावस्या को सूर्य ग्रहण, क्या ऐसे में कर सकते हैं पितरों का तर्पण

पितृ पक्ष श्राद्धों का हर दिन महत्वपूर्ण होता है लेकिन सर्वपितृ अमावस्या यानी श्राद्ध कर्म की अंतिम तिथि का ज्यादा ही महत्व होता है क्योंकि इस दिन उन सभी पितरों का भी श्राद्ध और पिंडदान किया जा सकता है जिनकी मृत्यु की तिथि मालूम नहीं होती है.

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सर्वपितृ अमावस्या महत्व

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को विदा किया जाता है. यह दिन हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि ज्ञात नहीं होती

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सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध कर्म का अंतिम दिन

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है, और इसे श्राद्ध कर्म के अंतिम दिन के रूप में भी देखा जाता है. यदि किसी कारणवश किसी पितर का श्राद्ध नहीं हो पाया है, तो इस दिन उसे भी पूर्ण किया जा सकता है.

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सर्वपितृ अमावस्या को दान का महत्व

कहा जाता है कि अश्विन मास की अमावस्या को दान करने से पितर दोष मुक्त होते हैं. पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और जातक के सभी मनोरथ पूरे होते हैं.

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सर्वपितृ अमावस्या 2024 कब

इस साल सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर को मनाई जाएगी. पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि की शुरुआत 1 अक्टूबर की रात 9:40 बजे होगी, और यह तिथि 2 अक्टूबर की मध्य रात्रि 2:19 बजे समाप्त हो जाएगी. ऐसे में श्राद्ध कर्म के लिए 2 अक्टूबर का दिन उपयुक्त रहेगा

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इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर ग्रहण भी

इस अमावस्या पर सूर्य ग्रहण भी लग रहा है, जो 1 अक्टूबर की रात 9:40 बजे शुरू होकर 2 अक्टूबर की मध्य रात्रि 3:17 बजे समाप्त हो जाएगा. यह साल का दूसरा सूर्य ग्रहण है जो वलायकार होगा. वलायकार सूर्यग्रहण को रिंग ऑफ फायर भी कहा जाता है. 

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क्या सूर्यग्रहण में हो सकता है श्राद्ध कर्म

हालांकि सर्वपितृ अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण लगेगा लेकिन यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा.  यह ग्रहण 2 अक्टूबर की सुबह से पहले ही समाप्त हो जाएगा.   इसलिए, भारत में ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा, और श्राद्ध कर्म करने में कोई बाधा नहीं होगी.

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सर्वपितृ अमावस्या को किनका श्राद्ध

सर्वपितृ अमावस्या का दिन उन सभी पितरों को समर्पित होता है, जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया. इस दिन विशेष रूप से श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म किए जाते हैं.

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सर्वपितृ अमावस्या को दान-पुण्य का महत्व

माना जाता है कि सर्वपितृ अमावस्या को श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे तृप्त होकर अपने लोकों को वापस चले जाते हैं. जिन परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए भी इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है.

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भूले-बिसरे पितरों को मोक्ष

इस विशेष दिन पर किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन पवित्रता और श्रद्धा से श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व होता है. इस अमावस्या पर किया गया पिंडदान और तर्पण उनके जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली लाने में सहायक होता है.

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भूले-बिसरे पितरों को मोक्ष

इस विशेष दिन पर किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन पवित्रता और श्रद्धा से श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व होता है. इस अमावस्या पर किया गया पिंडदान और तर्पण उनके जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली लाने में सहायक होता है.

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Disclaimer

यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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