Garuda Purana on Shradh Karm: हिंदू धर्म में पितरों का श्राद्ध और तर्पण एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है, और हिंदू समाज में आम प्रचलित धारणा रही है कि श्राद्ध कर्म बहू या बेटियों को नहीं करना चाहिए इसका अधिकार केवल पुत्र या पौत्र का होता है. जोकि गरुड़ पुराण के अनुसार पूरी तरह से गलत धारणा है. गरुड़ पुराण में लड़कियों, पुत्रियों और पुत्रवधुओं के श्राद्ध को लेकर क्या कहा गया उस पर चर्चा करने से पहले आपके लिए यह भी जान लेना जरूरी है कि पितृलोक और तर्पण को लेकर गरुड़ पुराण में क्या-क्या कहा गया है.


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पितृलोक और तर्पण का महत्व
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद हमारे पूर्वज, जिन्हें पितर कहा जाता है, पितृलोक में निवास करते हैं. यह एक विशेष स्थान है जहां आत्माओं का कर्मों के आधार पर लेखा-जोखा होता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करना आवश्यक माना जाता है. मान्यता है कि यह अनुष्ठान न केवल पितरों को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है, बल्कि इसे करने वाले व्यक्ति के जीवन में भी सुख-समृद्धि आती है.


क्या लड़कियां कर सकती हैं श्राद्ध ?
गरुड़ पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पितरों का श्राद्ध करने का अधिकार केवल पुत्रों तक सीमित नहीं है. अगर परिवार में पुत्र नहीं है, तो पुत्री को श्राद्ध और तर्पण करने का अधिकार होता है. यह अधिकार केवल इसलिए नहीं दिया गया है कि पुत्र न हो, बल्कि पुत्र के होते हुए भी पुत्री अपने माता-पिता के श्राद्ध और तर्पण कर सकती है. पुत्र और पुत्री, दोनों ही अपने माता-पिता का अंश होते हैं और उनका रक्त एक ही कुल से जुड़ा होता है. इसलिए दोनों को इस धार्मिक कर्तव्य को निभाने का पूरा अधिकार है.


क्या पुत्रवधू भी कर सकती है श्राद्ध ?
गरुड़ पुराण में इस बात का भी जिक्र है कि अगर किसी घर में केवल पुत्रवधु ही बची हो और माता-पिता का तर्पण करने वाला कोई अन्य न हो, तो पुत्रवधु भी यह कार्य कर सकती है. इसका एक प्राचीन उदाहरण रामायण में मिलता है, जब माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. यह दिखाता है कि पुत्रवधु को भी पितरों का तर्पण करने का पूरा अधिकार है.


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विवाहित पुत्रियों का अधिकार
विवाहित पुत्रियों को लेकर भी कई लोगों के मन में सवाल होते हैं कि क्या वे अपने मायके के पितरों का श्राद्ध कर सकती हैं. गरुड़ पुराण इस भ्रम को भी दूर करता है. विवाहित पुत्रियां, भले ही दूसरे कुल में चली गई हों, फिर भी अपने मूल कुल का अंश मानी जाती हैं. उनके संबंध अपने माता-पिता और पूर्वजों से हमेशा बने रहते हैं. इसलिए वे भी श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं.


समाज की संकीर्ण धारणाओं से ऊपर उठें
यह सच है कि समाज में आज भी कुछ लोग धार्मिक क्रियाओं को लेकर लड़कियों को सीमित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन धार्मिक ग्रंथों में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं है. समाज की संकीर्ण सोच के बावजूद, गरुड़ पुराण यह सिद्ध करता है कि पितरों का श्राद्ध और तर्पण केवल पुत्रों तक सीमित नहीं है. पुत्रियां भी अपने माता-पिता के प्रति अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभा सकती हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्ति में सहायता कर सकती हैं.


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