panchajanya shankh: हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान अक्सर आपने देखा होगा कि शंख बजाए जाते हैं. शंख को पवित्रता, सकारात्मकता, वैभव और धर्म का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूजा के दौरान शंख बजाने से देवी-देवताओं की कृपा मिलती है. ऐसा कहते हैं कि शंख बजाने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. सनातन धार्मिक ग्रंथों में पांचजन्य शंख का उल्लेख मिलता है. यह शंख चिरकाल में समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक था. उस समय भगवान विष्णु ने पांचजन्य शंख को धारण किया था. द्वापर युग में भी पांचजन्य शंख का उल्लेख मिलता है. पाञ्चजन्य शंख को अत्‍यंत दुर्लभ शंख माना गया है.


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कितने प्रकार के होते हैं शंख?


हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं. लेक‍िन इनके 3 प्रमुख प्रकार दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख माने गए हैं. इससे इतर श्रीकृष्‍ण का पाञ्चजन्य शंख है जो अत्‍यंत व‍िशेष है. कैसा होता है पाञ्चजन्य शंख? इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है. इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है. हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं. इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है, यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है.


कैसे पड़ा "पाञ्चजन्य"


पाञ्चजन्य शंख का नाम "पाञ्चजन्य" इसलिए पड़ा क्योंकि यह शंख समुद्र में रहने वाले एक जीव "पाञ्चजन्य" से बनाया गया था। यह जीव एक प्रकार का शंख होता है, जो समुद्र में पाया जाता है.


महाभारत में शंखों का भी ज‍िक्र


धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत में श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य, अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक नामक शंख था. इन सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी. कहा जाता है कि इन सभी में पाञ्चजन्य शंख अत्‍यंत दुर्लभ शंख है.


कृष्‍ण ने शंख से क‍िया था नए युग का आरंभ


पाञ्चजन्य बहुत ही दुर्लभ शंख माना जाता है. मान्‍यता है क‍ि इसकी उत्‍पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था. पौराण‍िक कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्‍ण के गुरु के बेटे पुनरदत्त को एक बार एक राक्षस उठा ले गया था. उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए. वहां गए तो उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है. उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रख लिया. बाद में कृष्ण को पता चला कि गुरु का पुत्र यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए. यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक डोलने लगा था. जब यमलोक ह‍िलने लगा तो यमराज ने खुध आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु के पुत्र की आत्मा को लौटा दिया था. भगवान श्रीकृष्ण बलराम और अपने गुरु के साथ धरती पर लौट आए. उन्होंने अपने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु के सामने रख दिया. गुरु ने पाञ्चजन्य को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है. तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया.


ध्वनि से वातावरण होता है शुद्ध


ऐसी मान्‍यता है इसकी ध्‍वन‍ि जहां तक जाती है वहां तक वातावरण में सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार होता है. इसकी शक्ति और चमत्कारों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है. इसे विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है.


शंख नाद का प्रतीक


शंख ध्वनि शुभ मानी गई है. कई क‍िलोमीटर तक जाती है इस शंख की ध्‍वन‍ि ऐसा कहते हैं क‍ि भगवान कृष्ण के पाञ्चजन्य शंख की ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी. महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख बजाकर पांडव सेना में उत्साह भरते थे तो कौरवों की सेना में डर पैदा करते थे. इसकी ध्वनि सिंह की गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी.


डिस्क्लेमर- यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं.कंटेंट का उद्देश्य मात्र आपको बेहतर सलाह देना है. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता. इस संदर्भ में हम किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते हैं.


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