Shaniwar ke Upay: शनिदेव की क्रूर दृष्टि से पाना है पार, तो शनिवार को जरूर करें यह काम
आज माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है. आज दिन शनिवार है. हिंदू धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित माना जाता है. शनि देव को न्याय और कर्मों का देवता कहा जाता है. शनि अगर अशांत हो जाएं तो जातक के जीवन में कष्ट शुरू हो जाते हैं.
Shaniwar ke Upay: आज माघ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है. आज दिन शनिवार है. हिंदू धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित माना जाता है. शनि देव को न्याय और कर्मों का देवता कहा जाता है. शनि अगर अशांत हो जाएं तो जातक के जीवन में कष्ट शुरू हो जाते हैं. शनि को काफी गुस्सैल ग्रह बताया गया है. शनिदेव जातक के जीवन में उथल-पुथल मचा सकते हैं. शनिदेव केवल उन्हीं लोगों को दंडित करते हैं, जिनके कर्म अच्छे नहीं होते. वहीं, जिन लोगों पर उनकी कृपा होती है, उनके जीवन में सब मंगल ही मगंल होता है. अगर आप पर भी शनिदेव की क्रूर दृष्टि है और आप मुक्ति पाना चाहते हैं तो शनिवार को कुछ विशेष उपाय कर सकते हैं. आप शनिवार को श्री शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं, ऐसा करना फलदायी साबित हो सकता है.
श्री शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (Sri Shani Ashtottara Shatanama Stotram)
शनैश्चराय शान्ताय सर्वाभीष्टप्रदायिने ।
शरण्याय वरेण्याय सर्वेशाय नमो नमः ॥ १॥
सौम्याय सुरवन्द्याय सुरलोकविहारिणे ।
सुखासनोपविष्टाय सुन्दराय नमो नमः ॥ २॥
घनाय घनरूपाय घनाभरणधारिणे ।
घनसारविलेपाय खद्योताय नमो नमः ॥ ३॥
मन्दाय मन्दचेष्टाय महनीयगुणात्मने ।
मर्त्यपावनपादाय महेशाय नमो नमः ॥ ४॥
छायापुत्राय शर्वाय शरतूणीरधारिणे ।
चरस्थिरस्वभावाय चञ्चलाय नमो नमः ॥ ५॥
नीलवर्णाय नित्याय नीलाञ्जननिभाय च ।
नीलाम्बरविभूषाय निश्चलाय नमो नमः ॥ ६॥
वेद्याय विधिरूपाय विरोधाधारभूमये ।
भेदास्पदस्वभावाय वज्रदेहाय ते नमः ॥ ७॥
वैराग्यदाय वीराय वीतरोगभयाय च ।
विपत्परम्परेशाय विश्ववन्द्याय ते नमः ॥ ८॥
गृध्नवाहाय गूढाय कूर्माङ्गाय कुरूपिणे ।
कुत्सिताय गुणाढ्याय गोचराय नमो नमः ॥ ९॥
अविद्यामूलनाशाय विद्याऽविद्यास्वरूपिणे ।
आयुष्यकारणायाऽपदुद्धर्त्रे च नमो नमः ॥ १०॥
विष्णुभक्ताय वशिने विविधागमवेदिने ।
विधिस्तुत्याय वन्द्याय विरूपाक्षाय ते नमः ॥ ११॥
वरिष्ठाय गरिष्ठाय वज्राङ्कुशधराय च ।
वरदाभयहस्ताय वामनाय नमो नमः ॥ १२॥
ज्येष्ठापत्नीसमेताय श्रेष्ठाय मितभाषिणे ।
कष्टौघनाशकर्याय पुष्टिदाय नमो नमः ॥ १३॥
स्तुत्याय स्तोत्रगम्याय भक्तिवश्याय भानवे ।
भानुपुत्राय भव्याय पावनाय नमो नमः ॥ १४॥
धनुर्मण्डलसंस्थाय धनदाय धनुष्मते ।
तनुप्रकाशदेहाय तामसाय नमो नमः ॥ १५॥
अशेषजनवन्द्याय विशेषफलदायिने ।
वशीकृतजनेशाय पशूनाम्पतये नमः ॥ १६॥
खेचराय खगेशाय घननीलाम्बराय च ।
काठिन्यमानसायाऽर्यगणस्तुत्याय ते नमः ॥ १७॥
नीलच्छत्राय नित्याय निर्गुणाय गुणात्मने ।
निरामयाय निन्द्याय वन्दनीयाय ते नमः ॥ १८॥
धीराय दिव्यदेहाय दीनार्तिहरणाय च ।
दैन्यनाशकरायाऽर्यजनगण्याय ते नमः ॥ १९॥
क्रूराय क्रूरचेष्टाय कामक्रोधकराय च ।
कळत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमो नमः ॥ २०॥
परिपोषितभक्ताय परभीतिहराय ।
भक्तसङ्घमनोऽभीष्टफलदाय नमो नमः ॥ २१॥
इत्थं शनैश्चरायेदं नांनामष्टोत्तरं शतम् ।
प्रत्यहं प्रजपन्मर्त्यो दीर्घमायुरवाप्नुयात् ॥ २२॥
।। इति वृहत् श्री शनैश्चरस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
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