Hindu Sanskar: हिंदू धर्म में जीवन को एक संस्कारमय यात्रा माना गया है, जिसमें 16 महत्वपूर्ण संस्कार शामिल हैं. ये संस्कार जीवन के हर पड़ाव को पवित्र और शुभ बनाने के लिए किए जाते हैं. सीमंतोन्नयन संस्कार, जो कि तीसरा संस्कार है, गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु के कल्याण के लिए किया जाता है. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं.


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सीमंतोन्नयन संस्कार क्या है ? 
सीमंतोन्नयन संस्कार का शाब्दिक अर्थ है ‘सीमंत’ यानी बालों का हिस्सा और ‘उन्नयन’ यानी ऊपर उठाना. इस संस्कार में पति, अपनी गर्भवती पत्नी के बालों को ऊपर उठाते हुए विशेष मंत्रों का उच्चारण करता है. यह संस्कार गर्भवती महिला के मानसिक बल को बढ़ाने और गर्भस्थ शिशु को शुभ ऊर्जा प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है.


गर्भधारण से लेकर सीमंतोन्नयन तक का सफर
सीमंतोन्नयन संस्कार पुंसवन संस्कार का विस्तार माना जाता है. गर्भधारण के छठे या आठवें महीने में यह संस्कार किया जाता है, जब शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास तेजी से हो रहा होता है. यह संस्कार गर्भवती महिला की इच्छाओं और भावनाओं का सम्मान करते हुए गर्भस्थ शिशु को आध्यात्मिक रूप से जागरूक करने का कार्य करता है.


सीमंतोन्नयन संस्कार का महत्व
1. शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास
  गर्भ के चार महीने बाद शिशु के अंग-प्रत्यंग बनने लगते हैं. इस दौरान माता के मनोभावों और इच्छाओं का शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास पर गहरा असर पड़ता है.


2. गर्भवती महिला को मानसिक बल
   इस संस्कार के जरिए महिला को सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान की जाती है. उसे शुभ विचार और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है.


3. ग्रहों की अनुकूलता
   सीमंतोन्नयन संस्कार के दौरान मंत्रोच्चार और नवग्रह मंत्रों के माध्यम से गर्भस्थ शिशु के लिए ग्रहों की अनुकूलता सुनिश्चित की जाती है.


4.  अनहोनी से सुरक्षा
   इस संस्कार के माध्यम से भाग्यवश आने वाले किसी भी दुर्योग को टालने का प्रयास किया जाता है. यह गर्भस्थ शिशु के लिए सौभाग्य का कारक बनता है.


सीमंतोन्नयन संस्कार की विधि
मांग निकालना: पति गूलर की टहनी से अपनी पत्नी की मांग निकालते हैं और तीन बार ‘ओं भूर्विनयामि’ मंत्र का उच्चारण करते हैं.


विशेष मंत्र का उच्चारण: इसके पश्चात, पति निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सीमंतोन्नयन करते हैं:
   
   _“येनादिते: सीमानं नयाति प्रजापतिर्महते सौभगाय।  
   तेनाहमस्यौ सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टिं कृणोमि।।”_  
   

   इसका अर्थ है कि जैसे देवमाता अदिति का सीमंतोन्नयन उनके पति प्रजापति ने किया, उसी प्रकार मैं अपनी पत्नी का सीमंतोन्नयन करते हुए संतान की दीर्घायु और कल्याण की कामना करता हूं.


वृद्धा का आशीर्वाद: संस्कार के बाद गर्भवती महिला को किसी वृद्धा का आशीर्वाद लेना चाहिए. यह आशीर्वाद शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.


खिचड़ी का सेवन: गर्भवती महिला को घी मिलाकर खिचड़ी खिलाई जाती है. इस दौरान उससे सवाल किया जाता है, “तुम क्या देखती हो?” महिला इसका उत्तर देती है, “संतान देखती हूं.”


समूह का आशीर्वाद: संस्कार में उपस्थित महिलाएं गर्भवती को आशीर्वाद देती हैं और शुभकामनाएं देती हैं कि उसे सुंदर, स्वस्थ और दीर्घायु संतान की प्राप्ति हो.


आधुनिक संदर्भ में सीमंतोन्नयन संस्कार: आज के समय में इस संस्कार का आधुनिक रूप बेबी शॉवर के तौर पर देखा जाता है. बेबी शॉवर में भी गर्भवती महिला को शुभकामनाएं दी जाती हैं और उसे विशेष आहार व उपहार प्रदान किए जाते हैं. यह एक तरह से पारंपरिक संस्कार का आधुनिक संस्करण है.


संस्कार का वैज्ञानिक पहलू
इस संस्कार का उद्देश्य न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. गर्भावस्था के छठे और आठवें महीने में शिशु के मस्तिष्क और चेतना का विकास तेजी से होता है. माता को सकारात्मक विचारों से प्रेरित करने और उसे तनावमुक्त रखने से शिशु पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.


सीमंतोन्नयन संस्कार का प्रभाव


गर्भवती महिला की शांति: संस्कार के दौरान किए गए मंत्रोच्चार और अनुष्ठान से गर्भवती महिला को मानसिक शांति मिलती है.


सकारात्मक वातावरण: इस संस्कार में परिवार और समाज की भागीदारी से गर्भवती महिला को एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण वातावरण मिलता है.


शिशु का आध्यात्मिक विकास: शिशु को मंत्रों और देवी-देवताओं के नाम से संस्कारित करने से उसकी ग्रहण शक्ति बढ़ती है और उसका आध्यात्मिक विकास होता है.


Disclaimer: दी गई जानकारी पंचांग और ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित है. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.