Mahakaleshwar: सावन महीने के पांचवें सोमवार के शुभ अवसर पर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में पुजारियों ने भस्म आरती की. सावन का महीना शिव भक्तों के लिए बहुत ही महत्त्व रखता है. छोटे से छोटे शिव मंदिर से लेकर सभी ज्योतिर्लिंगों में शिव की पूजा अर्चना होती है. भक्त अपने आराध्य देव का जल और दूध से अभिषेक करते हैं. बिल्वपत्र चढ़ाकर शिव का प्रसन्न किया जाता है. लेकिन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा है जहाँ पर शिव की भस्म आरती की जाती है. यहां शिवलिंग पर भस्म यानि राख लगाया जाता है. इसलिए यहां की आरती में शामिल होने की कामना हर शिव भक्त के मन में होती है.  


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महाकालेश्वर मंदिर का महत्त्व 
देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग महत्व है. यहां महाकाल की पूजा की जाती है. कहते हैं-  काल उसका क्या बिगाड़े, भक्त जो महाकाल का. मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल का मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग है. यहां तड़के चार बजे भस्म आरती करने का विधान है. यहां आयु और स्वास्थय की कामना के लिए भक्त महाकाल का प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. भस्म आरती में शामिल होने के लिए यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. इस आरती में शामिल होने के लिए भक्त बहुत उत्साहित रहे हैं.


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क्यों की जाती है भस्म आरती 
यहां भस्म आरती करने के पीछे भी एक कहानी है. महाकाल मंदिर में भस्म आरती का ब्रह्म महूर्त है, कहते हैं सुबह 4 बजे के लगभग यह आरती भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है.  एक पौराणिक कथा भी इस संबंध में जुड़ी हुई है जिसके अनुसार उज्जैन में पहले राजा चन्द्रसेन का शासन था. एक बार वहां दूषण नाम के दुष्ट राक्षस ने आक्रमण कर दिया. इस आक्रमण से बचने के लिए राजा और अन्य अभी भक्त महाकाल की शरण में गए.  इस आक्रमण से महाकाल ने भक्तों की रक्षा की. भगवान शिव ने दैत्य के वध के पश्चात उसकी राख से अपना शृंगार किया और हमेशा के लिए वहां बस गए.  तभी से यहां भस्म आरती की जाने लगी.


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