Gangajal: भारत में अनेक नदियां हैं. सभी नदियों का अपना अलग अलग महत्त्व है. गंगा को हमारे यहाँ देवी और माता कहकर सम्बोधित किया जाता है. करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक गंगा में लोग डुबकी लगाने जाते हैं. सावन के महीने में कांवड़ यात्री गंगाजल से आराध्य देव शिव को स्नान करवाते हैं. गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री उत्तराखंड के चार धामों में से एक हैं. भक्त यात्रा का एक पड़ाव यहां रखते हैं. गंगा जी में नहाकर सभी पाप धूल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष मिलता है. कोई शुभ कार्य करने से पहले गंगा जल का उपयोग किया जाता है. हर हिंदू के घर में गंगा जल से भरी बोतल जरूर मिलती है. लेकिन यह पानी वर्षों बाद भी खराब नहीं होता. 


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आप कुछ दिन के लिए घर के नल में आने वाले पानी को बोतल में भरकर रख दें और भूल जाएं तो आप पाएंगे कुछ दिन बाद पानी में बदबू आने लगती है. बर्तन पर काई जम जाती है और पानी सड़ने लगता है. पानी में गन्दगी के कारण चिकनाई भी हो जाती है. लेकिन गंगाजल को आप महीनों क्या, सालों बाद भी खोलेंगे तो पानी वैसा ही मिलेगा जैसा भरते समय था. एकदम स्वच्छ और पवित्र. 


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यह बात तो हम सब जानते ही हैं कि गंगा हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली है. मां गंगा के जल में भारी मात्रा में गंधक, सल्फर और खनिज पाई जाती हैं. ये भी कारण है कि यह पानी साफ रहता है. हिमालय पर्वत से होकर गुजरते हुए यह नदी आगे बढ़ती है. गंगा के जल में भारी मात्रा में गंधक, सल्फर और खनिज पाई जाती हैं. इसके अलावा  हिमालय में अनेक तरह की औषधीय जड़ी-बूटियां भी पाई जाती हैं. 


आध्यात्मिक पक्ष 
अध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो गंगा को धरती की अन्य सभी नदियों से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है.  इसीलिए तो भगवान शिव ने भी गंगा को अपने सिर पर धारण किया हुआ है.  गंगा धरती पर मनुष्यों का उद्धार करने के लिए ही आयी है. यह हर पाप को नष्ट करके मोक्ष देती है तभी इनका जल कभी भी मलिन नहीं होता.