Kanwar Yatra 2023​ : सावन का महीना शुरू हो गया है. भोले के भक्‍त कांवड़ लेकर लौटने लगे हैं. सड़कों पर बम भोले की गूंज सुनाई देनी लगी है. कांवड़ यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्‍यताएं हैं. इन्‍हीं में से एक है कि गूलर के पेड़ के नीचे से कांवड़ लेकर ना गुजरना. तो आइये जानते हैं इसके पीछे क्‍या मान्‍यता है. 


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गूलर के पेड़ का भगवान शिव से सीधा संबंध 
जानकारों का कहना है कि गूलर के वृक्ष को संस्‍कृत में उध्‍म्‍बर कहा जाता है. इसका मतलब जो भगवान शिव का स्‍मरण करता है उसी को उध्‍म्‍बर कहा जाता है. वहीं, हिन्‍दू धर्म में गूलर के वृक्ष को पूजनीय माना जाता है. गूलर के पेड़ का संबंध यक्षराज कुबेर से भी है. कुबेर भगवान शिव के मित्र हैं. यही वजह है कि गूलर के पेड़ का सीधा संबंध भगवान शिव से है. 


यह है मान्‍यता 
मान्‍यता है कि बारिश में गूलर के पेड़ों में फल आ जाते हैं. कई बार ये फल पेड़ से गिर जाते हैं. ऐसे में यदि पेड़ के नीचे से कांवड़‍िए गुजरेंगे तो उनके पैर से फल दब सकता है. गूलर के फल में कई तरह के जीव भी होते हैं. ऐसे में पैर पर दबने से उनकी मृत्‍यु हो जाती है. इससे कांवड़‍ियों पर पाप लगेगा. इससे जल भी खंडित हो जाता है. यही वजह है कि कांवड़‍िए गूलर के पेड़ के नीचे से होकर नहीं गुजरते. 


कांवड़ यात्रा से पहले ही कर दी जाती है टहनियों की छंटनी 
बता दें कि सावन शुरू होने से पहले ही सूबे के मुखिया ने कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाले गूलर के पेड़ों की छंटाई का निर्देश दिया था. जिला प्रशासन की मदद से कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाले गूलर और भांग के पेड़ों को छांटने का काम कर दिया गया. साथ ही जहां पर भी गूलर के पेड़ होते हैं वहां पर लाल झंडे लगा दिए जाते हैं ताकी कांवड़‍िए बचकर वहां से निकलें. 


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