वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी एक लघु भारत की तस्वीर भी पेश करती हैं, जहां सर्व-धर्म समभाव की झलक देखने को मिलती है. एक तरफ घंटो और घड़ियालों कि आवाज तो दूसरी ओर मस्जिदों से गूंजती नमाज और चर्च में कोरल के गीत इस शहर की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. यहां एकता का संदेश देता एक ऐसा चर्च भी है, जहां की दीवारें भी गीता का संदेश देती हैं. यहां के लोग इसे अनोखा चर्च कहते है.


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क्या है खास?
शहर के कैंटोमेंट इलाके में बना सेंट मैरी कैथिड्रेल चर्च का इतिहास सालों पुराना है. ये चर्च पूरी तरह से भारतीय संस्कृति की झलक को दर्शाता है. इस चर्च के फादर विजय शांति राज ने बताया कि इस चर्च का निचला हिस्सा अष्टकमल के फूल के आकार का बनाया है, जिसे भारतीय वास्तुकला में अष्टकोणीय कहा जाता है. कमल पूर्णता का प्रतीक है और शंख भगवान के संदेश देने का प्रतीक है. आपको बता दें कि इस चर्च में ॐ (ओम), कलश, आम के पत्ते, लतायें और ईशा मसीह के भी संदेश शामिल हैं. यही नहीं इस चर्च में बाइबिल के संदेशों के साथ-साथ गीता के श्लोक "सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्य:" भी संस्कृत भाषा में बड़े-बड़े पीतल के धातु से बने अक्षरों से उकेरे गए हैं.


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'मंडला' कांसेप्ट पर बना है चर्च
इस चर्च के आर्किटेक्ट पंडित कृष्ण मेनन और अपनी रचनात्मकता व भारतीयता के लिए मशहूर आर्टिस्ट ज्योति शाही थे. ये चर्च सर्वधर्म के लोगों को एकता के सूत्र में बंधे रहने का संदेश देता है. वहीं, डॉ. यूजीन जोशेफ बिशप बताते हैं कि काशी जैसा नगर जो सभी धर्मों का केंद्र बिंदु है.


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उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने ऐसा सोचा कि एक ऐसा मंदिर बने जो सबके दिल को भाये और सभी धर्मों के लोग यहां आएं. ये चर्च भारतीय वास्तु शास्त्र 'मंडला' कांसेप्ट पर बना है. मंडला एक ऐसा आसन है, जहां गुरु अपने शिष्यों को बैठ कर शिक्षा देते हैं. इस चर्च के आस-पास के वातावरण में हरियाली, शांति और अहिंसा बौध धर्म से प्रेरित है.


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