UP के इस जिले में है भगवान शिव का अनोखा मंदिर, बाबा के दर्शन से पूरी होती हैं मुरादें
सावन माह में पुरे महीने यहां भक्तों का ताता लगा होता है. कोई जल चढ़ाता है तो कोई भोले बाबा का रुद्राविशेक भक्त अपनी अपनी तरह से भोले भंडारी की पूजा करते हैं.
रमेश चंद मौर्या/भदोही: उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में एक ऐसा मंदिर जो अपने आप में अनोखा है. पूरे भारत में भगवान शिव का ये एक ऐसा अनोखा मंदिर है जो एक कुए में स्तिथ है. भदोही जिले में स्तिथ ये मंदिर उन बारह शिवलिंगों में तो नहीं है. लेकिन, इस मंदिर का अपना एक अलग महत्त्व है. भोले भंडारी भगवान शिव का यह मंदिर सेमराध नाथ के नाम से प्रसिद्ध है.
कुए के इस मंदिर के और भी कई ऐतिहासिक महत्व है. कहा जाता है कि द्वापरयुग में पुण्डरीक नाम का एक राक्षस राजा हुआ करता था और वह अपने आप को भगवान श्री कृष्ण कहा करता था. उसका कहना था कि वह स्वयं कृष्ण है और अब पूरी प्रजा उसे कृष्ण मान कर पूजा करें. जब भगवान श्री कृष्ण को पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पुण्डरीक को समझाया. लेकिन, पुण्डरीक ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया और भगवान श्री कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारने लगा. उस समय भगवान श्री कृष्ण प्रयागराज के शूल व्यंकटेश्वर मंदिर में थें. फिर दोनों तरफ से युद्ध शुरू हो गया.
चारों ओर मच गया हाहाकार
भगवन श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र काशी की तरफ चला दिया और चारों तरफ हाहाकार मच गया और पुण्डरीक इस युद्ध में मारा गया. राक्षस राजा तो मर गया. लेकिन, भगवान श्री कृष्ण के चलाए गए सुदर्शन चक्र से पूरी काशी धू धू करके जलने लगी. जब काशी जलने लगी तब भगवान शिव ने श्री कृष्ण से विनय की प्रभु आपके चक्र से पूरी काशी जल रही है. ऐसे में अब मैं कहा जाऊ तब सभी देवों ने मिलाकर एक प्रस्ताव रखा.
उस प्रस्ताव में कहा गया की एक तरफ से भगवान श्री कृष्ण अपना सुदर्शन चलाये और दुसरे तरफ से भोले भंडारी शिव अपना त्रिसूल चलाये, जिस स्थान पर ये दोनों शस्त्र आपस में टकरायेंगे. वही स्थान भगवन शिव का होगा.दोनों शस्त्र टकराए जिससे एक अलौकिक रोशनी उत्पन्न हुई और वो धरती में समा गई. तभी से भगवान भोले भंडारी का यहां पर वास है. किसी समय में यह स्थान काशी यानि वाराणसी की सीमा पर था पर अब यह भदोही जिले में है और काशी प्रयाग के बीच में है.
कैसे बना भगवान शिव का मंदिर?
गंगा के किनारे स्तिथ सेमराध मंदिर में भगवान शिव का मंदिर कैसे बना? इसकी भी एक कहानी है. बताया जाता है कि उस युग में व्यापार करने के लिए नाव का सहारा लिया जाता था. इसी कड़ी में इस मंदिर के बगल से उस समय एक व्यापारी नाव से अपना सामान लेकर जा रहा था, तभी अचानक उसकी नाव यही गंगा नदी में फंस गई. काफी प्रयास के बाद भी वो निकल नहीं रही थी. चारों तरफ घना जंगल था. जब काफी प्रयास के बाद भी नाव नहीं निकली तो व्यापारी ने उसी स्थान पर रात्री विश्राम करने की सोची और वही सो गया.
सपने में हुआ भगवान शिव का दर्शन
रात में उसे सपने में भगवान शिव का दर्शन हुआ और भोले ने उससे कहा तुम इस स्थान पर खुदाई करवाओ यहां मेरा शिवलिंग है. व्यापारी ने ऐसा ही किया और उसने अगले दिन से यहां खुदाई करवाना शुरू करवा दिया. खुदाई के दौरान उसे भोले बाबा का शिवलिंग दिखा तो उसने सोचा कि इसे अपने साथ ले जाए. लेकिन, उस लिंग के वे जितना पास पहुंचते वो उतना ही नीचे चला जाता. किसी तरह से भगवन की आराधना कर के उस शिव लिंग तक वे पहुंचे और वहीं पर भोले का मंदिर बनवा दिया.
मुरादे होती हैं पूरी
आज भी वो मंदिर एक कुएं नूमे गड्डे में है. इस पूरे घटना की उल्लेख पद्मपुराण और श्रीमद भागवत में भी मिलता है. पूरे सावन माह यहां दर्शन करने वालों का ताता लगा रहता है. श्रद्धालु यहां पर गंगा मईया में स्नान करने के बाद भगवन भोले के इस अलौकिक स्वरुप का दर्शन-पूजन करते है.
दूर-दूर से आते हैं शिव भक्त
सावन माह में पुरे महीने यहां भक्तों का ताता लगा होता है. कोई जल चढ़ाता है तो कोई भोले बाबा का रुद्राविशेक सब अपनी अपनी तरह से भोले भंडारी की पूजा करते हैं. वहीं यहां भोले बाबा से जो मांगा जाता है वह पूरा होता है. अपनी मुरादों के पुरे होने पर बाबा के भक्त मंदिर में घंटे लगवाते है. शहर से काफी दूर यह मंदिर है लेकिन शिव के भक्तों की भक्ति दूर दूर से लोगों को यहां खीच लाती है.
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