लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य अल्पसंखयक आयोग ने जिलों में जाकर मदरसों की जांच करने से खुद को अलग कर लिया है. आयोग के चेयरमैन तनवीदर हैदर उस्मानी ने बताया कि मदरसों में भ्रष्टाचार की अगर कोई शिकायत आयोग को मिलती है तो उसकी जांच और उचित कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया जाएगा. विशेष परस्थितियों में अगर ज़रूरत पड़ी तो आयोग में तलब करके भी मामले की जांच की जाएगी. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कार्रवाई के लिए विभाग को निर्देशित किया जाएगा. उस्मानी के अनुसार अगर विभागीय अधिकारी जांच में लीपापोती या कार्रवाई में कोताही करते हैं तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई के लिए शासन व सरकार से शिफारिश की जाएगी. आयोग ने यह फैसला हाल में ही आयोग के सदस्यों की ओर से किए गए विभिन्न जिलों का दौरा किये जाने के बाद लिया है. माना जाता है कि इसकी एक वजह दौरों से कोई खास नतीजा न निकलने और मदरसा बोर्ड की आपत्ति भी रही है. 


लखनऊ शाहजहांपुर और बलरामपुर आदि ज़िलों में आयोग के सदस्यों की ओर से मदरसों की जांच से मदरसा शिक्षा से जुड़े लोगों में बेचैनी पाई जा रही थी. ज़्यादातर मदरसा संचालक विभागीय अधिकारियों से जांच कराने के पक्ष में थे, लेकिन आयोग के सदस्यों की मानें तो विभागीय अधिकारी कार्रवाई करने के बजाए मामले को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं जिसकी वजह से शिकायतकर्ता को इंसाफ के लिए आयोग तक आना पड़ता है.


मदरसा टीचर्स एसोशिएशन का कहना है कि अल्पसंख्यक आयोग मदरसों के मामलात में दखलअंदाज़ी नहीं कर सकता जबकि आयोग के सदस्यों का मानना है कि अल्पसंख्यकों से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई का हक आयोग को है. 


बहरहाल, आयोग के ताज़ा फैसले से इस बहस पर अब विराम लगने की उम्मीद है. इस बहस को विराम लगाने में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्षमी नारायण चौधरी ने अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने आयोग के चेयरमैन व अन्य सदस्यों के साथ विभागीय अधिकारियों और मीडिया रिपोर्टों से मिली फीडबैक के बाद मामले का निस्तारण किया है. मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी का कहना है कि विवाद को खत्म करने के लिए ज़रूरी दिशा निर्देश दिए गए हैं, लेकिन अगर मदरसा शिक्षा परिषद में किसी भी भ्रष्टाचार की शिकायत मिलती है तो उसे गंभीरता से लिया जाएगा और जरूरत पड़ने पर किसी भी स्तर से जांच करा कर कार्रवाई की जाएगी.