लखनऊ:  साल 2014 से पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम हुआ करते थे, तब हर राज्य में उनकी रैलियों की भारी डिमांड रहती थी. बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक, वह जहां भी प्रचार के लिए जाते, भाजपा को फायदा मिलता. आज वह देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन भाजपा के पास अब भी एक ऐसा ही सीएम है और वो हैं योगी आदित्यनाथ. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ इस वक्त पश्चिम बंगाल में अपनी पार्टी के लिए वोट जुटा रहे हैं. हाल ही में उन्होंने मालदा और पुरुलिया में रैली की, जिसमें जबरदस्त भीड़ देखने को मिली. यूपी में पंचायत चुनाव के बीच वह करीब 12 रैलियां पश्चिम बंगाल में करने वाले हैं. उन्हें भाजपा का तुरुप का इक्का माना जा रहा है. आइए जानते हैं क्यों...


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1. नाथ समुदाय का प्रभाव
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के सीएम होने के साथ-साथ गोरखनाथ मठ के प्रमुख भी हैं. वह हिंदू धर्म के नाथ संप्रदाय के नेता हैं. नाथ समुदाय का संबंध बंगाल और असम दोनों जगहों से है. गोरखनाथ मठ पहले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने असम के कामरूप में अपनी साधना की थी. इसका असर असम और बंगाल दोनों जगहों पर है. यहां तक गोरखपुर के अलावा कोलकता में भी गोरखनाथ मंदिर है, जिसको मानने वाले बड़ी संख्या में हैं. नाथ संप्रदाय का बंगाल के ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रभाव है. न्यूज एजेंसी IANS से बात करते हुए बीएचयू के प्रोफेसर सदानंद शाही बताते हैं कि संप्रदाय के संस्थापक मत्स्येन्द्रनाथ देश के इसी हिस्से से निकले हैं. ऐसे में असम और बंगाल, नाथ संप्रदाय का एक पारंपरिक केंद्र रहा है. 


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2. पीएम मोदी के बाद है सबसे ज्यादा डिमांड
बिहार चुनावों के दौरान आई एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया कि भाजपा में इस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद चुनावों में प्रचार के लिए सबसे ज्यादा मांग योगी आदित्यनाथ की हो रही है. उस दौरान हालात ये थे कि भाजपा के इतर जनता दल यूनाइटेड (JDU) के प्रत्याशी भी अपने क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ की रैली चाहते थे. वहीं, चुनावों की घोषणा होने से पहले उत्तर प्रदेश आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बताया कि पश्चिम बंगाल में सीएम योगी की भारी मांग है. चुनाव के समय में रोड शो भी कराए जा सकते हैं. 


3.परफॉर्मिंग प्रचारक 
योगी आदित्यनाथ के साथ एक बात और भी जुड़ी हुई है कि वह परफॉर्मिंग प्रचारक हैं. मतलब चुनावों में उनका प्रदर्शन काफी शानदार रहा है. इसका एक उदाहरण बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भी देखने को मिला. उन्होंने 18 सीटों पर भाजपा के लिए प्रचार किया, जिसमें से 13 सीटों पर पार्टी जीत गई. वहीं, हैदराबाद के लोकल चुनावों में वह प्रचार करने के लिए गए. रोड शो किया और फिर रैली. इस दौरान उन्होंने भाग्यनगर का मुद्दा उछाला. जो आज भी बहस का विषय बना हुआ है. चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की. AIMIM को उसके गढ़ में पीछे छोड़ते हुए 46 सीटें हासिल की और दूसरे नंबर की पार्टी बनी.


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