लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. यूपी चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग (UP Election Announcement) जनवरी मध्य में कर सकता है. तमाम राजनीतिक दलों के लिए यूपी का चुनाव (UP Election) हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है और इस बार भी भाजपा (BJP), समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) व कांग्रेस (Congress) अपना पूरा जोर यूपी के विधानसभा चुनाव में लगाए हुए हैं. बीजेपी के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) सोशल इंजीनियरिंग के जरिए यूपी का किला फतह करने की तैयारी कर रहे हैं.


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इस मुद्दे पर घेरने की कर रहे तैयारी 
सोशल इंजीनियरिंग के तहत समाजवादी पार्टी पहली बार दलित संगठन खड़ा कर नए वर्ग को अपने पाले में खींचने की रणनीति पर जोर है. अखिलेश यादव ने विजय यात्रा शुरू करने के साथ ही सूबे में चल रहे पार्टी अभियान की समीक्षा की कमान अपने हाथों में ले ली है. सपा रणनीतिकारों को इस बात का भरोसा है कि मंहगाई, पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम, किसानों का मुद्दा, बेरोजगारी आदि को लेकर यूपी में भाजपा की सरकार का ग्राफ गिरा है.समाजवादी पार्टी सपा लोगों के इस गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में जुटी हुई है.


सभी वर्गों को मिला जगह 
सपा ने प्रदेश की 72 सदस्यीय नई कार्यकारिणी का एलान किया उसमें सभी वर्गों का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया. यहां तक कि जातीय समीकरण ऐसा साधा कि न तो यादवों को ज्यादा जगह मिली और न ही मुसलमानों को. इसमें समाज के वार्गो को प्रतिनिधित्व दिया गया. सपा नेताओं का कहना है कि यूपी में चुनाव करीब होने के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती एक्टिव नहीं हैं. इसका फायदा सपा के दलित संगठन को मजबूती प्रदान कर रहा है.


अखिलेश यादव राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कर सकते हैं बदलाव 
इस संगठन का प्रभारी मिठाई लाल भारती को बनाया है, जो कि लंबे समय तक बसपा में रहे हैं. बसपा की कम हो रही लोकप्रियता के बीच दलितों को नए संगठन की जरुरत महसूस हो रही है. ऐसे में यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा ही एक बड़ा ठिकाना नजर आ रहा है. अखिलेश यादव पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी ज्यादा से ज्यादा दूसरी जातियों को प्रतिनिधित्व मिले इसके लिए भी बदलाव कर सकते हैं. ऐसे में अखिलेश यादव का यह दांव सत्ताधारी पार्टी पर भारी पड़ सकता है. 


बता दें कि समाजवादी पार्टी अभी तक एमवाई समीकरण पर फोकस कर रही थी. लेकिन बसपा सुप्रीमो मायवती की सक्रियता कम होने पर अखिलेश यादव लगातार दलित वोटर्स को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. इसी कड़ी में सोमवार को अखिलेश ने बसपा के दो कद्दावर नेता रामअचल राजभर और लाल जी वर्मा को पार्टी में शामिल किया. 


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