अयोध्या: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल 5 अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन कर राम मंदिर की आधारशिला रख दी थी. हालांकि उसके बाद से अभी मंदिर निर्माण के काम में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है. मीडिया में लगातार खबरें आती हैं कि इस दिन से राम मंदिर की नींव के निर्माण का काम शुरू हो जाएगा, इस तारीख से नींव की खुदाई शुरू हो जाएगी.


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लेकिन अयोध्या राम मंदिर निर्माण से जुड़ी किसी भी आधिकारिक जानकारी के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने चंपत राय को अधिकृत किया है. वही जो सूचना देते हैं उस पर विश्वास किया जा सकता है. राम मंदिर निर्माण से जुड़े तमाम मुद्दों पर ZEE उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड (ZEE UPUK) के एडिटर दिलीप तिवारी ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय का EXCLUSIVE INTERVIEW लिया है जिसे आप नीचे विस्तार से पढ़ सकते हैं...


दिलीप तिवारी: कल से ये अभियान शुरू हुआ. पहला चंदा, देश के राष्ट्रपति ने  5,00,100 रुपए दिए. माना जाए कि अब राम मंदिर निर्माण कार्य की गति और तेज होगी. कितना समय रखा है राम मंदिर निर्माण के लिए?


चंपत राय: सबसे पहले मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं.  आपके दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं और आपकी जो तकनीकी टीम है, उसको मेरा प्रणाम. राम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण में सारे हिंदुस्तान की भागीदारी होनी चाहिए.  गरीब से गरीब भी हो और उच्च पदस्थ व्यक्ति भी हो. इसके निर्माण की अवधि हमने मकर संक्रांति निर्धारित की थी. धन संग्रह 27 फरवरी (रविदास जंयती, माघ पूर्णिमा) तक चलेगा, 42 दिन का अभियान है. इसलिए दिल्ली के कार्यकर्ता बंधु सबसे पहले भारत के प्रथम नागरिक, संविधान के रक्षक महामहिम राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे. भिन्न-भिन्न राज्यों के लोग अपने-अपने स्थानों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पास पहुंचे थे. मैं भी कल लखनऊ में मुख्यमंत्री के पास गया था. परन्तु मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम ये दान नहीं मांग रहे हैं. भगवान के काम के लिए दान नहीं है. समाज स्वयं मंदिर में जाता है. अपने घर में पूजा करता है. आरती होती है, आरती की थाली घूमती है. समाज स्वेच्छा से उसमें कुछ डालता है. भगवान का ये घर बन रहा है. मंदिर यानी भगवान का घर, इसके लिए दान नहीं, समर्पण है. इसलिए राष्ट्रपति महोदय ने स्वेच्छा से समर्पण किया है. दान मांगा जाता है. दान मांगने वाले लोग दान की राशि तय करते हैं.  इस पूरे अभियान में मांगने की बात नहीं है.  समर्पण को आदरपूर्वक स्वीकार करने की बात है. कल हमने राष्ट्रपति महोदय का समर्पण स्वीकार किया. देश का प्रथम नागरिक, प्रथम समर्पण.


दिलीप तिवारी: आपने स्पष्ट किया कि हम दान नहीं मांग रहे हैं, ये समर्पण है. इसमें कोई जोर-जबरदस्ती वाली बात नहीं है. लेकिन अखिलेश यादव कहते हैं कि इसके लिए धन संग्रह का अभियान चलाने की जरूरत क्यों पड़ गई. लोग खुद आएंगे मंदिर के लिए दान देंगे.


चंपत राय: हमने धन संग्रह कहीं नहीं लिखा है.  हमने लिखा है समर्पण निधि. सारा समाज नहीं आ सकता है अयोध्या. सारा समाज बैंक में लाइन नहीं लगा सकता. सिस्टम फेल हो जाएगा. जिस प्रकार देश का प्रत्येक बालक स्कूल नहीं जा सकता, तो विवेकानंद जी ने कहा कि स्कूल बच्चे के घर जाए. हमने भी सोचा है कि गरीब-मजदूर तक कैसे पहुंचा जाए. महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल महोदय बैंक के काउंटर तक कैसे जाएं. इसलिए हम ही घर-घर तक जाएंगे.  


दिलीप तिवारी: लेकिन जो लोग कह रहे हैं कि धन संग्रह के नाम पर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता कई जगह आक्रामक नारेबाजी कर रहे हैं. शामली में बाइक रैली में तलवारें लहराते दिखाई दिए. जब मंदिर का फैसला आया, तो लोगों ने चैन की सांस ली कि ये विवाद खत्म हुआ.  यहां तक कि इसमें जो एक पक्षकार रहे हैं, वो भी कहते हैं कि मैं इसमें दान दूंगा. क्योंकि ये अच्छा काम है और देश के हित में है. चाहे वो हिंदू समाज के लिए हो रहा है, फिर भी मैं दान दूंगा. मुसलमान भी दान दे रहे हैं. लेकिन तलवार लहराने पर सवाल खड़े हो रहे हैं.


चंपत राय: हमने अखिल भारतीय योजना में कहीं भी रैली, कोई अस्त्र-शस्त्र हवा में लहराने का कार्यक्रम नहीं रखा. तो भी कहीं नियमों का, कानून का उल्लंघन हुआ है तो प्रशासन शांति बनाए रखने के लिए है. वो ऐसा काम करेगा. मैं आपके माध्यम से इस प्रकार का काम करने वाले उत्साही नवजवानों को निवेदन करता हूं, ये कार्य नहीं करना चाहिए. प्रशासन की सूचनाओं का पालन करना चाहिए. ये भगवान के मंदिर के निर्माण का कार्यक्रम है. समाज की श्रद्धा को स्वीकार्य करने का काम है. ये कोई आंदोलन नहीं है. कहीं हुआ है, तो मैं निश्चित रूप से कहूंगा कि गलत है. नहीं होना चाहिए.  उत्साह को नियंत्रित रखना चाहिए. बाढ़ जब सीमाएं लांघती है, तो नष्ट करती है और हानि होती है. पानी जब एक चैनल में चलता है, एक अनुशासन में चलता है तो सिंचाई के काम आता है. मैं समझता हूं कि शांति और व्यवस्था, ये सबके लिए कर्तव्य है.


दिलीप तिवारी: जो श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाया गया है, आप उसके महामंत्री हैं. आपके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है कि इस को पूरा करने में कोई बाधा न आए. लेकिन क्या ऐसे कार्यकर्ता, जो विश्व हिंदू परिषद या संघ से जुड़े हों, उन्हें समझाया जाएगा, चेतावनी दी जाएगी या कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो सकती है?


चंपत राय: हमारा काम वॉलेंट्री वर्क है. वॉलेंट्री कार्यों में चेतावनी का कोई अर्थ नहीं है. समझाना एक काम है और हमारे यहां सब समझते हैं. अगर कोई अपने से बड़े की बात नहीं समझ रहा है, तो वो हमारा कार्यकर्ता नहीं हो सकता.  कार्यकर्ता वही हैं जो अपने से बड़ों की बात मानते हैं. हमारे यहां कोई डिक्टेटरशिप नहीं है. परिवार में माता-पिता और पुत्र रहते हैं. परिवार-समाज तभी चलता है, जब एक दूसरे का आदर करते हुए, हर छोटा, कम अनुभव रखने वाला व्यक्ति, अपने से आयु में बड़े और अपने से अनुभवी लोगों की बात मानता है. जो बात मानता है, वो कार्यकर्ता है. जो समझाने पर भी नहीं मानता है, उसके लिए कानून व्यवस्था है.


दिलीप तिवारी: समाजवादी पार्टी के सांसद एचटी हसन कहते हैं कि कुछ लोग बिके हुए मुसलमानों से पथराव करवाएंगे और फिर माहौल बिगाड़ेंगे . और फिर हिंदू-मुसलमान करवाना शुरू कर देंगे.  


चंपत राय: मुझे कुछ नहीं कहना है. शांति व्यवस्था के लिए प्रशासन है. मुझे इस विषय पर कुछ भी कहने का कोई अधिकार नहीं है.


दिलीप तिवारी: सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था और उससे पहले ही कई मीटिंग्स हो चुकी थीं. तब संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने अपील की थी कि कोई माहौल बिगाड़ने वाला कार्यक्रम न हो या कोई ऐसी बात भी न हो, जिससे दोनों समुदायों के बीच का सौहार्द खराब हो. अब मैं आपसे जानना चाहता हूं कि आपका मिशन है, जल्द से जल्द राम मंदिर का निर्माण हो जाए. हम क्या माने कि शुरुआत कैसे होगी और कब तक हम इसको मूर्त रूप में देखेंगे?


चंपत राय: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन राव भागवत जी का ये अनुरोध कि शांति व्यवस्था हो, इससे हमारे मौलिक चिंतन को समझना चाहिए. ये मंदिर हमने सोचा था कि यदि जून से प्रारंभ कर देंगे, तो हम 39 महीने में पूरा कर लेंगे. लेकिन अभी 7 महीने से तकनीकी, वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, स्टडी, एक्सपेरिमेंट, ट्रायल और टेस्टिंग हो रहा था. अब लगभग देश की बड़ी-बड़ी आईआईटीज के प्रोफेसर सब एक मत हो गए हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार के एक्सपेरिमेंट करके. अब मैं ऐसा कह सकता हूं कि वहां फाउंडेशन की तैयारियां शुरू हो गई हैं. फाउंडेशन बनने से पहले कहीं मिट्टी हटाई जाती है, ये काम प्रारंभ हो गया है. अगर मैं 1 फरवरी 2021 से मान लूं, तो जो हमने प्रारंभ में 39 महीने सोचा था, उसी कार्यावधि में समाज को समर्पित हो जाएगा.


दिलीप तिवारी: जो पहले चर्चा हुई कि आप लोग ऐसे मंदिर का निर्माण करना चाहते हैं कि नींव और पूरा ढांचा हजार साल तक सुरक्षित रहे. क्या उस दिशा में कामयाबी मिल पाई है?


चंपत राय: देखिए, अगर पत्थर की आयु सीबीआरआई (Central Building Research Institute) की लेबोरेटरी में जांच कराएंगे या जो भी देश में इस प्रकार के पत्थरों की उम्र को स्टडी करते हैं, तो वे बताएंगे कि हवा, धूप और पानी का जो पत्थर पर परिणाम होता है, जिस कारण पत्थर का क्षरण होता है. ये प्रारंभ हो जाता है, तो पत्थर 1000 साल की आयु के माने जाते हैं. प्राचीन मंदिर जो पत्थरों के बने हैं, वो टिकें हैं.  महत्वपूर्ण बात ये थी कि पत्थर का वजन, जिस नींव के कंधों पर रहना है, उसकी आयु कैसी हो? दूसरी बात की ड्रॉइंग किस ढंग से बनाया जाए कि वो लंबे काल तक उस वजन को सहन कर सके.  अब उसका प्रारूप आ गया है. इसलिए ये कार्य अब होगा. एक ऐसी नींव की प्रस्तुत देश के इंजीनियर्स ने कर दी है. ऐसी ड्रॉइंग्स और ऐसे प्रपोजल्स दे दिए हैं, जो निश्चित ही शताब्दियों के लिए होंगे और भारतीय इंजीनियरिंग ब्रेन के लिए दुनिया में उदाहरण बनेंगे, .  


दिलीप तिवारी: चंपत जी, तो हम ये मान लें कि नक्शा जो आपका ड्रॉइंग है, वो फिक्स हो चुका है. नींव का जो स्ट्रक्चर है, वो भी फिक्स हो चुका है. किस तरह से बनेगा, वो फिक्स हो चुका है. और अब काम शुरू होना बस बाकी है?


चंपत राय: काम शुरू हो गया, ये मैं जोड़ देता हूं.


दिलीप तिवारी: तो 39 महीने की डेडलाइन को आप फॉलो करेंगे?


चंपत राय: देखो, डेडलाइन फॉलो करेंगे, इसका अर्थ क्या है. मान लो 39 के बदले 40 महीने में बने, तो क्या होगा. अरे भई, हम भविष्य की चर्चा कर रहे हैं. इसमें बहुत बड़ा काम मैनुअल है. मनुष्य की कारीगरी होगी हाथ से. एक एस्टिमेट (Estimate) किया गया है. उस एस्टिमेट को समाज के सामने रखा गया है. इसमें कोई आरसीसी का काम नहीं है. प्री फैब्रिकेशन का कोई काम नहीं है. कोई नट बोल्ट पर काम नहीं हो रहा है. एक अनुभवी लोगों ने बनाया है कि इतने महीने में काम हो सकता है. मोर ऑर लेस वो स्टडी सही है. अगर 2 से 4 परसेंट का अंतर पड़ता है, ये कोई बात नहीं है. ये ठीक बात है.


दिलीप तिवारी: हम ये मानें कि इसमें जो धन लगना है, वो पर्याप्त मात्रा में आप लोगों के पास है या धन संग्रहण, जिसे आप लोग समर्पण कहते हैं उससे जरूरत पूरी हो जाएगी. या विदेशों में जो भारतीय रहते हैं, वह भी चंदा देना चाहते हैं या समर्पण राशि देना चाहते हैं, तो वे क्या करेंगे?


चंपत राय: पहले मैं विदेशों में रहने वाले राम भक्तों की बात पर आता हूं. विदेश का मतलब, भारत के लिए नेपाल भी विदेश है. लंका-भूटान ये विदेश में आएंगे. बांग्लादेश और पाकिस्तान भी आएंगे. लेकिन भारतवर्ष में भारत के बाहर की मुद्रा में अगर कोई धन आता है, तो उसके लिए कोई कानून है, व्यवस्था है, सिस्टम है. उसमें हमें पंजीकरण कराना होता है. अभी हमारे पास उस काम के लिए समय नहीं है. उस पंजीकरण की जो शर्तें हैं, उसको पूरा करने में अभी हमको समय लगेगा. इसलिए भारत के बाहर अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देश में रहने वाले भारतीयों से निवेदन करूंगा कि कुछ दिन और धैर्य रखना होगा. दूसरी बात आई, धन. अभी भगवान का घर है और लक्ष्मी भगवान के चरणों में बैठती हैं. तो ये सोचना इसमें कोई कमी पड़ेगी, ये अपने ऊपर ही अविश्वास करना होगा. परमात्मा के काम में मनुष्य की बाधा नहीं पड़ सकती है. बुद्धि का देना और बुद्धि का छीन लेना, उसी के हाथ में है. धन का देना, धन कम देना और अधिक देना ये भी उन्हीं के हाथ में है. जो कुछ है उन्हीं का है.


दिलीप तिवारी: आपने क्या उम्मीद रखी है कि समर्पण राशि कितनी जुटा लेंगे? आपने 42 दिन का अभियान चलाया है.


चंपत राय: कोई कल्पना ही नहीं हो पा रही है. अकल्पनीय लग रहा है. कल मैं लखनऊ में रहा. सबेरे रायबरेली के एक कार्यक्रम में गया. एक महीने पहले से एक व्यक्ति का निजी आग्रह था कि मेरे घर आइए, मैं कुछ देना चाहता हूं. वो चाहते थे कि अयोध्या आएं. मैं कहता था कि मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे. मैं कल घर चला गया. एक आदमी ने 1 करोड़, 11 लाख, 11 हजार, 1 सौ 11 रुपये का चेक दिया.  लखनऊ के कार्यकर्ताओं के साथ में कल अंतिम टोली में रहा. रात्रि को 6:30 पर, मैंने पूछा क्या है आज का पुरुषार्थ?  राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले साथ में थे . 12 परिवारों में गए और 87 लाख का चेक लेकर आए. हमें, तो कल्पना भी नहीं हो रही है कि क्या आएगा. मैं कुछ भी नहीं कह सकता. अनंत के कार्य में लगे हैं. जिनकी बुद्धि और शक्ति सीमित है, वो कार्य कर रहे हैं. कितने करोड़ लोग कार्य कर रहे हैं. कितने लाख लोग कार्य कर रहे हैं. सब अपने-अपने मन से बोल सकते हैं. लेकिन कोई अनुमान नहीं कर सकते. जो अनुमान करोगे, भगवान हो सकता है सब फेल कर दे.


दिलीप तिवारी: जो आप लोगों की परिकल्पना है. प्रधानमंत्री ने कहा, संघ प्रमुख ने कहा. आप इस ट्रस्ट के महामंत्री हैं. महामंत्री का मतलब ये समझा जाए कि जिसके कंधों पर ये जिम्मेदारी है कि टीम के साथ मिलकर उस कार्य को पूरा करना. अयोध्या की परिकल्पना है कैसी, 40 महीने या 41 महीने में जब काम पूरा होगा दुनिया क्या देखेगी, भविष्य में जब अयोध्या नगरी बनेगी, तो क्या कल्पना है आपकी?


चंपत राय: अयोध्या कभी न कभी इस देश का केंद्र था. केंद्र वो होता है, जिसकी ओर दौड़ने या चलने में सबको आनंद होता है. शायद अयोध्या फिर से केंद्र बिंदु या न्यूक्लियस बनने वाला है, जहां से उर्जा प्राप्त करेंगे सब.


दिलीप तिवारी: मैं जिस जगह पर आपके साथ बैठा हूं, ये आरकेपुरम,  विश्व हिंदू परिषद का केंद्रीय मुख्यालय है. जहां अशोक सिंघल, जो अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष रहे हैं, जिन्होंने लंबे समय तक ये आंदोलन चलाया. मैंने शिलादान या शिला पूजन का वो कार्यक्रम किया था, जब उन्होंने महंत परमहंस दास के साथ एक लंबे अरसे तक लड़ने के बाद ये कार्यक्रम किया था. अब वो दिन भी आया, जब मंदिर का शिला पूजन भी हुआ. प्रधानमंत्री वहां मौजूद रहे, संघ प्रमुख मौजूद रहे. आप भी मौजूद थे. तो ये जो आप लोगों की लड़ाई है. आपने कहा कि संघर्ष लंबे समय से चला आया है. आज आपको लगता है कि वो ऐसे लोग, जैसे आचार्य गिरिराज किशोर हो या और भी बहुत से लोग होंगे, जो इस आंदोलन में पर्दे के पीछे रहकर भूमिका निभा रहे थे. आज आपको लगता है कि उनकी जो संघर्ष की पराकाष्ठा थी, वो पूरी हुई?


चंपत राय: उन्होंने तो स्वतंत्र भारत में 1983 से इसके लिए प्रयास किए. आस्था तो उस समाज की पूरी हुई, जिन्होंने 1949 में उस स्थान को अपने अधिकार में ले लिया, 1934 में लड़े. 1528 से लेकर कभी भी इस स्थान को प्राप्त करने के लिए अपने प्रयत्नों को छोड़ा ही नहीं. विश्व हिंदू परिषद की भूमिका 1984 से शुरू हुई. तो 1528 से लेकर 1984 तक जो लोगों के प्रयत्न हैं, सबकी आकांक्षा पूरी हुई.  


दिलीप तिवारी: जब आप लोगों की बातचीत होती थी. जब विश्व हिंदू परिषद की बैठक होती थी. केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक होती थी. तब यह अहम एजेंडा होता था. मैंने कई बैठकों को कवर भी किया था. उसमें अगर आप शामिल करें, तो महंत परमहंसदास भी होते थे. आचार्य गिरिराज किशोर भी होते थे. आप लोग भी होते थे  या मौजूदा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के गुरु महंत अवेद्य नाथ भी मौजूद होते थे. संघ प्रमुख भी होते थे.  ये जो रणनीति बनी थी, अयोध्या, काशी और मथुरा. एक लड़ाई तो आप लोगों ने जीत ली. आपको मिशन पूरा करना है, मंदिर निर्माण का. लेकिन बयान ये भी आते हैं. चाहे मैं विनय कटियार की बात करूं या साध्वी ऋतंभरा की बात करूं या बाकी और लोगों की बात करूं. वे कहते हैं कि अयोध्या तो अभी झांकी है, काशी मथुरा बाकी है. आप क्या कहेंगे?


चंपत राय: बुद्धिमान समाज, बुद्धिमान नागरिक, जब सड़क पर चलता है, जब आगे बढ़ा हुआ कदम जम जाता है, तब पीछे वाला कदम आगे उठा कर रखता है. दोनों पैर एक साथ जमीन से नहीं उठाया जा सकता है. मैंने कहा, आंदोलन का काल पूरा हो गया. अब सामूहिक समझदारी ये कहती है कि एक स्थान समाज को समर्पित हो जाने दीजिए. तब हो सकता है कि कुछ जरूरत ही न पड़े. देश का ऐसा वातावरण हो जाए कि इन स्थानों को स्वेच्छा से समाज समर्पित कर दे. देवरहा बाबा यही कहते थे. कायदा बन जाएगा.  तो इसलिए Let's Wait...


दिलीप तिवारी: अगर मैं आपसे इस पर एक चीज ये पूछूं कि जो पत्थरों को तराशने का काम बहुत लंबे समय से चल रहा था. बीच में रुका. अब उसमें काई लग गई, तो सफाई का काम शुरू हुआ. क्या आपको लगता है कि पत्थर पर्याप्त हैं या और जरूरत पड़ेगी. क्योंकि राजस्थान से जो पत्थर आने थे, वो या तो किसी कारण से या एनजीटी के आदेश की वजह से अब तक वो नहीं पहुंच पाए. आप उन पत्थरों को कैसे पूरा करेंगे?


चंपत राय: जो पत्थर पहले से रखा है, लगभग 1990 के पश्चात से 2006 तक जिसकी नक्काशी हुई, वह सुरक्षित रखा है. उसकी नाप-तोल कर ली गई है. लोगों का अनुमान ये है कि वो 70 से 75 हजार Cubic foot है. उसका उपयोग पहले होगा. क्योंकि बेसिक स्ट्रक्चर वही है. उसके उपयोग के बाद भी हमें लगता है कि तीन लाख 25 हजार Cubic foot पत्थर की आवश्यकता और पड़ेगी.  वो आएगा, उसकी नक्काशी होगी. वो लगेगा.  जो रखा है, उसका उपयोग होगा. और मैं समझता हूं कि राजस्थान से आसानी से पत्थर आ जाएगा. NGT की प्रॉब्लम नहीं है. कोई प्रॉब्लम नहीं है. मैं समझता हूं कि इसमें कोई बाधा नहीं आएगी.


दिलीप तिवारी: प्रॉब्लम सरकार की ओर से है?


चंपत राय: सरकार की ओर से प्रॉब्लम बिलकुल नहीं है.  वर्तमान सरकार को पता भी नहीं था. क्योंकि ये जो वहां खदान बंद हुई हैं, वो तो 12 साल पहले बंद हुई हैं. उसका वर्तमान सरकार से कोई लेना देना नहीं है. उसको दोषी नहीं ठहराना चाहिए.


दिलीप तिवारी: आपको लगता है कि जो पत्थर पहले आया, उसकी स्टॉक आपको मिल जाएगा?


चंपत राय: सब मिल जाएगा. भगवान के काम में, राम जी के काम में जरा देरी होती है. उनका राज्याभिषेक भी देरी से हुआ. टल जाता है. सब ठीक हो जाएगा.


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