कन्हैया कुमार/मथुरा: होली का त्योहार नजदीक है. लोग रंगों के इस उत्सव में सराबोर होने की तैयारियां कर रहे हैं. होली को मनाने के कई तरीके हैं. कोई गुलाल उड़ाता है तो कहीं चलती है रंगों की पिचकारी. इसके अलावा भी होली मनाने का एक अनूठा ढंग है जिसका नाम है लठामार होली. आइए जानते हैं ब्रज में खेली जाने वाली इस होली के बारे में जिसे देखने देशभर से लोग पहुंचते हैं.


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लठामार होली?
ब्रज में बरसाना, नन्दगांव  की लठामार होली नहीं देखी तो होली का रंग अधूरा ही रहता है. यहां महिलाएं लाठियां बरसाती हैं, पुरुष लाठियों के वारों को ढालों पर सहते हैं. जितना तेज लाठियों का प्रहार होता जाता है, उतना ही गाढ़ा प्रेम रंग श्रीकृष्ण के गांव नंदगांव और राधरानी के गांव बरसाना के लोगों में गहरा होता चला जाता है. कहा जाता है कि द्वापर युग में नन्दगांव के श्रीकृष्ण ने राधा के गांव  बरसाना में आकर लठामार होली खेली थी, उसी परंपरा को आज भी नंदगांव-बरसाना के लोग निभाते चले आ रहे हैं.


राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक
इस बार बरसाना में 22 मार्च को लड्डू होली और 23 मार्च को लठामार होली खेली जाएगी. बरसाना की महिलाएं लठामार होली की तैयारियों को लेकर एक माह पहले से ही जुट जाती हैं. लठामार होली के लिए  महिलाएं लाठियां तैयार करती हैं. साथ ही होली खेलने के लिए दूध दही माखन का भी सेवन करती हैं और लाठियों को तेल में भिगोकर रखती हैं. महिलाओं का कहना है कि यहां लठामार होली राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है. 


होली देखने के लिए देशभर से पहुंच रहे लोग
इस होली को देखने के लिए देश भर से लोग बरसाना पहुंच रहे हैं. और बरसाना के रंगीली महल में राधे के भजनों में सराबोर दिख रहे हैं.  राधे-राधे के जयकारों के साथ राधा और कृष्ण के प्रेम का अनूठा संगम बृज की होली सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. लोग इस मौके को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं. यही ब्रज की अनूठी होली है, जहां पर प्रेम और सौहार्द का विहंगम दृश्य आपको देखने को मिलता है.


साल भर लोग ब्रज की इस पावन होली का इंतजार करते हैं. बरसाना में होली के रंग बिखरे दिखाई देने लगे हैं. यहां हर वर्ग के लोग मौजूद हैं. चाहे बच्चा हो युवा या बुजुर्ग हर कोई राधा रानी के सामने अपनी हाजिरी लगाने के लिए बरसाना पहुंच रहा है.


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