लखनऊ: कभी जिन नेताओं को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का भविष्य कहा जाता था उनका पार्टी से पलायन जारी है. पहले हिमंता बिस्वा सरमा, फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया और अब जितिन प्रसाद. इनमें पहला असम का मुख्यमंत्री बन चुका है, जबकि बाकी दोनों यूपीए के शासनकाल में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. लोग भले ही इन नेताओं को मौकापरस्त कहें, लेकिन मामला सिर्फ मौकापरस्ती का नहीं कुछ और भी है.


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राजनीति में संदेश का बड़ा महत्व होता है
राजनीति में संदेश का बड़ा महत्व होता है. हिमंता, सिंधिया या प्रसाद ये तीनों नेता पार्टी छोड़कर जाने वालों में नहीं थे. इनके राजनीतिक सफर की शुरुआत जिस पार्टी के साथ हुई उसे यूं ही बिना किसी कारण नहीं छोड़ सकते. राष्ट्रीय नेतृत्व की कमी कहें या आलाकमान का अहम कि ये तीनों कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. इससे संदेश गया कि राहुल गांधी के भरोसेमंद दिग्गज नेता ही साथ छोड़कर भाग रहे हैं. पार्टी में संवादहीनता है, अंतर्कलह है.


विपक्ष के ब्राह्मण विरोधी मुहिम को झटका
कांग्रेस के चर्चित नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हाराव के राजनीतिक सलाहकार रहे कुंवर जितेंद्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद यूपी में कांग्रेस के ब्राह्मण चेहरा थे. यूपी की सियासत में ब्राह्मण की भूमिका हमेशा से ​महत्वपूर्ण रही है. मामला 11 फीसदी वोटों का है.


जितिन भाजपा के लिए ब्राह्मण चेहरे के रूप में  कितना लाभदायक सिद्ध होंगे और उन्हें इस भूमिका में कितनी स्वीकार्यता मिलेगी यह तो भविष्य बताएगा. लेनिक भाजपा ने जितिन को पार्टी में लाकर विपक्ष की उस मुहिम को झटका जरूर दिया है जिसमें उसे ब्राह्मण विरोधी पेंट करने की कोशिश की जा रही थी.


भाजपा को मनोवैज्ञानिक सियासी बढ़त मिलेगी
लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके आने से भाजपा को मनोवैज्ञानिक सियासी बढ़त के साथ रुहेलखंड में मजबूती जरूर मिलेगी. जिनित का भारतीय जनता पार्टी में आना वर्ष 2022 की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है. हालांकि जितिन का भाजपा में शामिल होना चौंकाने वाला नहीं है. दरअसल, कांग्रेस की तरह खुद उनकी भी राजनीतिक कश्ती भंवर में फंसी हुई थी. लोकसभा के दो चुनाव से सफलता तो मिल ही नहीं रही थी, ऊपर से वह विधानसभा का चुनाव भी हार गए थे.


जितिन के लिए भाजपा ही बेहतर विकल्प क्यों थी
कांग्रेस में वह हाशिए पर चले गए थे. ऐसे में जितिन के लिए नया राजनीतिक ठिकाना तलाशना मजबूरी हो गया था और भाजपा से बेहतर विकल्प नहीं था. बसपा का हाल सभी के सामने है. सपा की राजनीति में रुहेलखंड के समीकरण जितिन के इस पार्टी के बारे में सोचने की राह में बड़ी बाधा थे. साथ ही दिल्ली की राजनीति में दिलचस्पी और खुद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में तराशने की कोशिश भी उन्हें कांग्रेस के बाद सिर्फ भाजपा का ही विकल्प देती थी.


तराई क्षेत्र में भाजपा को मजबूत करेंगे जितिन प्रसाद
भाजपा को शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी सहित रुहेलखंड में जितिन के रूप में एक बड़ा चेहरा जरूर मिल गया है. इसका असर कांग्रेस और विपक्ष के कुछ अन्य नेताओं के भाजपा में शामिल होने के रूप में सामने आ सकता है. चर्चा इस बात की भी है कि भाजपा जितिन प्रसाद को विधानपरिषद में नामित सदस्य के तौर पर भेजकर कैबिनेट में शामिल कर सकती है. जितिन को रीता बहुगुणा जोशी की तरह अहमियत देकर भाजपा यूपी के ब्राह्मणों को पार्टी के पक्ष में एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रही है.


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80 विधानसभा क्षेत्रों पर भारतीय जनता पार्टी का फोकस
भाजपा ने प्रदेश में विधानसभा की उन 80 सीटों पर फोकस किया है, जहां पार्टी अब तक कमजोर स्थिति में रही है. इन विधानसभा सीटों को चिन्हित करके विशेष कार्ययोजना बनायी गयी है. ऐसे क्षेत्रों में राज्यसभा व विधान परिषद सदस्यों को लगाया गया है. बाहरी नेताओं को जोड़ने की कोशिशें भी जारी हैं.


वर्ष-2022 में 300 प्लस सीटों का आकंड़ा पाने के लिए जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले अन्य दलों के स्थानीय नेताओं से निरंतर संपर्क साधा जा रहा है. सूत्रों की मानें तो करीब एक दर्जन बड़े नाम भाजपा नेतृत्व के संपर्क में हैं. पार्टी में उनकी जॉइनिंग उचित समय पर कराई जाएगी.


अन्नू टंडन और जितिन सहित 21 नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी 
प्रियंका गांधी 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी बनीं. उन्होंने 450 सदस्यों की पुरानी प्रदेश कमेटी को भंग कर नए सिरे से गठन किया. अध्यक्ष सहित 49 पदाधिकारियों की कमेटी बनाई, जिसमें सारे नए चेहरे थे. पुराने नेता हाशिए पर आ गए.


दो बार विस्तार देकर संख्या करीब सौ कर दी गई. कुछ पुराने नेताओं को समायोजित करने का भी प्रयास किया. उनमें से अब तक 19 पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं. इसके अलावा उन्नाव की जानी-मानी नेत्री रहीं पूर्व सांसद अन्नू टंडन सपा में शामिल हो चुकी हैं और अब पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी चले गए.


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