नवरात्रि में 9 शक्ति पीठों की कहानी- इस शक्तिपीठ में आने मात्र से जाग जाता है भाग्य
नवरात्रि के पावन दिनों में zeeupuk आपके लिए लाया है हर रोज एक शक्तिपीठ की कहानी. कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए.
मां दुर्गा के उपासकों को चैत्र नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार रहता है. आज से चैत्र नवरात्रि शुरू हो गए हैं. ये पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा की उपासना का उत्सव मनाया जाता है. शक्ति की उपासना का ये पर्व 13 अप्रैल (13 April 2021) से शुरू होकर 21 अप्रैल तक चलेगा.
नवरात्रि के आरंभ के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत भी हो रही है. इस साल चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा देवी का आगमन घोड़े पर होगा. जबकि देवी का प्रस्थान कंधे पर होगा. आज हम आपको मां से जुडे़ शक्तिपीठों के बार में बताएंगे.. आपको बताएंगे की क्यों इनको शक्तिपीठ कहा जाता है. हम नवरात्रि के इन नौ पावन दिनों में आपके लिए हर रोज मां के एक शक्तिपीठ के बारे में बताएंगे....
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देवी दुर्गा के नौ रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है. शास्त्रों में उल्लेख आता है कि जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. आप में से अधिकांश लोग माता के शक्तिपीठों का दर्शन कर चुके होंगे या पुराणों आदि के जरिए परिचित होंगे. कुछ लोगों ने नवरात्रि में या इसके बाद वहां दर्शन, अर्चना करके अपनी मनौती मांगी होगी. आइए जानते हैं नवरात्रि में नौ शक्तिपीठों के बारे में...सबसे पहले जानते हैं कि शक्तिपीठ किसको कहते हैं...
शक्तिपीठ क्या है?
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जहां-जहां माता के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया. ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित है. देवी भागवत के अनुसार शक्तिपीठों की स्थापना के लिए शिव स्वयं भू-लोक में आए थे. दानवों से शक्तिपिंडों की रक्षा के लिए अपने विभिन्न रूद्र अवतारों को जिम्मा दिया. सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों में पूजे जाते हैं. इन पीठों में कुछ तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं. नवरात्रों में शक्तिपीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है और जो उपासक इन शक्तिपीठों पर नहीं पहुंच पाते, वे अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं.
क्यों कहते हैं शक्तिपीठ
हिंदू धर्म के अनुसार शक्तिपीठ यानी वो पवित्र जगह जहां पर देवी के 51 अंगों के टुकड़े गिरे थे. ये शक्तिपीठ भारत के अलावा, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल में फैले हुए हैं. जी हां, चीन के कब्जे वाले तिब्बत में एक शक्तिपीठ है. एक तो बलूचिस्तान में भी है.
कालीघाट मंदिर कोलकाता- पहला शक्तिपीठ
मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है. मां काली के चार रूप है- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली. पश्चिम बंगाल कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था. मान्यता के अनुसार मां सती के दाएं पैर की कुछ अंगुलियां इसी जगह गिरी थीं. आज यह जगह काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है. बंगाल ही नहीं, देश-दुनिया से लोग यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं.
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51 शक्तिपीठों का वर्णन
कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है.
काली घाट का ये काली मंदिर भी एक शक्तिपीठ माना जाता है, जहां सती के दाएं पांव की 4 अंगुलियों (अंगूठा छोड़कर) गिरी थी. यहां की शक्ति 'कालिका' व भैरव 'नकुलेश' हैं. इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है. मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं. पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है.
कैसे बना ये शक्तिपीठ
जब महादेव शिवजी की पत्नी सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान सहन नहीं कर पाई तो उसी यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई. शिवजी जो जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया और राजा दक्ष का सिर काट दिया. बाद में शिवजी अपनी पत्नी सती की जली हुई लाश लेकर विलाप करते हुए सभी ओर घूमते रहे. जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए. हालांकि पौराणिक आख्यायिका के अनुसार देवी देह के अंगों से इनकी उत्पत्ति हुई, जो भगवान विष्णु के चक्र से विच्छिन्न होकर 108 स्थलों पर गिरे थे, जिनमें में 51 का खास महत्व है.
ऐसा है स्वरूप
कालीघाट मंदिर में देवी की प्रतिमा में मां काली का मस्तक और चार हाथ नजर आते हैं. ये प्रतिमा एक चौकोर काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है. यहां मां काली की जीभ काफी लंबी है जो सोने की बनी हुई है और बाहर निकली हुई है. दांत सोने के हैं. आंखें तथा सिर गेरूआ सिंदूर के रंग से बना है और माथे पर तिलक भी गेरूआ सिंदूर का है. प्रतिमा के हाथ स्वर्ण आभूषणों और गला लाल पुष्प की माला से सुसज्जित है.
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अष्टमी को होती है विशेष पूजा
यहां पर मंगलवार और शानिवार को अष्टमी को विशेष पूजा की जाती है और भक्तों की भीड़ भी बहुत ज्यादा होती है. मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10:30 तक खुला रहता है. बीच में दोपहर में यह मंदिर 2 से 5 बजे तक बंद कर दिया जाता है. इस अवधि में मां को भोग लगाया जाता है. सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है लेकिन भक्तों के लिए ये मंदिर सुबह 5 बजे ही खोला जाता है.
मंदिर में “कुंडूपुकर” नामक एक पवित्र तालाब है जो मंदिर परिसर के दक्षिण पूर्व कोने में स्थित है. इस तालाब के पानी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस तालाब के पानी में स्नान करने से हर मन्नत पूरा होती है. मां कालिका के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान है.
अगले अंक में हम आपको दूसरे शक्तिपीठ और उसके महत्व के बार में बात करेंगे
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