नई दिल्ली: हमें जब भी किसी और के अकाउंट में पैसे जमा कराने होते थे, तो बैंक में जाकर लाइन लगानी पड़ती थी, फॉर्म भरना पड़ता था. फिर जाकर नंबर आता था और पैसे जमा होते थे. लेकिन जबसे सभी बैंक ऑनलाइन सिस्टम लेकर आए हैं, तबसे मनी ट्रांसफर आसान हो गया है. अब बस घर बैठे कुछ क्लिक्स कर आप एक खाते से दूसरे खाते में पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं. इसके लिए बस जरूरत होती है इंटरनेट की और बैंक अकाउंट डिटेल्स की. 


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क्यों इस्तेमाल किया जाता है IFSC?
जब हम ऑनलाइन माध्यम से इमीडिएट पेमेंट सर्विसेज (IMPS), रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) से किसी को पैसे ट्रांसफर करते हैं, तो उसकी बैंक डिटेल्स डालते हैं. इस डिटेल में कस्टमर का नाम, बैंक का नाम, अकाउंट नंबर और IFSC कोड शामिल होता है. ये सभी डिटेल्स सही भरने के बाद सही अकाउंट में पैसा पहुंच जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं ये IFSC होता क्या है और बैंक अकाउंट नंबर होने के बावजूद इसकी जरूरत क्यों पड़ती है? 


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क्या होता है IFSC?
Indian Financial System Code या IFSC 11 डिजिट का अल्फा-न्यूमरिक कोड होता है, जो RBI (Reserve Bank of India) असाइन करता है. यह कोड हर बैंक की ब्रांच को दिया जाता है. यानी हर ब्रांच का यूनीक कोड होता है. IFSC का इस्तेमाल हम ऑनलाइन बैंकिंग (NEFT, IMPS और RTGS) में करते हैं. एक वैलिड IFSC के बिना हम इंटरनेट बैंकिंग या फंड ट्रांसफर नहीं कर सकते.


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कहां होता है IFSC?
आपके बैंक से आपको पासबुक और चेकबुक मिली होगी. अगर आप अपनी पासबुक का पहला पेज देखें तो उसपर यह IFSC लिखा होता है. इसके अलावा, चेकबुक की लीफ पर भी यह अंकित होता है. 


चेकबुक में IFSC:



पासबुक में IFSC:



क्या होता है IFSC का काम?
बता दें, IFSC कोड विशेष रूप से बैंक की हर ब्रांच को मान्यता देता है, जो NEFT और RTGS में भाग ले रहा हो. 11 डिजिट के इस कोड के पहले 4 डिजिट बैंक को रिप्रेजेंट करते हैं. इसके बाद की डिजिट 0 होती है, जो भविष्य में उपयोग के लिए रिजर्व रखी गई है. आखिरी के 6 डिजिट ब्रांच की पहचान होते हैं.


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