सिंगापुर में लाखों के पैकेज की नौकरी छोड़ लखीमपुर में खेती कर रहीं स्वाति, खड़ी कर दी खुद की कंपनी
पढ़िए लखीमपुर खीरी की स्वाति की स्टोरी, कैसे उन्होंने बदल दी किस्मत
दिलीप मिश्रा/लखीमपुर खीरी: अक्सर आप टीवी पर विज्ञापन देखते होंगे, जिसमें शुगर फ्री के बारे में बताया जाता है. दावा किया जाता है कि इसे खाने से शुगर जैसी बीमारी का खतरा नहीं होता है. दरअसल, इस शुगर फ्री को नेचुरल स्वीटनर ( Natural Sweeteners) कहा जाता है. चीनी के जगह इस्तेमाल होने वाली इस चीज की विदेशों में भारी मांग है. अब इसी नेचुरल स्वीटनर की खेती उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में हो रही है. साथ में किसानों की किस्मत भी बदल रही है. लेकिन क्या आपको पता है, इसके पीछे एक ऐसी लड़की का हाथ है, जिसने सिंगापुर में अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और लखीमपुर खीरी को बदलने का फैसला किया. आइए जानते हैं, उसी लड़की की कहानी....
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लंदन के इम्पीरियल कॉलेज से पढ़ी हैं स्वाति
लखीमपुर खीरी के किसान इस समय भारी मात्रा में स्टेविया (Stevia) उगा रहे हैं. इस खेती के पीछे स्वाति पांडेय का हाथ है. दरअसल, नीमगांव इलाके के कोटरा गांव की रहने वाली स्वाति ने पहले धनबाद आईआईटी से इंजीनियरिंग की. इसके बाद उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स स्कॉलरशिप मिली और वह पीजी करने लंदन चली गईं. इम्पीरियल कॉलेज के दौरान ही उन्हें एक शानदार नौकरी मिल गई और वह सिंगापुर आ गईं. स्वाति ने देखा कि सिंगापुर में नेचुरल स्वीटनर की डिमांड काफी ज्यादा है. यहीं से उनके दिमाग में स्टेविया (Stevia)का आईडिया आया.
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छुट्टी ने बदल दी किस्मत
नौकरी के दौरान एक बार स्वाति का अपने गांव कोटरा आना हुआ. उन्होंने यहां किसानों की खराब हालत देखकर, अपने आईडिया को जमीन पर उतारने का फैसला लिया. स्वाति ने सबसे पहले लखीमपुर खीरी में स्टेविया की नर्सरी बनाई. इसके बाद लीज पर जमीन लेकर खेती शुरू की. तीन साल सिर्फ इस बात की रिसर्च में बिताया कि कौन-से वैरायटी का स्टेविया लगाया जाए. खेती शुरू हुई और एक दिन कंपनी खुल गई. आज स्थिति यह है कि करीब 100 एकड़ में स्टेविया की खेती की जा रही है. किसानों और व्यापारियों को फायदा मिल रहा है.
बढ़ रही है डिमांड
स्टेविया का बाजार तेजी के साथ बढ़ रहा है. इंडस्ट्री एआरसी के अनुसार, पिछले पांच सालों में मलेशिया की एक कंपनी ने भारत में 1200 करोड़ का बिजनेस किया है. इसके अलावा ग्लोबल मार्केट इस समय लगभग 5000 करोड़ रुपये का हो गया है. केवल भारत में ही स्टेविया से बने 100 से अधिक प्रोडक्ट्स मौजूद हैं.
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